Ertugrul तारिख के आइने में, और कुर्द इकतेलाफ
किसी भी सीरीज का ये समझ कर बॉयकॉट करना की इससे उस सीरीज के हीरो की इज़्ज़त मजरूह होती है ये सही नहीं है !
जब हम इतिहास में झांकते हैं तो सिर्फ इतना पता चलता है कि जब चंगेज खान ने सेंट्रल एशिया पर हमला किया तो काई कबीला अपनी जान बचाकर अनातोलिया आ गया उस वक़्त काई कबीले की तादाद 400 थी, जब ये अनातोलिया में दाखिल हुए तो सलजूकी फौज एक छोटी मंगोल टुकड़ी से जंग कर रही थी, काई कबीला के लोग सलजुकी फौज के साथ शामिल हो गए, और आखिर में सलजुकि फौज ने मोंगोलियों को हरा दिया,
इस बात से खुश होकर सलजुकी बादशाह ने काई को इनाम के तौर पर एक अनातोलिया के सुदूर इलाके ने एक ज़मीन का टुकड़ा दे दिया, जब कभी भी सलजुकिओं को इनकी जरूरत होती इन्हें बुला लेते, इतिहास में इनका मुसलमान होना भी मशकूक है, ये कब मुसलमान हुए ये भी मशकुक है,
कुछ इतिहास कारो ने Ertugrul के बाप के नाम को लेकर इख्टेलाफ किया है, कुछ कहते हैं कि इसके बाप का नाम काई कबीले का सरदार गुंदुज अल्प था, तो कोई कहता है सुलेमान शाह, कुछ कहते हैं दोनों एक है,
बस इसके इलावा आप पूरी तारीख पढ़ लिए आपको कुछ नहीं मिलेगा, हा अगर कोई Dirilis Ertugrul सीरीज को देख कर इतिहास समझता है तो उसके पास बताने को बहुत कुछ है,
और सबसे बड़ी बाद उस दौर के दो मशहूर आलिम वा इतिहास कार, काजी बहाउद्दीन शद्दाद और इमाम इब्न तैमिय्याह मौजूद थे, काजी बहुद्दीन शाद्दाद ने नूरुद्दीन जंगी और सलाहुद्दीन अय्यूबि सल्तनत का पूरा इतिहास लिखा है और इमाम इब्न तैमिया ने मंगोलिओ का लेकिन उनकी किताबों में आपको Ertugrul के कारनामे बिल्कुल नजर नहीं आएंगे, जबकि ये दो सल्तनत हकीकी तौर पर सलजुकिओ के मातहत थी और फरमा बरदार थी
आखिर क्यों तुर्की को इतिहास से छेड़ छाड़ करने की जरूरत महसूस हुई, वजह है तुर्क और कुर्द इख्टिलाफ,
सबको पता है सलाहुद्दीन अयूबी और नूरुद्दीन जंगी कुर्दी थे, वहीं कुरदी सूफियों के खिलाफ सख्त थे तो तुर्क सुफियत में डूबे हुए थे,
सबको पता है सलाहुद्दीन अयूबी और नूरुद्दीन जंगी कुर्दी थे, वहीं कुरदी सूफियों के खिलाफ सख्त थे तो तुर्क सुफियत में डूबे हुए थे,
सलजुकी सल्तनत के कमजोर होने के बाद कूर्दी ही खिलाफत के असल वारिस थे, उस वक़्त सलाहुद्दीन के जान नशीन शाम और मिस्र में सलीबियों और मांगोलियो से उलझे हुए थे, तो दूसरी तरफ सलजुकी सल्तनत अपनी आखिरी सांस गिन रही थी,
उसके मरने के बाद बिना कुर्दों के मशवरे से Ertugrul के छोटे बेटे उस्मान को खलीफा बना लिया गया, तब से शुरू हुआ कुर्द और तुर्क का असली इक्तेलाफ , जो आज तक चला आ रहा है, जिस तरह का ज़ुल्म भारत कश्मीरियों पर करता है उसकी तरह का जुल्म तुर्की कुर्दों पर कर रहा है,
कुर्दों की मांग है कि हमें आज़ाद किया जाएं, इसलिए वो आजादी के लिए कोशा है, जब कुर्द ने अमेरिका के साथ मिलकर सीरिया और तुर्की में कुछ इलाके को दायेश से आज़ाद करा लिया तब मौके पर अमेरिका और तुर्क ने कुर्दों को धोका दे दिया, और अमेरिका निकल भागा और तुर्क ने फिर कुर्दों की नसल कुशी शुरू कर दी, जो आज भी जारी है,
खैर पोस्ट लंबा हो रहा है, अपनी बात का यही इक्तिमाम करता हूं,
UmairSalafiAlHindi