Tuesday, February 22, 2022

मदखली, मदखली, मदखली !!!,

 



जबसे हमने जमात "इख्वानुल मुस्लिमीन मिस्र" और उसकी दूसरी शक्ल फलस्तीन में " हमास" और उसकी तीसरी शक्ल बर्रे सगीर में " जमात ए इस्लामी", और खुसुसन हमारी जमात अहले हदीस (सलाफी) में से जो जमात ए इस्लामी के रहनुमाओं से मुतास्सिर हैं जिनके पिछले दिनों मैंने नाम भी लिए , उन इख्वानियों की जिस दिन से मैंने पकड़ शुरू की है और उनकी दुम पर पांव रखा है तो उसी दिन से उनकी चीखें निकल रहीं हैं,


मदखली, मदखली, मदखली !!!,

और मेरे हल्के से एक आलिम ए दीन ने फेसबुक पर पोस्ट लिख डाली के ,"जनाब ये लोग मदखली हैं जो उलेमा इजरायल के खिलाफ जिहाद यानी हमला का ऐलान नहीं कर रहे ,"

मेरा इनबॉक्स भरा पड़ा है, के जनाब आप हमास की मुखालिफत करते हैं वह तो मजलूमों की हिमायत कर रही है ,क्या आप जिहाद के मुनकिर हैं ??

आज से पच्चीस साल पहले भी हमें मुनकर ए जिहाद कहा गया था ,जब हमने लोगों को ये समझाया के " कश्मीर का जिहाद खालिस वतनियत का जिहाद है, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा गलत है, पहले पाकिस्तान में तो इस्लाम नाफिज कर लो"

जब हमने ये बात लोगों को समझाना शुरू की तो जवाब में हमें मुंकर ए जिहाद कहा गया ,

अजीब बात ये है आज हमें मदखली कहने वाले वह लोग ही हैं जो कल को कश्मीर की लड़ाई को ऐन जिहाद कहा करते थे लेकिन जब हमारी मेहनत से जब उन्हें तागूत की समझ आई और इस बात का शाऊर हुआ के कुफफार के खिलाफ होने वाली हर लड़ाई जिहाद नहीं बन सकती जब तक के उसमे वह तमाम शरायत मौजूद ना हो जो इस्लाम के मुताबिक होनी चाहिए ,

लेकिन अफसोस ! आज फिर वही लोग हमारे मद्दे मुकाबिल हैं,इंशा अल्ला! अल्लाह से उम्मीद है के अल्लाह उन्हे इस मसले में भी समझ अता फरमाएगा,

मदखलियत

अब हम आते हैं इस बात की तरफ के मदखलियत क्या है, तारीफ तो वह होती है जो दुश्मन भी करे , तो हमारे मुखालिफ तारीफ क्या करते हैं ,उनके मुताबिक सादा अल्फाज़ में आप मदखाली उलेमा की तारीफ ये समझें

" जो उलेमा हुकमरानों के खिलाफ खुरूज को नाजायेज समझते हैं इल्ला ये के वह कुफ्र करें "

अब हम आते हैं अपने असल मौजू की तरफ, क्या हमारे 57 मुस्लिम मुमालिक के जो हुक्मरान हैं अगर वह अपने किसी कमजोरी की वजह से इजरायल पर हमला नहीं कर सकते और उनके यहां जो उलेमा हैं वह उनकी कमजोरी को देखते हुए खामोश हैं, या दूसरे अल्फाजों में वह इख्वानियों की तरह खुरुज नहीं कर रहे तो क्या ये उलेमा मदखली हैं ??

मेरा हर शक्श से सवाल है क्या हर मसला का हल हमला करना ही है कुछ मौके ऐसे होते हैं के जब ताकत न हो तो फिर दुआ ही करनी चाहिए, ये अक्लमंदी नहीं होती के आप अपनी ताकत का मवाजाना (Estimate) ही ना करें और मुखालिफ से भिड़ जाएं, और मैं ये बात अपनी तरफ से नहीं कह रहा हूं शरियत में इसका सबूत मौजूद है,

नबी ए करीम मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने हज़रत आसिम बिन साबित की इमारत में दस अफ़राद का काफिला जासूसी की खातिर मक्का की तरफ भेजा , जिनमे से एक सहाबी हज़रत खुबैब बिन अदी भी थे, वाकया तफसील काफी लंबा है लेकिन मैं मुख्तसर बयान करूंगा के जब इन अशहाब रसूल को पकड़ा गया तो हज़रत आसिम बिन साबित ने अल्लाह से दुआ की, " ए अल्लाह हमारी गिरफ्तारी की खबर अल्लाह के रसूल को पहुंचा दे"

हज़रत आसिम तो मौके पर ही शहीद कर दिए गए और हज़रत खुबैब बिन अदि को मक्का में जाकर फरोख्त कर दिया गया,और फिर कुफ्फार ए मक्का ने बड़े ही दर्दनाक तरीके से हज़रत खूबैब बिन अदी को शहीद कर दिया,

इस वाकए में हमारे लिए एक नसीहत है, मदीना में रियासत भी कायम हो चुकी थी और ये वाक्या गज़वा उहूद के बाद का है और अल्लाह के रसूल को उनके दस सहाबा किराम की सुरत ए हाल से आगाह भी कर दिया गया था , लेकिन फिर भी अल्लाह के रसूल उनकी मदद के लिए क्यों न पहुंचे ,

आपने मस्जिद नबावी में अपने सहाबा किराम को इस वाकए का बताकर अपने अशहाब से सिर्फ दुआ का ही क्यों कहा , आपने सिर्फ दुआ ही की ( आज अगर हम दुआ का कहे तो मदखली ठहरें)
अल्लाह के रसूल ने कुफ्फार मक्का की इसी तरह ईजा रसानियों का आठ साल का इंतजार क्यों किया !!

अगर आज हम ये बात कहें के इजरायल पर हमला करने से पहले हम मुसलमान एक हों , हम ताकत हासिल करें,असलहा खरीदें जैसा के कुरआन कहता है के واعدو لھم ما استطاعتم (जिस तरह के इस वक्त हुकूमत ए सउदी का सालाना दिफाई बजट पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है , वह ताकत हासिल करने की कोशिश कर रहें हैं ,इंशा अल्लाह अल्लाह उन्हे एक ना एक दिन जरूर कामयाबी अता फरमाएगा)

कुफ्फार के मुकाबले मतलूबा ताकत हासिल करने से पहले अगर दुआएं करना मदखलियत है, तो मेरा सवाल उन हजरात से है के ," ए अल्लाह के रसूल हज़रत खुबैब बिन अदी और आसिम बिन साबित की मदद को क्यों ना पहुंचे हालांकि आसिम बिन साबित ने अल्लाह से दुआ भी की थी के हमारी मजलूमियत हमारी गिरफ्तारी की खबर अल्लाह के रसूल तक पहुंचा दे ,

और अल्लाह के रसूल को अल्लाह ने खबर भी दे दी थी लेकिन अल्लाह के रसूल अपने प्यारे सहाबियों की मदद को ना पहुंच सके थे, इस वाक्य में हमारे लिए एक नसीहत छुपी है के जज़्बात में नहीं आना चाहिए बदला लेने के लिए मुनासिब वक्त का इंतजार करना चाहिए , अभी फिलहाल दुआओं का वक्त है ,आप दुआएं करें

और जिन भाइयों को अल्लाह ने ताकत दी है उन्हे हम रोकते नहीं वह इजरायल जाएं और मजलूमीन की मदद करें, वह हमसे बेहतर होंगे इंशा अल्लाह,

लेकिन अगर वह भी हमारे साथ इधर ही बैठे हैं, सारा दिन अपना कारोबार कर रहें हैं, तो मेरा उनसे मशवरा है ज्यादा बातें करने की बजाए वह अपने फलस्तीन भाइयों के लिए दुआएं जरूर करें...

साभार: शैख अब्दुल खालिक भट्टी
हिंदी तर्जुमा محمد عمیر انصاری
Blog: Islamicleaks