Saturday, October 31, 2020

अब्दुल्लाह बिन सऊद - एक मुवाहिद जिसने तौहीद के लिए अपनी जान गंवा दी



 अब्दुल्लाह बिन सऊद - एक मुवाहिद जिसने तौहीद के लिए अपनी जान गंवा दी

नजद के इलाके दिरियाह के अंदर अहले तौहीद की एक छोटी से इमारत क़ायम थी, उस वक़्त तुर्की हुकूमत का नशा सातवे आसमान पर था, हालांकि यूरोप कि तरफ से उसे बुरी तरह शिकस्त मिल रही थी लेकिन ये नशा सिर्फ कमजोर अहले तौहीद अरबों पर उतारा जा रहा था,
दीरियाह की इमारत टर्कों के दायरा इख्तियार से बहुत दूर क़ायम थी, तुर्कियों को उनसे कोई खतरा नहीं था, तुर्क उस वक़्त इराक़ के इलाके और हिजाज़ की इलाके में थे,
1818 में मुशरिक बिदती तुर्क ज़ालिमाओ ने अहले तौहीद मुवाहिद आल ए सऊद की पहली हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी, पहले अमान देकर किले से नीचे बुलवाया, फिर गद्दारी करके आल ए सऊद और शहर के तमाम नुमायां मर्दों को गिरफ्तार कर लिया, उस वक़्त दीरियाह के हाकिम अब्दुल्लाह बिन सऊद थे, तकरीबन 1200 अहले तौहीद मुवाहिडीन को गिरफ्तार करके तुर्क ज़ालिम फौज इस्तांबुल ले गई और उन मासूम मुवाहिडीन को फांसी दे दी, बल्कि उनमें जो नुमायां से उन्हें तोप से उड़ा दिया,
ये सारा ज़ुल्म सिर्फ अहले तौहीद होने की वजह से किया था तुर्क ज़ालिम हुकूमत ने, और इस खबर के आम होने पर ईरान के शिया सफावी क़ातिल हुकूमत ने तुर्की हुकूमत के नाम मुबारकबाद का खत भेजा था,
फिरकापरस्ती और कौमपरस्ती के दलदल में तुर्क ज़माने से धंसे हुए हैं,
उर्दुगान ने भी बयान दिया था के अरब वहाबियों का दीन इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है, जबकि ये ईरानी सहाबा दुश्मन राफ्जियों को अपना भाई कहता है
नोट: चंद ही सालों के बाद आल ए सऊद ने अपनी हुकूमत बहाल कर ली, और धीरे धीरे पूरे जज़ीरा ए अरब पर तौहीद का झंडा लहरा कर टर्कों के सारे खुराफात मज़ारात और दरगाहों को मिटा दिया,
और दूसरी तरफ तुर्क अपने शर्क वा खुराफात के साथ दुनिया से रुखसत हो गए
आज एक बार फिर शर्क वा खुराफात के दिलदादे सर उठा रहें हैं मगर अल्लाह ताला अहले तौहीद का हामी हमेशा रहा है, और रहेगा, रहेगा नाम अल्लाह का ...
साभार: मौलाना अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi