हज़रत अबू सईद खुदरी रिवायत करते हैं कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम माल तकसीम कर रहे थे के अब्दुल्लाह बिन खुवैसिरह तमिमी आया और कहने लगा ,अल्लाह के रसूल ! इंसाफ करें,
आपने फ़रमाया :-" तुम्हारा बुरा हो अगर में ही इंसाफ ना करूं तो फिर कौन इंसाफ करेगा ??
हज़रत उमर ने दरख्वास्त किया की अल्लाह के रसूल ! मुझे इजाज़त दें तो में इसका सफाया कर दूं, अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया
" इसे जाने दो, क्यूंकि इसके कुछ साथी होंगे जिनके नमाज़ और रोज़े के सामने तुम में से एक शख्स अपने नमाज़ वा रोज को हकीर समझेगा , वो दीन से ऐसे पार हो जायेगे जैसे तीर शिकार से पार हो जाता है, उस तीर के पर को देखा जाए तो उसमें कुछ नहीं मिलेगा, फिर उसकी नोक को देखा जाए तो उसमें कुछ नहीं मिलेगा, फिर उसकी लकड़ी को देखा जाए तो उसमें कुछ नहीं मिलेगा, वह तीर गोबर और खून से सबकत कर गया होगा, उनको पहचान ये होगी के उन में से एक ऐसा शख़्स होगा जिसका एक हाथ औरत के पिस्तान के मानिंद जुंबिश कर रहा होगा, वह मुसलमानों में तफ्रीक के दौर में निकलेगा "
हज़रत अबू सईद खुदरी ने कहा : " मैं शहादत देता हूं के हज़रत अली ने उनका सफाया किया और मैं उनके साथ था, और उस शख्स को उसी सिफत पर लाया गया जो मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम ने बयान किया, और उसी के बारे में ये आयात उतरी,
" उन मुनाफ़िक़ों में से कुछ मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम को सदकात के बारे में इलज़ाम देते हैं " (बुखारी 6933)
दूसरी हदीस में है में :- " आखिर ज़माने में कुछ बेवकूफ नौजवान पैदा होंगे जो बातें तो नबी ए अकरम मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम की करेंगे लेकिन उनका ईमान उनकी हंस्ली की हड्डी से नीचे नहीं उतरेगा, वह दीन से ऐसे पार हो जाएंगे जैसे तीर शिकार से पार हो जाता है, तुम उन्हें जिस जगह पाओ उन्हें क़त्ल करो क्योंकि जो उन्हें क़त्ल करेगा, कयामत के रोज़ उस सवाब मिलेगा " ( बुखारी 6930)
एक और हदीस में है के :- " उस तीर में शिकार के खून कोई निशान वा असर नहीं होगा, यानी दीन, क़ुरआन वा ईमान का उनके दिल में कोई असर नहीं होगा " ( बुखारी 6931)
हज़रत सहल बिन हनीफ ने कहा के मैंने खरजियों के बारे में मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम को फरमाए सुना और आपने अपना हाथ इराक़ की जानिब बढ़ा दिया के वहां से कुछ लोग निकलेंगे जो क़ुरआन पढ़ेंगे जबकि वह उनकी हंसली की हड्डी से नीचे नहीं उतरेगा, वह इस्लाम से ऐसे पार हो जाएंगे जैसे तीर शिकार से पार हो जाता है " ( बुखारी 6934)
इन हदीसो से को बातें साबित होती है वह ये हैं,
1- इस्लाम में खरीजियों की एक जमात नमूदार होगी,
2- वह इस्लाम के जाहिरी अमल को तशद्दुद के साथ अपनाएगी और मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम की बातें ही पेश करेगी, फिर भी क़ुरआन वा ईमान का उनके दिल पर कोई असर ना होगा,
3- वह दीन कि बातें करेगी और ज़ाहिरी आमल वा तिलावत क़ुरआन की पाबंद इसलिए रहेगी ताकि अहले ईमान उनके फरेब में आ जाएं
4- ये इस्लाम में तफर्रका के दौर में उभरेंगे,
चुनांचे ये हज़रत अली और हज़रत मुआविया की बाहिमी लड़ाईय्यों के ज़माने में नमूदार हुए, और हज़रत अली ने उनसे लड़ाइयां की, उन्होंने इराक़ के नजदीक " हररा " को अपना ठिकाना बनाया..
कुछ रिवायतों में ये भी है के मुहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के :- " ये इस उम्मत के कुत्ते होंगे और अगर में उन्हें पा गया तो उनका सफाया ऐसे ही करूंगा जैसे कौम ए आद का सफाया कर दिया गया और ये आगे भी बराबर पैदा होते रहेंगे "
ये हदीस खावरिजी के लिए अाई है उन्होंने जकात वा सदकात का इनकार किया और इनका फितना को हज़रत अली के दौर में खतम हुआ,
अब चमन बरेलवी इन हदीस को इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब पर सिर्फ इस लिए फिट करते हैं कि उनका कबीला बनी तमीम से था, और उन्होंने मजार तुड़वाई,
जबकि पक्की क़ब्र तुड़वाने का खास हुकम खुद रसूल अल्लाह मुहम्मद (sws) ने दिया था, और हज़रत अली ने हुकम की तामील की, आपकी हदीस को बिना चुं चरा के मानना ही ईमान है,
अब बरेलवी दावा तो नबी से मुहब्बत का करते हैं लेकिन हुकम मानने में चोरी से काम लेते हैं,
हदीस में बनी तमीम कबीले के लोगों की तारीफ भी हुई है कि आखिरी ज़माने में बनी तमीम से वो लोग निकलेंगे जो दज्जाल का सामना करेंगे बड़ी बेजीगरी से,