मुहर्रम उल हराम - आज शिर्क और बिदात का गहवारा
मुहर्रम उल हराम एक ऐसा मुकद्दस महीना जिसमें जमाना ए जाहिलियत में भी तमाम तरह की बुराइयां बन्द कर दी जाती थी, यहां तक कि लड़ाइयां भी मुल्तवी कर दी जाती थी लेकिन आज दुश्मन ए इस्लाम ने अपनी तखरीब कारी और गलीज हरकतों को उम्मत ए मुस्लिमा के अंदर घोल दिया और इसे एक शिर्क और बिदात का महीना बना दिया,
जिधर निकल जाओ नौहे और मर्सिया पढ़े जा रहें हैं, हर दूसरे घर में सोग मनाया जा रहा है, हर तरफ हाय हुसैन हाय हुसैन की आहो बाका है, कोई घर में बीवी फातिमा की कहानी पड़वा रहा है, कोई बीवी ज़ैनब की कहानी पड़वा रहा है,
एक तरफ मक्कारी और ढोंग के आंसू हैं और दूसरी तरफ मिठाई की दुकानें सजी हुई हैं,
एक तरफ सीनो और पीठों को मारा जा रहा है और काटा जा रहा है तो दूसरी तरफ फकीर , पैकी, अलम और ताज़िए बनाए जा रहें हैं,
हर तरफ अजीब हाल है, हर शक्ल पर बारह बजे हुए हैं,
वो जो करते हैं उन्हें करने दो मुसलमानों ये तो उन खबीसों और गलीज़ों पर अजाब है अल्लाह का जो कयामत तक जारी रहेगा, ये ऐसे ही अपना सीना पीटते रहेंगे क्यूंकि इसी सीने में अम्मी आयशा का बग्ज भरा है, हजरत अबू बक्र का बग्ज भरा है, हज़रत उमर फारूख, हज़रत उस्मान वा तमाम सहाबा रिजवानुल्लाह अलैहि अजमाइन का बुग्ज् भरा हुआ है, और सरों को इसलिए काटते हैं की इसी दिमाग में हज़रत हुसैन को शहीद करने और अहले बयेत को बदनाम करने के साजिश भरी हुई हैं,
फकीर:
ये फकीर बनने का सिस्टम ही नहीं समझ आया आजतक, ये फकीर क्यों बनाए जाते हैं बच्चे, अगर एक फ़कीर का बच्चा आ जाए तो बड़ी हिकारत से देखते हैं लेकिन इन 10 दिनों में तो बड़े बड़े अमीर और हैसियत, शोहरत और पैसे वाले अपने बच्चों को फकीर बनाते हैं,
ये फकीरी का तो पैसा हराम है इस्लाम में फिर ये कैसे आया इस मुकद्दस महीने में ??
पैंकी :
कुछ मुसलमान कमर में रस्सियां बांधे और घंटियां लटकाए बस दौड़ते रहते हैं नंगे पैर, कोई इधर भागा जा रहा है कोई उधर भागा जा रहा है, कुछ ग्रुप बनाकर इधर दौड़ते हैं कोई उधर दौड़ते हैं,
आज कल मॉडर्न हो गए तो बाइक पर तीन तीन - चार चार बैठे करतब दिखाते निकलते हैं, सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ दौड़ना और सिर्फ दौड़ना ही है, ना नमाज़ की फिक्र होती है ना सुन्नतों की, फर्जियत का कहीं नाम नहीं सुन्नतों के जनाजे निकले हुए हैं और बस भाग रहें हैं,
अल्लाह जाने ये दीन के लिए भाग रहें हैं या दीन से भाग रहें हैं, ये भी कहीं से साबित नहीं है नबी ए अकरम मुहम्मद (sws) से तो मुमकिन ही नहीं और सहाबा किराम ने कभी किया नहीं, ना ताबाई से ना तबा ताबाई से , ना किसी औलिया अल्लाह से , फिर ये कहां से आया ???
साभार :Umair Salafi Al Hindi