ये कतरनों का मरकज है, यहां जो कतरन बंधी हुई हैं ये हमारे समाज के ना आसूदा ख्वाहिशात हैं,अधूरे ख्वाब है,नाकाम हसरतें हैं, आधी अधूरी तमन्नाएं और मायूस दुवाएं हैं जो अकीदे की कमज़ोरी और जिहालत वा नादानी में गंदे कतरनों के साथ बांध दी गई है,
कतरने बता रही हैं के यहां अल्लाह नहीं रहता!!
ये कतरनें ये भी बता रहीं हैं के यहां बच्चे पैदा करना, शादी करवाना,कारोबार में बरकत डालना,अच्छी नौकरी का बंदोबस्त करना, रूठी बीवी मनाना,महबूब को हासिल करना, ये सब शायद अल्लाह के दायरे इख्तियार में नहीं, बल्कि ये सब कुछ इन कतरनों के जरिए मिलता है,
ये कतरनें कमीज़ फाड़ कर बनाई गई होगी, सलवार फाड़ कर बनाई गई होंगी, दुपट्टे फाड़ कर बनाई गई होंगी या चादरें फाड़ कर बनाई गई होंगी,
यही कतरनें जब कपड़े, कमीज़, सलवार, दुपट्टे या चादरों की शकल में किसी के पास थी तो उनकी मन मांगी मुरादें पूरी नहीं हो रहीं थी लेकिन जब उनकी कतरने बना कर उन्हें कहीं बांध और लटका दिया गया तो मन मांगी मुरादों में जान पड़ने लगी ??
बदकिस्मती से ये सब इस समाज में हो रहा है जो एक अल्लाह और एक अल्लाह के दायरे इख्तियार पर यकीन रखने का दावा करता है,
मेरे पास बहुत कुछ है जो मुझे बगैर मांगे मिला है, मेरे पास बहुत कुछ है जो शायद मांगने से मिला है, मेरे पास बहुत कुछ नहीं है जो मैं एक लंबे अरसे से मांग रहा हूं,
लेकिन मुझे कभी इन कतरनों में दिलचस्पी वा दिलकशी महसूस नहीं हुई क्योंकि मुझे पता है मेरी कमीज़ या सलवार से अलग होने वाली कतरन और चिथड़ों में कुछ नहीं है, वहां ना तो मेरे बच्चे हैं,ना मेरा कारोबार है,ना मेरी शादी है, ना मेरा महबूब है,और ना मेरा फायदा और नुकसान है,
मुझे मालूम है के ये सब चीजें सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह ताला के दायरे इख्तियार और उसी के कब्जे कुदरत में हैं,
ना तो मेरा अल्लाह बहरा है, ना अंधा है और ना ही बेवकूफ है जो वह मेरी जायज जरूरतें और नेक तमन्नाएं ना समझ सके,इसलिए मुरादें बिना किसी शरीक किए हुए अपनी सारी मुरादें अल्लाह से मांगें वो ही कय्यूम और जिंदा जावेद है,
यकीन करें, बेजान कतरनों और लटकते गंदे चिथड़ो से कभी किसी को कुछ नहीं मिला और ना ही कभी किसी को कुछ मिलेगा
मंकूल
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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