Friday, November 13, 2020

HAM ALAWI BHI HAIN AUR UMAWI BHI HAIN

 हम अलवी भी हैं और उमवि भी है।

हम हुसैनी भी हैं और यजीदी भी है।
हज़रत उस्मान राजियलाहू अनहू की शहादत के बाद सहाबा किराम की जमात में तीन गिरोह हो गए , हज़रत आयशा राजियलाहू अन्हा का , हज़रत अमीर मुआवीया राजियलाहू अनहू का, और तीसरा हजरत अली मुर्तजा राजियलाहू अनहू का,
हज़रत आयशा राजियलाहू अनहू को जब जंग ए जमल में शिकस्त हुई, उसके बाद सहाबा किराम दो गिरोहों में तकसीम हो गए, एक हज़रत अली राजियलाहू अनहू को मानने वाले अलवी और दूसरे हज़रत अमीर मूआविया राजियलाहू अनहू बनू उमैया के मानने वाले उमवी,
फिर इस तरह हज़रत यजीद रहमतुल्लाह अलैह को मानने वाले सहाबा कि एक जमात हो गई जो की बहुत बड़ी जमात थी ये ये कह लें कि मुकम्मल सहाबा किराम यजीद की बय्यत के तहत जमा हो गए
और दूसरी तरफ हज़रत हुसैन राजियलाहू अनहू और उनका अपना घराना था, गोया के हज़रत हुसैन राजियलाहू अनहू को किसी भी किबार सहाबी की बय्यत का शरफ हासिल ना हो सका लेकिन वो हमारे लिए मुआज़िज है,
सहाबा किराम का जो भी इख़तेलाफ था वह उनका आपस का मामला था,लेकिन हमारे लिए सब ही एहतेराम के लायक हैं, इसलिए हम ये कहते हैं के हम हुसैनी भी हैं और यजीदी भी हैं,
गैरों से क्या शिकवा जो सहाबा किराम को नहीं मानते वह तो सहाबा किराम पर तबर्रा बाज़ी करते हैं और गालियां निकालते हैं लेकिन अफसोस तो अपनों पर होता है, जैसे ये बात मुसल्लमा है के गैरों के ज़ख्म से अपनों के ज़ख्म से ज़्यादा गहरे होते हैं,
अफसोस तो हमने उन अहले हदीस भईयों और बहनों पर है जो ये बड़े फख्र से कहते हैं कि हम हुसैनी हैं यजीदी नहीं,
यही वह लोग है जिन्होंने यजीद पर तबर्रा बाज़ी का दरवाज़ा खोला, और ऐलानिया ये कहते हैं कि हम यजीदी नहीं बल्कि यजीद को फासिक वा फाजिर कह के 260 सहाबा किराम का तकाद्दुस भी मजरूह करते हैं जिन्होने यजीद रहमतुल्लाह की बय्यत की थी,
मेरे साथ इसी तरह एक नीम राफजी की बात हुई जो अपने आपको अहले हदीस कहता है और है मिर्ज़ा पलंबर का भक्त उसने बड़ा वाज़ह कहा के यजीद बातिल था और उनकी बय्यत करने वाले सहाबा किराम खता पर थे, अस्तागफिरुल्लह।
आओ नीम राफजियों ! यजीद वह दरवाज़ा है जिससे शिया हजरात गुजर कर सहाबा किराम पर तबर्रा बाज़ी करते हैं अगर हम वो दरवाज़ा बंद कर दें तो वह कभी भी सहाबा तक ना पहुंच सकें।
लेकिन अफसोस इस दरवाज़े को आज मौदूडियत की सोच वाले , इख्वानी, इसहाक झालवी से मुतासिर अहले हदीस के चंद अफ़राद और एक दो आलिमों ने इस दरवाज़े को तोड़ दिया है और शिआत को गुजरने के लिए रास्ता दे दिया है,
हाय! अफसोस इस घर को आग लग गई घर के चिराग से।
तहरीर : मौलाना अब्दुल खालिक इशहाक भट्टी
तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi
Blog: