Tuesday, November 17, 2020

TAREKH FIQAH JAFARIYA

 तारीख फिकाह जाफरिया

1- नफरत ए सहाबा रखने वालों ने अपनी तारीख का नाम
"फिकाह जाफरिया " रखा है, और हज़रत इमाम जाफर सादिक रजियलाहू अन्हु से इसको मंसूब किया है, किसी दोस्त ने सवाल किया के फिकाह जाफरिया कब वजूद में अाई, तहकीक करने पर ये बात सामने अाई के इन किताबों को फिकाह जाफरिया की बुनियादी किताबें कहा जाता है,
1- "अल काफी " - अबू जाफर कुलैनी 330 हिजरी यानी हज़रत इमाम जाफर से तकरीबन 180 साल बाद,
2- "मन ला याहजरह अल फ़िका "- मुहम्मद बिन अली इब्न यायूयह कैमी 380 हिजरी यानी 230 साल बाद
3- " तहज़ीब उल अहकाम"
4- इस्तबसार , मुहम्मद बिन हसन अल तूसी 460 हिजरी तकरीबन 310 साल बाद,
2- उसूल काफ़ी नंबर 2 में लिखा है:-
" फिर इमाम बाकिर आए उनसे पहले तो शिया हज के मनासिक और हलाल वा हराम से भी वाकिफ ना थे, इमाम बाकिर ने शिया के लिए हज के अहकाम बयान किए और हलाल वा हराम में तमीज़ का दरवाजा खोला, यहां तक के दूसरे लोग इन मसाइल में शिया के मोहताज होने लगे जबकि उससे पहले शिया इन मसाइल में दूसरों के मोहताज थे, "
इस ऐतराफ से ज़ाहिर है के इमाम बाकिर से पहले शिया हलाल वा हराम से वाकिफ ही ना थे, पहली सदी हिजरी में फिकाह जाफरिया का वजूद ही नहीं था ,
3- हालांकि नबी ए अकरम मुहम्मद (sws) ने हलाल वा हराम की निशानदेही अपने दौर में फरमा दी थी, लेकिन अहले शिया हजरात के नज़दीक ये क़ुरआन मोतबर नहीं है और उनके नजदीक कुछ सहाबा के इलावा नौजुबिल्लह सब मुरतद हो गए,
इमाम बाकिर रजियलाहू अन्हु के बाद इमाम जाफर रजीअल्लाहू अन्हु का दौर है मगर इमाम जाफर ने अपने दौर में कोई फिकाह तदवीन की ही नहीं, इसका कोई भी सबूत नहीं मिलता,
फिकाह जाफरिया के ऐम्मा ए किराम:
1- मशहूर शिया मुजतहिद मुल्ला बाकिर मजलिसी " हक उल यकीन " पेज 371 पर लिखते हैं :-
" इस पर भी कोई शक नहीं के अहले हिजाज़ वा इराक़ , खुरासान वा फारस वगेरह से फुजला की एक जमात कसीर हज़रत बाकिर और हज़रत सादिक नेंज तमाम ऐम्मा अशहाब से थी, मुफस्सिल जरारह, मुहम्मद बिन मुस्लिम, अबू बरीदह, अबू बसीर, शाहीन, हमरान, जेकर मोमिन ताक , अम्मा बिन तिगलब, और मुंआविया बिन अम्मार के और इनके इलावा और कसीर जमात भी थी जिनका शुमार नहीं कर सकते "
अब जिनके नाम दिए गए हैं उनके बारे में शिया उलेमा ने क्या कहा :
जुराराह : इन अशहाब को इमाम जाफर के हम पाया तसव्वुर किया जाता है
”قال اصحاب زرارہ من ادرک زرارہ بن اعین فقد ادرک ابا عبداللہ (رجال کشی صفحہ 95)
लेकिन दूसरी जगह शिया किताब " हक उल यकीन " उर्दू पेज 722 पर लिखा जाता है कि
" ये हुकम ऐसी जमात के हक में है जिनकी ज़लालत पर सहाबा का इजमा है जैसा के जुरारह और अबू बसीर यानी जुरारह और अबू बसीर बिल इजमा गुमराह हैं "
अब सवाल ये है के जो खुद गुमराह है वह दूसरों की रहनुमाई क्या करेगा ,
इसी तरह रिजाल अल काशी पेज 107 पर लिखा है के इमाम जाफर ने फरमाया:
"जुराराह तो याहुद और नसारी और तस्लीन के कायलीन से भी बुरा है"
इमाम जाफर ने तीन मर्तबा फरमाया के अल्लाह की लानत हो जुराराह पर (रिजाल अल काशी पेज 100)
इसी किताब रिजाल अल काशी के पेज 106 पर है के जुरारह ने कहा :-
" जब मैं बाहर निकला तो मैंने इमाम की दाढ़ी में पाद मारा और मैंने कहा कि इमाम कभी निजात नहीं पाएगा "
इमाम जाफर ने लानत की जुरारह पर और जुरारह दाढ़ी में पाद मार रहा है, क्या ये दीन सिखाएंगे ??
अबू बसीर : फिकाह जाफरिया के मसाइल में ये शख्स भी सरदारों में शामिल है, अलबत्ता इमाम जाफर को रिजाल काशी पेज 116 पर लालची कह रहे हैं,
रावी कहता है के अबू बसीर इमाम जाफर के दरवाज़े पर बैठा था अंदर जाने की इजाज़त चाहता था मगर इमाम इजाज़त नहीं दे रहे थे अबू बसीर कहने लगा :-
" अगर मेरे पास कोई थाल होता तो इजाज़त मिल जाती फिर कुत्ता आया और उसके मुंह में पेशाब कर दिया "
कैसा आलिम है यह इमाम के पास जाने की इजाज़त भी नहीं मिलती और कुत्ता मुंह में पेशाब कर देता है,
मुहम्मद बिन मुस्लिम : इसका दावा है कि इमाम बाकिर से 30 हज़ार हदीसें सुनी और 16000 हदीसों की तालीम पाई (रिजाल अल काशी पेज 109)
अलबत्ता रिजाल काशी पेज 113 पर मुफस्सिल कहता है के मैंने इमाम जाफर से सुना फरमाते थे के मुहम्मद बिन मुस्लिम पर अल्लाह की लानत हो ये कहता है के जब तक कोई चीज वजूद में ना आए अल्लाह को उसका इल्म नहीं होता "
क्या अल्लामा मजलिसी ने जिन तीन आशहाब को सर फेहरिस्त रखा, क्या फिकाह जाफरिया इन जैसों की रिवायत की मरहूम ए मिन्नत है ?
जाबिर बिन यजीद : रिजाल काशी पेज 128 पर लिखा है के मैंने इमाम बाकिर से 70000 हदीस की तालीम पाई,
अब रिजाल काशी पेज 126 पर जुरारह कहता है मैंने इमाम जाफर से जाबिर की हदीस के मुतल्लिक पूछा तो फरमाया के ये मेरे वालिद साहब से सिर्फ एक बार मिला और मेरे पास तो कभी आया ही नहीं "
70000 हदीस की तालीम कैसे पाई ??
उसूल काफी पेज 496 में इमाम जाफर का बयान है :-
" ऐ अबू बसीर ! अगर तुम में से (जो शिया हो) तीन मोमिन मुझे मिल जाते जो मेरी हदीस ज़ाहिर ना करते तो मैं इनसे अपनी हदीसे ना छुपाता "
इसका मतलब हुआ के अल काफी, इस्तबसार , तहज़ीब और मना ला यहज़राह अल फकीहा की सूरत में हज़ारों हदीस जो इमाम जाफर से मंसूब हैं वह इनसे बेज़ारी का इजहार कर रहे हैं,
रिजाल काशी पेज 160 पर इमाम जाफर का कौल है के :
" मैंने कोई ऐसा आदमी नहीं पाया जो मेरी वसीयत कबूल करता और मेरी इताअत करता सिवाए अब्दुल्लाह बिन याफूर के "
तनबिया: इससे मालूम हुआ के 460 हिजरी तक फिकाह जाफरिया की कोई किताब नहीं थी और जो के चार किताब थी वह भी अल्लाह माफ़ करे झूठी होंगी, अहले शिया हजरात की किताबें जिनको आलिम कह रहें हैं उनको खुद गुमराह भी कह रहे हैं, इसके इलावा फिकाह जाफरिया के मसाइल बताए नहीं बल्कि छिपाए जाते थे जैसे के उसूल ए काफी पेज 340 पर लिखा है के इमाम अबू बाकिर ने फरमाया:
" अल्लाह ताला ने विलायत का राज़ जिबरील को राज़ में बताया, जिबरील ने ये बात मुहम्मद (sws) को खुफिया तौर पर बताया, हुज़ूर (sws) ने ये राज़ हज़रत अली को कान में बताया, फिर हज़रत अली ने जिसे चाहा बताया मगर तुम लोग इसे ज़ाहिर करते हो "
8वी सदी हिजरी में फिकाह जाफरिया की पहली किताब " लमघा दमिष्किया" जो मुहम्मद जमालुद्दीन मक्की ने लिखी मगर इसे वाजिबुल क़त्ल क़रार देकर क़त्ल कर दिया गया, इसे शहीद अव्वल का लकब भी दिया, फिकाह जाफरिया लिखने वालों के काम जेर ज़मीन ही होते हैं, इसके बाद अल्लामा जैनुल्दीन ने लमघा दमिश्किया की शराह " रोज़तुल बिहिया" के नाम से लिखी मगर उसको भी क़त्ल कर दिया गया,
नतीजा : अल्लामा मजलिसी ने अपनी किताब " हक उल यकीन" में लिखा के इन ऐम्मा ने जरारह, मुहम्मद बिन मुस्लिम, अबू बसीर ने फिकाह जाफरिया के लिए काम किया तो उन्होंने कोई किताब तसनीफ नहीं की, उनका ऐम्मा किराम से मिलना भी मुहाल नज़र आता है बल्कि ये ऐम्मा की तौहीन करते रहे हैं,
कानून : अहले सुन्नत का कानून बहुत अच्छा है के सहाबा किराम और अहले बैत रिज्वानुल्लह अलैहि अजमईन में से कोई भी मासूम नहीं था, इसलिए सहाबा और अहले बैत के मामलात में ज़बान बंद रखा जाए और सबको हक पर माना जाए ताकि कोई वस्वसा डाले तो ये कानून याद रखा जाए,
साभार: Umair Salafi Al Hindi
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