Tuesday, November 24, 2020

तौहीद की कद्र पूछनी है तो उनसे पूछो


 


तौहीद की कद्र पूछनी है तो उनसे पूछो ! जो शिर्क की बस्तियों से निकल कर तौहीद की बुलंदियों पर आए,
काबा के रब की कसम ! तुम ज़िन्दगी के आखिरी लम्हात तक खुदा का शुक्र करते रहो, तो उसके किये हुए इनाम का शुक्र अदा नहीं कर सकते के अल्लाह ने तुम्हे अपनी तौहीद का अलंबरदार बनाया है,
खता कारों ! एक दिन आयेगा के तौहीद वाले को अपनी तौहीद की गैरत आयेगी,
कहेगा अपने फरिश्तों को के जाओ, मुझसे अपने बंदों का जहन्नुम में जलते हुए देखना गवारा नहीं किया जाता, जिन्होंने मेरे साथ कभी शिर्क नहीं किया,
फरिश्ते कहेंगे अल्लाह ये बड़े गुनाहगार थे, इन्होंने बड़े जुर्म किए,
अल्लाह फरमाएगा बड़े बड़े जुर्म किए मगर मेरे साथ शिर्क तो नहीं किया था !!
फरिश्ते कहेंगे अल्लाह ये जलकर खाक हो चुके उनकी हड्डियां कोयला हो गई है, उनके चमड़े जल गए हैं, उनके चेहरे बदल गए हैं, उनके जिस्मों में बाल नहीं रहा !!
अल्लाह इनको जहन्नुम से निकाल कर किया करेंगे !!
अल्लाह पाक फरमाएगा :- मुझे मेरी खुदावंदी कि कसम ! मैं इनको जन्नत की नहरों में गोते दे दे कर इस तरह कर दूंगा जिस तरह माँ के पेट से आज ही फूंलो की तरह पैदा हुए हैं,
इन्होंने मेरे साथ किसी को शरीक नहीं किया और मैंने इनको रुसवा ना करने का फैसला कर रखा है,
आज जितनी बीमारियां हैं हमारे मुल्क की, हमारे अफ़राद की, हमारी कौम की , हमारी मिल्लत की,
इन सारी बीमारियों की असल जड़ शिर्क है,
(अल्लामा एहसान इलाही ज़हीर , कुरआन वा सुन्नत कांफ्रेंस सियालकोट 29 फरवरी 1987)
साभार: Umair Salafi Al Hindi