कुछ मुसलमानों पर ताज्जुब है,
जो इन रमज़ान के बबरकत दिनों में रुकु वा सजूद हर हाल में अपने रब से दुआ करते हैं,
"*اللهم إنك عفو تحب العفو فاعف عني"*
" ऐ अल्लाह बेशक तू माफ़ करने वाला है और माफी को पसंद फरमाने वाला है पस मुझे माफ़ कर दे "
वह रब से माफी का तलबगार है लेकिन लोगों को माफ़ नहीं करता,
ना अपने रिश्तेदारों और कराबतदारों के साथ अफू वा दरगुज़र का मामला करता है,
और ना मुसलमान भईयों को माफ़ कर रहा है,
क्या उसे अल्लाह से शर्म नहीं आती के खुद अल्लाह से माफी का सवाल कर रहा है लेकिन अल्लाह के बंदों को माफ़ नहीं कर रहा है,
अल्लाह के बंदों को माफ़ कर दिया करो !
शायद अल्लाह तुम्हे भी माफ़ कर से,
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*﴿ وَليَعفوا وَليَصفَحوا أَلا تُحِبّونَ أَن يَغفِرَ اللَّهُ لَكُم وَاللَّهُ غَفورٌ رَحيمٌ﴾:*
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*﴿ وَليَعفوا وَليَصفَحوا أَلا تُحِبّونَ أَن يَغفِرَ اللَّهُ لَكُم وَاللَّهُ غَفورٌ رَحيمٌ﴾:*
( माफ़ कर दिया करें, दरगुज़र फरमा दिया करें , क्या आप नहीं चाहते के अल्लाह आपको माफ़ कर दे, बेशक अल्लाह बहुत ज़्यादा बख्शने वाला और रहम करने वाला है )
साभार : इमाम ए हरम डॉक्टर सऊद अश शुरैम, इमाम मस्जिद हराम
हिंदी तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi