Friday, June 26, 2020

KYA HADIS ME WAARID FATEH QUSTUNTUNIYA SE MURAAD TURK SULTAN MUHAMMAD SAANI HAI ??




क्या हदीस में वारिद फतह कुस्तुनतुनिया से मुराद तुर्क सुल्तान मुहम्मद सानी है ??

फतह कुस्तुनतुनिया के ताल्लुक से एक हदीस है जिसमें आया है
: (لَتُفْتَحَنَّ القسطنطينيةُ، ولِنعْمَ الأميرُ أميرُها، ولنعمَ الجيشُ ذلكَ الجيشُ)۔ السيوطي (٩١١ هـ)، الجامع الصغير ٧٢٠٩ • صحيح

तर्जुमा : " कुस्तुनतुनिया जरूर फतह होगा, उसका अमीर क्या ही अच्छा होगा, और वह फौज क्या ही अच्छी होगी "
सवाल ये है के क्या उस अमीर से मुराद जिसकी नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने तारीफ की है वहीं मुहम्मद सानी है जिसने 855 हिजरी यानी 1452 ईसवी में कुस्तुनतुनिया पर हमला करके वहां से इसाइयों को बेदखल कर दिया था ??

वैसे भी क्या नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ऐसे सख्स की तारीफ कर सकते हैं जिसका अकीदा बातिल हो, बक्ताशी जैसे राफजीयत जदह खुराफाती सिलसिला तस्व्वुफ से वाबस्ता हो, नेज जिसमें हुकूमत बचाने की खातिर भाईय्यों भतीजों को क़त्ल करने के लिए तारिख का बदतरीन कानून बना दिया हो ??

चलिए देखते हैं हदीसों की रोशनी में फातह कुस्तुनतुनिया से मुराद क्या है, उसे कब फतह किया जाएगा, और फतह करने के वाले कौन लोग होंगे..

इस ताल्लुक से शेख हमूद तुवैजेरी अपनी किताब (إتحاف الجماعة ) में कहते हैं के हदीस में मौजूद फतह कुस्तुनतुनिया से मुराद वह फतह है जिसे मदीना कि फौज कुरब कयामत में करेगी, फिर दज्जाल निकलेगा, ये फतह अरबों के हाथ पर होगी ना की तुर्को के हाथ पर,
तफसील कुछ इस तरह है:

नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने खबर दी है के अलामात ए कयामत में से मुसलमानों और रूमियों के दरमियान एक बहुत बड़ी जंग भी है, और ये जंग जहूर ए महदी से पहले होगी, नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने उस जंग का नाम " मलहमा अल कुबरा " रखा है (The Great Slaughter), मुसलमान उस जंग में फतह हासिल करने के बाद कुस्तुनतुनिया की तरफ पेश कदमी करेंगे और उसे भी फतह कर लेंगे, और फिर उसके बाद दज्जाल का जहूर होगा
حَدَّثَنَا عَبَّاسٌ الْعَنْبَرِيُّ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا هَاشِمُ بْنُ الْقَاسِمِ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ ثَابِتِ بْنِ ثَوْبَانَ،‏‏‏‏ عَنْ أَبِيهِ،‏‏‏‏ عَنْ مَكْحُولٍ،‏‏‏‏ عَنْ جُبَيْرِ بْنِ نُفَيْرٍ،‏‏‏‏ عَنْ مَالِكِ بْنِ يَخَامِرَ،‏‏‏‏ عَنْ مُعَاذِ بْنِ جَبَلٍ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ "عُمْرَانُ بَيْتِ الْمَقْدِسِ خَرَابُ يَثْرِبَ،‏‏‏‏ وَخَرَابُ يَثْرِبَ خُرُوجُ الْمَلْحَمَةِ،‏‏‏‏ وَخُرُوجُ الْمَلْحَمَةِ فَتْحُ قُسْطَنْطِينِيَّةَ،‏‏‏‏ وَفَتْحُ الْقُسْطَنْطِينِيَّةِ خُرُوجُ الدَّجَّالِ،‏‏‏‏ ثُمَّ ضَرَبَ بِيَدِهِ عَلَى فَخِذِ الَّذِي حَدَّثَ أَوْ مَنْكِبِهِ،‏‏‏‏ ثُمَّ قَالَ:‏‏‏‏ إِنَّ هَذَا لَحَقٌّ كَمَا أَنَّكَ هَاهُنَا أَوْ كَمَا أَنَّكَ قَاعِدٌ يَعْنِي مُعَاذَ بْنَ جَبَلٍ".

हज़रत माज़ बिन जबल कहते हैं के नबी ए करीम मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :-" बैत उल मुकद्दस की आबादी मदीना की वीरानी होगा, तो एक अज़ीम जंग शुरू हो जाएगी, वो जंग शुरू हुआ तो कुस्तुनतुनिया फतह हो जाएगा, और कुस्तुनतुनिया फतह हो जाएगा तो फिर जल्द ही दज्जाल का जहूर होगा " फिर आप (sws) ने अपना हाथ माज बिन जबल की रान पर या मोंढे पर मारा जिनसे आप ये बयान फरमा रहे थे
फिर फ़रमाया :-" ये ऐसे ही यकीनी है जैसे तुम्हारा यहां होना होना या बैठना यकीनी है "

( सुनन अबू दाऊद किताब उल मलहिम हदीस 4294)
حَدَّثَنَا النُّفَيْلِيُّ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا عِيسَى بْنُ يُونُسَ،‏‏‏‏ حَدَّثَنَا الْأَوْزَاعِيُّ،‏‏‏‏ عَنْ حَسَّانَ بْنِ عَطِيَّةَ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ مَالَ مَكْحُولٌ،‏‏‏‏ وابْنُ أَبِي زَكَرِيَّا إِلَى خَالِدِ بْنِ مَعْدَانَ وَمِلْتُ مَعَهُمْ فَحَدَّثَنَا،‏‏‏‏ عَنْ جُبَيْرِ بْنِ نُفَيْرٍ،‏‏‏‏ عَنِ الْهُدْنَةِ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ جُبَيْرٌ:‏‏‏‏ انْطَلِقْ بِنَا إِلَى ذِي مِخْبَرٍ ٍ رَجُلٍ مِنْ أَصْحَابِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَأَتَيْنَاهُ فَسَأَلَهُ جُبَيْرٌ عَنِ الْهُدْنَةِ،‏‏‏‏ فَقَالَ:‏‏‏‏ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ،‏‏‏‏ يَقُولُ:‏‏‏‏ "سَتُصَالِحُونَ الرُّومَ صُلْحًا آمِنًا فَتَغْزُونَ أَنْتُمْ وَهُمْ عَدُوًّا مِنْ وَرَائِكُمْ فَتُنْصَرُونَ وَتَغْنَمُونَ وَتَسْلَمُونَ ثُمَّ تَرْجِعُونَ،‏‏‏‏ حَتَّى تَنْزِلُوا بِمَرْجٍ ذِي تُلُولٍ فَيَرْفَعُ رَجُلٌ مِنْ أَهْلِ النَّصْرَانِيَّةِ الصَّلِيبَ فَيَقُولُ:‏‏‏‏ غَلَبَ الصَّلِيبُ فَيَغْضَبُ رَجُلٌ مِنَ الْمُسْلِمِينَ،‏‏‏‏ فَيَدُقُّهُ فَعِنْدَ ذَلِكَ تَغْدِرُ الرُّومُ وَتَجْمَعُ لِلْمَلْحَمَةِ".

हस्सान बिन अतिया कहते है के मखूल और इब्न अबी ज़करिया : खालिद बिन मादान की तरफ चले मै भी उनके साथ चला तो उन्होंने हम से खुबैर बिन नुफैर के वास्ते से सुलह के मूताल्लिक बयान किया, खूबैर ने कहा : हमारे साथ नबी ए करीम मुहम्मद (sws) के असहाब में से जो मुकबर नामी एक सख्स के पास चलो चूनाचे हम उनके पास आए, खुबैर ने उनसे सुलह के मुतल्लिक दरयाफ्त किया तो उन्होंने कहा , मैंने रसूलल्लाह मुहम्मद (sws) को फरमाते सुना :- " अनकरीब तुम रूमिओं के साथ सुलह करोगे, फिर तुम और वह मिल कर एक ऐसे दुश्मन के साथ लड़ोगे जो तुम्हारे पीछे है, उस पर फतह पाओगे, और गनीमत का माल लेकर सही सालिम वापस होगे यहां तक के एक मैदान में पहुंचोगे को टीलों वाला होगा,

फिर ईसाईयों ने से एक सख्स सलीब उठाएगा और कहेगा :- सलीब गालिब अाई, ये सुनकर मुसलमानों में से एक सख्स गुस्सा में आएगा और उसको मारेगा, उस वक़्त अहले रूम अहद शिकनी करेंगे, और लड़ाई के लिए अपने लोगों को जमा करेंगे "

बाज़ रावियों ने ये भी बयान किया है की उस वक़्त मुसलमान जोश में आ जाएंगे और अपने हथियारों की तरफ बढ़ेंगे और लड़ने लगेंगे, तो अल्लाह ताला उस जमात को शहादत से नवाजेगा "

नोट : एक बुलंद जगह पर डेरा जमाओगे, मुझे अहले इल्म में से कोई ऐसा सख्स नजर नहीं आया जिसने उस जगह की तहदीद की हो, बाज़ाहिर ऐसा मालुम होता है के वह जगह " मर्ज उल दाबिक" होगी, जैसा के एक दूसरी हदीस में वजेह है, जिसमें रसूलल्लाह मुहम्मद (sws) फरमाते है
: لاَ تَقُومُ السَّاعَةُ حَتَّى يَنْزِلَ الرُّومُ بِالأَعْمَاقِ أَوْ بِدَابِقَ

"कयामत उस वक़्त तक कायम ना होगी जब तक के रूमी अमाक़ या दाबिक़ ना पहुंच जाएं "
(सही मुस्लिम किताब उल फ़ितन हदीस 2897, अबू दाऊद किताब उल मलाहीम 4292,4293)
सही मुस्लिम में इस वाकेये की तफसील कुछ इस तरह है

हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है के रसूलल्लाह मुहम्मद (sws) ने फ़रमाया :-" कयामत उस वक़्त तक कायम नहीं होगी जब तक रूमी अमाक या दाबीक़ ना पहुंच जाएं ( ये जगह शाम में हलब नामी शहर के करीब है, जंग की जगह यही होगी ) फिर उनके लिए मदीना से एक लश्कर रवाना होगा, वह उस ज़माने के बेहतरीन लोगों पर मुष्तमिल होगा, जब दोनों लश्कर सफ आरा होंगे तब इसाई कहेंगे :- हमें उन लोगों से लड़ाई कर लेने दो जो हम में से गिरफ्तार हों गए थे,

( ईसाईयों की बात से मालूम होता है के मुसलमानों और इसाइयों के बीच मुताद्दीद लड़ाईयां पहले भी हो चुकी होंगी जिनमें मुसलमानों को फतह हुई थी और इसाइयों को कैदी बना लिया गया था, और वह कैदी मुसलमान हो गए थे और अब इस्लामी लश्कर में शामिल हो कर इसाइयों से जिहाद करने आए होंगे )
मुसलमान कहेंगे :-" नहीं ! अल्लाह की कसम ! हम तुमको अपने भईयों से लड़ने के लिए नहीं छोड़ेंगे, "

फिर वह उनसे लड़ेंगे तो उनमें से एक तिहाई ( मुसलमान) भाग जाएंगे, अल्लाह ताला उनकी तौबा कभी क़ुबूल नहीं करेगा, और एक तिहाई उनमें से क़त्ल कर दिए जाएंगे, वह अल्लाह ताला के नजदीक अफजल शहीद होंगे, बाक़ी तिहाई फतह पा लेंगे, वह कभी आजमाइश में मुब्तिला नहीं होंगे, यही लोग कुस्तुनतुनिया को फतह कर लेंगे, जिस वक़्त वो माल ए गनीमत तकसीम करेंगे और अपनी तलवारें जैतून के दरखतों पर लटका देंगे तो अचानक शैतान चीख मार कर कहेगा : तुम्हारे पीछे तुम्हारे घरों में दज्जाल पहुंच गया है, मुसलमान वहां से निकल पड़ेंगे, हालांकि ये खबर गलत होगी, जब ये मुल्क ए शाम पहुंचेंगे तब हकीकत में मसीह दज्जाल का नुजूल होगा "

एक दूसरी रिवायत में है के रुमियों से जंग के बाद अहले इस्लाम माल ए गनीमत की तकसीम का मौका भी ना मिला होगा और वह दज्जाल से लड़ाई की तैयारी कर रहे होंगे, सफें दुरुस्त कर रहे होंगे के नमाज़ का वक़्त हो जाएगा और उसी वक़्त ईसा इब्न मरयम नूजूल फरमाएंगे

( सही मुस्लिम किताब उल फितन हदीस 2897)

नोट : हदीस में मौजूद फतह कुस्तुनतुनिया से मुराद वो फतह है को कुरब कयामत में मल्हमा अल कुबरा के वक़्त होगा, और ये फतह अहले मदीना और दीगर मुसलमानों के हाथ पर होगी,

साभार : मौलाना अजमल मंजूर मदनी
हिंदी तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi