Tuesday, June 16, 2020

HAMARI MASJID KE IMAM CHOR HAIN ??




हमारी मस्जिद के इमाम चोर हैं ?? ( एक नसीहत अमूज वाकिया )

एक बार अफ्रीका के एक गांव में एक इमाम मुकर्रर किए गए, बेहतरीन हाफ़िज़ होने के साथ साथ क़ुरआन मजीद की तिलावत बड़ी शानदार करते थे, वक़्त के पाबंद और तकवे वाले थे, लिहाज़ा लोगों को बहुत पसंद आए, गांव के लोग बड़ी इज्जत करने लगे, उस गांव का हर आदमी उस इमाम की दावत करना अपने लिए इज्जत समझता और बढ़ चढ़ कर इज्जत अफजाई की कोशिश करता इसलिए इमाम साहब की खाने की बारी लग गई थी, रमज़ान का महीना शुरू हो गया, आदत के मुताबिक गांव के एक आदमी ने बड़े शौक से इमाम साहब को दावत दिया, उसने इमाम साहब की बड़ी ताज़ीम वा तकरीम किया, दस्तरखान को तरह तरह के पकवान से सजाया गया, इमाम साहब खाने से फारिग हुए और खुशदिली से दुआएं देते हुए रुखसत हो गए,

उधर उस शख्स की बीवी दस्तरख्वान समेटने अाई तो उसे याद आया के दस्तरख्वान के करीब उसने एक मोटी रकम रख कर भूल गई थी मगर अब उसका कहीं नाम ओ निशान नहीं था, पूरा कमरा और घर छान मारा मगर वह रकम ना मिल सकी, जब उसका शौहर नमाज़ पढ़ कर घर आया तो बीवी ने सारा माजरा कह सुनाया शौहर ने भी रकम के ताल्लुक से ला इलमी का इजहार किया, थोड़ी देर गौर और फिक्र करने के बाद उन्होंने सोचा के आज इमाम साहब के इलावा हमारे घर और कोई नहीं आया था, और इस घर में हमारे सिवा इस घर में एक दूध पीती बच्ची है, लिहाज़ा हो या ना हो पैसे इमाम साहब ने ही उठाए है,

उस आदमी को बड़ा गुस्सा आया के हमने ही इमाम साहब को इस मुबारक और बाबरकत महीने में दावत दी और इमाम साहब ने उसका ये सिला दिया, मगर उसने शर्म के मारे इमाम साहब से कुछ पूछा नहीं अलबत्ता उस रोज़ के बाद से वह इमाम साहब से कतराने लगा,

इस घटना को पूरा एक साल बीत गया, फिर रमज़ान के महीने में उसी घर में इमाम साहब की दावत की बारी आ गई,
शौहर ने बीते रमज़ान के वाक्ये को सामने रखते हुए बीवी से मशवरा किया, बीवी अच्छी थी शौहर से बोली हो सकता है इमाम साहब को किसी परेशानी या मजबूरी रही हो इस लिए उन्होने ऐसा किया हो, हम उन्हें माफ कर दें ताकि अल्लाह पाक हमें बख्स दे,

चुनंच इमाम साहब को फिर दावत दी गई, शाम में जब सब लोग खाना खा चुके तो उस आदमी ने इमाम साहब से कहा :
" क्या आपने महसूस किया के पिछले रमज़ान से मैं आप से कतराने लगा था ?"

इमाम साहब बोले जी हां ! मगर मारूफियत की वजह से सबब दरयाफ्त ना कर सका, उसने कहा मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं आप उसका सही सही जवाब दीजिए, पिछली बार मेरी बीवी दस्तरख्वान के पास कुछ पैसे भूल गई थी जो आपके जाने के बाद गायब हो गए थे, कहीं वह पैसे आपने तो नहीं उठा लिए थे ??
इमाम साहब फौरन बोले जी हां ! मैंने ही उठाया था ! ये सुनकर उस आदमी के होश उड़ गए, इमाम साहब ने कहा के :
" मैंने दस्तरख्वान के करीब कुछ नोट देखा जो हवा की वजह से बिखर गए थे, खिड़की खुली हुई थी और पंखा चल रहा था, मुझे खदशा हुआ के कहीं नोट उड़ ना जाए, फिर मैंने उन नोटों को जमा करके उठा लिया..."

इतना कह कर सर झुका कर इमाम साहब रोने लगे, घर वाले हैरत से इमाम साहब को देखने लगे, फिर उन्होने कहा तुम्हे मालूम है के मैं क्यूं रो पड़ा ??

मैं इस बात पर नहीं रो रहा के तुमने मुझपर इलज़ाम लगाया और बोहतान तराशी किया बल्कि इस बात पर रो रहा हूं कि आज पिछले एक साल से तुम्हारे घर में किसी ने भी क़ुरआन मजीद छुआ तक नहीं, अगर एक बार ही क़ुरआन मजीद सिर्फ खोल ही लेते तो अपने पैसे पा लेते,
इतना सुनते ही वह आदमी दौड़ा दौड़ा क़ुरआन मजीद के पास गया और उसे खोल कर देखा तो उसमें सारे पैसे मौजूद थे,

अल्लाह ताला हमें क़ुरआन पड़ने की तौफीक दे और बड़गुमानी से बचाए.. आमीन

हिंदी तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi