पढ़ लिखकर भी जाहिल है अबकी जेनरेशन
हम तबाही की आखिरी सीढ़ी पर पहुंच चुके है।यूनिवर्सिटी और कॉलेज का खतरनाक माहौल और मखलूत तालीमी निज़ाम (Co Education)
आज का मखलूत तालीमी निज़ाम अपने साथ साथ खतरनाक नतीजे छोड़ कर जा रहा है, यूनिवर्सिटी में बढ़ती हुई यूरोपी फिजा की लहर इस हद तक फैल गई है जिसको काबू करना लगभग नामुमकिन सा हो गया है,
बर्रे सगीर में छोटी क्लासेज से मखलूत तालीम का आग़ाज़ करके बच्चों की जेहन साज़ी कर दी जाती हैं ताकि जवान होकर कोई मुश्किल पेश ना आए के हम आज़ाद ख्याल हैं,
मैं हैरान हूं सातवीं क्लास के स्टूडेंट वह भी गर्ल फ्रैंड ,बॉय फ्रैंड की बीमारी में मुब्तिला हो जाते हैं, एक रिपोर्ट के मुताबिक जिस कौम की आठवीं क्लास की स्टूडेंट नाजायज तरीके से हामिला हो जाए उस कौम में हवस परस्ती का बाजार गर्म हो जाता है इंसानियत जलकर राख हो जाती है
कॉलेज यूनिवर्सिटी में गर्लफ्रेंड एक आम मामूली बात समझी जाती है, किसी की इज्जत के साथ खेलना उनकी तस्वीर दोस्तों के साथ शेयर करना डेट पर जाना, रोमांस वगेरह इन बातों को सिर्फ गप शप समझा जाता है,
मैं हैरान हूं मर्द औरत की इज्जत तक इतनी आसानी से कैसे पहुंच जाता है,
मैं लड़कियों की तालीम का हरगिज़ मुखालिफ नहीं मगर आप बताएं ऐसी तालीम का क्या फायदा जिसमे औरत की इज़्ज़त वा अस्मत औरत का मकाम, औरत का वकार, औरत की शराफत , सब कुछ खो जाए,
अब बढ़ता हुआ फैशन , आज़ादी, हॉस्टल में होने वाले शर्मनाक काम ये सब इस्लामी तालीम से दूरी की वजह से हम पर अजाब से कम नहीं,
ड्रामे इनकी राह मजीद हमवार कर रहें हैं,
में वालीदैन पर हैरान हूं अल्लाह जाने उनको क्या हो गया है जान बूझ कर अंधे बहरे और गूंगे बन चुके हैं, एक ज़माना था वालिदैन औलाद पर मुकम्मल निगाह रखते थे, और औलाद भी वालिदैन का सहारा बन जाते थे, खूब खिदमत करते दुवाएं लेते थे,
मगर अब वालिदैन कुसूरवार हैं अपनी औलाद को खुद जहन्नम के घड़े में पहुंचाना चाहते हैं अब वालिदैन ने औलाद को आज़ादी दे दी और इसका नतीजा ये होता है औलाद बूढ़े वालिदैन को ओल्ड हाउस में छोड़ आते है,
वाह मुबारक ऐसे वालिदैन जिनकी तरबियत ऐसी थी,
तालीम ज़रूर हासिल करें मगर शाऊर हासिल करने के लिए मगर हम रोज बरोज़ बे शाऊर वा बेदीन हो रहें हैं
आज़ाद ख्याल लोग मेरी पोस्ट से इख्तिलाफ कर सकते हैं उनका कोई कसूर नहीं उन बेचारों को माहौल ही ऐसा फराहम किया गया था,
दीनी वा दुनियावी तालीम दोनो हासिल करें ताकि हम अच्छे इंसान के साथ साथ अच्छे मुसलमान भी बन सकें,
मेरा शिकवा वालिदैन से है आपकी औलाद आपके हाथों से निकल चुकी है आप सिर्फ अब ओल्ड हाउस जाने की तैयारियां करें,
ऐसी औलाद की तरबियत करते जो मौत के बाद आपके लिए दुआ करते आपको क़ब्र में राहत देते, मगर आपने उन्हें यूरोप कि तहज़ीब के हवाले कर दिया,
नौजवान नसल से गुज़ारिश है , गर्ल फ्रैंड के कल्चर को अब छोड़ दो दुनिया मकाफात अमल है, पता नहीं हम कहां जा रहें हैं, हम अपनी मंजिल से भटक चुके हैं, दीनदार लोगों से नफरत करना उनको हकीर समझना इसी वजह से हम पर अब काफ़िर भी हंसते हैं के मुसलमान अब अपने तरीके छोड़ कर हमारे तरीके अपना रहा है,
हम तो बस नाम के मुसलमान रह गए हैं.....!!
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog:islamicleaks.com