Thursday, November 26, 2020

मज़लूम मदीना - हज़रत उस्मान राजिल्लाहु ताला अन्हुमा


 


मज़लूम मदीना - हज़रत उस्मान राजिल्लाहु ताला अन्हुमा
मैं तारीख से लड़ना नहीं चाहता अगर तारीख कहे हज़रत हुसैन का पानी 10 दिन बंद रहा तब भी ठीक, अगर तारीख कहे हज़रत हुसैन का पानी 7 दिन बंद रहा तब भी ठीक ,लेकिन तारीख को छेड़ने की बजाए तारीख का मुताला करता हूं तो मुझे नज़र आता है इस्लाम की तारीख में सिर्फ हज़रत हुसैन की ही शहादत मजलूमाना या दर्दनाक नहीं, बल्कि अगर हम 10 मुहर्रम की तरफ जाते हुए रास्ते में 18 जुल हिज्जह की तारीख पढ़ें तो एक ऐसी शहादत दिखाई देती है जिसमे शहीद होने वाले का नाम हज़रत उस्मान है
जी हां ! वही उस्मान जिसे हम जुल नुरैन (दो नूर वाला) कहते है।
वही उस्मान जिसे हम दामाद ए मुस्तफा कहते हैं।
वही उस्मान जिसे हम नाशिर ए कुरआन कहते हैं।
वही उस्मान जिसे हम खलीफा सोम कहते है।
वही उस्मान जो हज़रत अली की शादी का पूरा खर्चा उठाते हैं।
वही उस्मान जिसकी हिफाज़त के लिए हज़रत अली अपने बेटे हुसैन को भेजते हैं,।
वही उस्मान जिसे जनाब मुहम्मद रसूल अल्लाह का दोहरा दामाद कहते हैं,।
खैर ये बातें तो आपको तकरीरों में खतीब हजरात बताते रहते हैं क्योंकि हज़रत उस्मान की शान तो बयान की जाती है,
हज़रत उस्मान की सीरत तो बयान की जाती है।
हज़रत उस्मान की शर्म वा हया के तज़किरे तो बयान किए जाते हैं। उनके इस्लाम से पहले और इस्लाम के बाद के वाकयात सुनाए जाते हैं लेकिन बदकिस्मती ये के उनकी मजलूमियत को बयान नहीं किया जाता, उनकी दर्दनाक शहादत के किस्से को अवाम के सामने नहीं लाया जाता।
तारीख की चीखें निकल जायेगी अगर हज़रत उस्मान की मजलूमियत का ज़िक्र किया जाए। मैं कोई आलिम या खतीब नहीं लेकिन मैं इतना जानता हूं के उस्मान वह मजलूम था।
जिसका 40 दिन पानी बंद रखा गया, आज वह उस्मान पानी को तरस रहा है जो कभी उम्मत के लिए पानी के कुएं खरीदा करता था,
हज़रत उस्मान जब कैद में थे तो प्यास की शिद्दत से जब निढाल हुए तो आवाज़ लगाई है कोई जो मुझे पानी पिलाएं ??
हज़रत अली को जब पता चला तो मशकीजा लेकर अली उस्मान का साकी बनकर पानी पिलाने आ रहें हैं,
हाय ...! आज करबला में अली असगर पर बरसने वाले तीरों का ज़िक्र होता है लेकिन हज़रत अली के मशकीजे पर बरसने वाले तीरों का जिक्र नहीं होता, बागियों ने हज़रत अली के मशकीज़े पर तीर बरसाने शुरू किए तो अली ने अपना अमामा हवा में उछाला ताकि उस्मान की नज़र पड़े और कल कयामत के रोज़ उस्मान अल्लाह को शिकायत ना लगा सकें के अल्लाह मेरे होंट जब प्यासे थे तो तेरी मखलूक से मुझे कोई पानी पिलाने ना आया,
करबला में हज़रत हुसैन का साकी अगर अब्बास था
तो मदीना में हज़रत उस्मान का साकी अली था।
उस उस्मान को 40 दिन हो गए एक घर में बन्द किए हुए जो उस्मान मस्जिद नब्वी के लिए जगह खरीदा करता था,
आज वह उस्मान किसी से मुलाकात नहीं कर सकता जिसकी महफिल में बैठने के लिए साहबा जूक दर जूक आया करते थे,
40 दिन गुजर गए और उस्मान को खाना नहीं मिला जो अनाज से भरे ऊंट नबी की खिदमत में पेश कर दिया करता था,
आज उस उस्मान की दाढ़ी खींची जा रही है जिस उस्मान से आसमान के फरिश्ते भी हया करते थे,
आज उस उस्मान पर ज़ुल्म किया जा रहा है जो कभी गज़वा उहूद में हुज़ूर नबी करीम का मुहाफिज था,
आज उस उस्मान का हाथ काट दिया गया जिस हाथ से नबी करीम मुहम्मद (sws) की बैय्यत की थी,
हाय उस्मान ...! मैं नुक्ता दां नहीं मैं आलिम नहीं जो तेरी शहादत को बयान करूं और दिल फट जाएं आंखें नम हो जाएं,
आज उस उस्मान के जिस्म पर बरछी मार कर लहूलुहान कर दिया गया जिस उस्मान ने बीमारी की हालत में भी बेगैर कपड़ों के कभी गुस्ल ना किया था,
आज नबी ए करीम मुहम्मद (sws) की दो बेटियों के शौहर को ठोकरें मारी जा रही हैं,
18 जुल हिज्जाह 35 हिजरी है जुमा का दिन है हज़रत उस्मान रोज़ा की हालत में हैं बागी दीवार फलांग कर आते हैं और हज़रत उस्मान की दाढ़ी खींचते हैं, बुरा भला कहते हैं एक बागी पीठ पर बरछी मारता है एक बागी लोहे का आहिनि हथयार सर पर मारता है एक तलवार निकालता है हज़रत उस्मान का हाथ काट देता है, वही हाथ जिस हाथ से आपकी बैय्यत की थी, कुरआन सामने पड़ा था खून कुरआन पर गिरता है तो कुरआन भी उस्मान की शहादत का गवाह बन गया, उस्मान जमीन पर गिर पड़े तो उस्मान को ठोकरें मारने लगे जिससे आपकी पसलियां तक टूट गईं, हज़रत उस्मान बागियों के जुल्म से शहीद हो गए,
इस्लाम वह शजर नहीं जिसने पानी से गिजा पायी,
दिया खून सहाबा ने फिर उसमे बहार आई।
साभार: Umair Salafi Al Hindi