बकरीद पर कुर्बानी और मुनकर ए हदीस का विधवा विलाप : (संक्षिप्त)
मुनकर ए हदीस फरमाते हैं:
" ये बिल्कुल दुरुस्त है की हज़रत खलील ए अकबर और हज़रत इस्माइल के तज़कार ए जलीला के ज़मन में क़ुरआन ने ये कहीं नहीं कहा के इस वाक्ए की याद में जानवरों को ज़ीबह किया करो, हत्ता के हज़रत इस्माईल की जगह मेंडा ज़ीबह करने का वाकया भी क़ुरआन में नहीं तौरात में है"
(क़ुरआन के फैसले पेज 54)
जवाब:
अब देखिए कुर्बानी ना करने के हीले के तौर पर क्या बहाना पेश किया है, और अवाम को धोका दिया है, जबकि अल्लाह ताला का इरशाद है
وَ فَدَیۡنٰہُ بِذِبۡحٍ عَظِیۡمٍ ﴿۱۰۷﴾
وَ تَرَکۡنَا عَلَیۡہِ فِی الۡاٰخِرِیۡنَ ﴿۱۰۸﴾ۖ
" और हमने एक बड़ी कुर्बानी के बदले इस्माईल को छुड़ा लिया, और इस वाक्ए (ज़ीबह अज़ीम) को पीछे आने वालों में (बाक़ी) छोड़ दिया "
(क़ुरआन अल साफ्फात आयात 106-107)
الفيدى
के माना किसी की तरफ से कुछ दे कर उसे मुसीबत से बचा लेना है (इमाम रागिब)
गोया अल्लाह ताला ने एक बड़ी कुर्बानी का औज़ाना ना देकर हज़रत इस्माईल की जान बचा ली, अब अगर इस बड़ी कुर्बानी की तफसील यानी " मेंडा" का लफ्ज़ क़ुरआन में नहीं बल्कि तौरात में हो तो इस से असल वाक्ए में क्या फर्क पड़ता है ??
फिर इस ज़ीबह अज़ीम के वाक्ए यानी सुन्नत ए इब्राहिमी को आने वाली नस्लों में बाक़ी छोड़ना भी क़ुरआन से साबित है,
साभार: Umair Salafi Al Hindi