Thursday, June 18, 2020

EK FAAHISHA AURAT KI KAHANI




एक फहीशा औरत की कहानी


ये एक फहिशा औरत का घर है उसको बहुत जगह से राशन आता रहता है, (जरूर पढ़ें )
राशन की तकसीम का सिलसिला शुरू था, एक पुराने मकान पर नजर पड़ी, उसका दरवाजा खटखटाना चाहा था के साथ में आए मुहल्ले के एक आदमी ने माना कर दिया, पूछने पर वह कहने लगा साहब रहने दें, ये एक फाहिशा औरत का घर है, इसको बहुत जगह से राशन आता रहता है,
ये बात सुनकर मुझे यकीन हो गया के मुहल्ले में से एक ने भी उसको राशन फराहम नहीं किया होगा, जैसे तैसे मैंने उससे बहस करके उसके दरवाजे पर दस्तक दी, अंदर से धीरे से आवाज़ अाई, कौन ??
मैंने बताया राशन सप्लाई कर रहें हैं, आप लेना पसंद करेंगी ??
तो इंतेहाई गमगीन सी आवाज़ अाई के आप वापस चले जाएं पहले ही से इस मुहल्ले के लोग हमें जीने नहीं देते, हम गुज़ारा कर लेंगे, आप की महरबानी आप मुहल्ले के शरीफ लोगों में तकसीम कर दें,
उसके लहजे को महसूस करके मैंने बाजिद होकर कहा : आप मुझे अपना भाई समझें और मुहल्ले वालों कि फिक्र ना करें, बहुत असरार करने के बाद उस औरत ने अपनी बैठक का दरवाज़ा खोला और हमने राशन और आटे का थैला वगेरह उसके घर रख दिया,

वह औरत खुद पर्दे में अाई और शुक्रिया अदा करने लगी लेकिन दिल मुत्मइन नहीं था क्यूंकि वह बापर्दा औरत लग रही थी,
मुहल्ले का एक आदमी भी मेरे साथ था जो बार बार मुझे चलने के लिए कह रहा था, उस आदमी की बातों को नजर अंदाज करके मैंने जैसे वैसे हिम्मत की और उस औरत से पूछ लिया के बहन आपने ऐसा क्यूं कहा के घर में राशन मौजूद है ??
कहने लगी : भाई घर में आलू पड़े हैं, जो पिछले एक हफ्ते से बना कर खा रहें हैं, मुहल्ले में से किसी ने खबर तक ना ली, औरतें मेरे घर नहीं आती, अब मैंने पूछा : ऐसा क्यूं ??

वो बेकस औरत आंखो में आंसू लिए बोली मेरे शौहर को वफात पाए 2 साल का अर्सा हो गया है उस वक़्त हालात बहुत अच्छे थे , मेरे 2 बच्चे हैं, कुछ वक़्त ठीक गुज़रा मेरे वालिद जितना कर सकते थे करते रहे, उनकी वफात के बाद हालात खराब होना शुरू हो गए बच्चों का और घर का निज़ाम मुश्किल हो गया,

एक दिन मेरे शौहर का करीबी दोस्त कुछ अरसा बाद बाहर से आया, उसने मुझसे बहुत अफसोस किया और मुझे कुछ पैसे दे कर चला गया, फिर वह कुछ दिन के बाद आया और मुझे घर का कुछ राशन दे गया, दूसरी बार जब लोगों ने मेरे घर के बाहर गाड़ी खड़ी देखी तो तरह तरह की बातें करना शुरू कर दी, फिर जब वह वापस बेरून मुल्क लौटने लगा तो जाते हुए मेरे घर आया और कहा : बहन ये मेरा नंबर है आपको किसी भी चीज की जरूरत हो तो अपने भाई से कहना किसी मुहल्ले दार से मांगने की जरूरत नहीं,

जब वह बाहर निकला तो मुहल्ले के लोगों ने उसे पकड़ कर मारना शुरू कर दिया के तुमने हमारे मुहल्ले में गंद मचाया हुआ है, ये सुनकर मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया के तुम लोगों ने मेरा हाल तक ना पूछा और अगर कोई मेरा भाई बनकर मेरा खयाल कर रहा है तो तुम उसे भी मार रहे हो,
शर्म से मेरी जान निकली जा रही थी के इतनी हमदर्दी का ये सिला मिला उसे,
वह भाई उनको समझाता रहा के ये मेरी बहन जैसी है लेकिन मुहल्ले के लोगों को जैसे एक तमाशा मिल गया लगाने को,
खैर वह जान छुड़ा कर वहां से चला गया, कुछ अरसा तक मुझे अगर कभी जरूरत होती तो मैं कॉल कर देती शर्मशार होकर उनको, और वह मुझे बैंक में पैसे जरूरत के मुताबिक भेज देते,

पिछले 2 माह से उनको कॉल नहीं की और फिर ये कोराना वायरस का मसला हो गया तो सुना के उन भाई के मुल्क के हालात ज़्यादा खराब है, दोबारा मेरी हिम्मत नहीं हुई कभी उनको कॉल करने की,
अब बेवा समझ कर कोई मेरी मदद भी करना चाहे तो मुहल्ले वाले मुझे गंदी नजरों से देखते हैं, और मुहल्ले में इतने शरीफ लोग है के हर कोई गुजरते हुए मेरे दरवाजे पर झांक कर जाता है, बाहर जाते हुए मुझे घूरते हुए जाते है, अपनी औरतों को मेरे घर आने नहीं देते,

ये वायरस तो बहाना रखा है अल्लाह ताला ने हमें राशन भेजने का वरना जरूरत का सामान तो बिल्कुल खतम होने को है, कुछ दिनों से उस भाई को कॉल मिलाने का सोचा लेकिन ज़मीर ने गवारा ना किया, सोचा के पता नहीं उनके अपने हालात कैसे होंगे,

मेरे बच्चों को भी अब महसूस होना शुरू हो गया है के मुहल्ले में हमारी मां को लोग किस नजर से देखते हैं , हमारे नबी मुहम्मद (sws) तो दुश्मनों कि बेटियों के सरों पर चादर रखा करते थे, ये कहां के दीनदार लोग हैं के अगर कोई मेरी मदद को मेरे घर आता है तो उसे मशकूक नजरों से देखते हैं, और कुछ लोगों ने डर की वजह से मुझे जकात तक देना छोड़ दी ये बातें करते करते उसका दुपट्टा आंसुओं से भीग गया और जो आदमी मेरे साथ बैठा था वह शर्म से पानी पानी हो रहा था,
मुझे पता ही नहीं चला के मेरे आंखों से आंसुओं कि झड़ी लगी हुई थी,

हमने राशन के साथ कुछ नकद रकम भी अपनी तरफ से अदा कर दी, जो आदमी मेरे साथ था वह बाहर निकल कर कुछ बोलने ही वाला था के मुझसे रहा ना गया और उसके बोलने से पहले ही शुरू हो गया के बरोज़ कयामत तुम लोगों के इस राशन को अल्लाह कैसे क़ुबूल करेगा जबकि तुम्हे मुहल्ले में रहने वाले इन लोगों को खबर नहीं जो किसी के दरवाज़े पर नहीं जाते ??

कोई कैसा है ये अल्लाह और उसके दरमियान का मामला है आंखों देखा भी कभी कभी सच नहीं होता,
उसकी खामोशी और नम आंखों ने कुछ ना बोला, 4-5 दिन बाद उसने मुहल्ले में से अच्छी खासी रकम इकट्ठी करके उस औरत के घर पहुंचा दी,
बेशक अल्लाह ही जानता है सबके दिलों का हाल
अल्लाह के लिए अपना दिल नरम कीजिए और अपने इर्द गिर्द मौजूद जरूरतमंदों का ख्याल रखें,

उस वक़्त का इंतज़ार ना करे जब कोई औरत बच्चों के भूक से मजबूर होकर घर की दहलीज से बाहर निकल कर हाथ फैलाए और फिर मुआशरे में मौजूद हमारे जैसे भेड़िए सिर्फ चंद निवालों की खातिर उस से उसका सब कुछ छीन लें, क्या उस औरत के इस जुर्म करने पर कौम के मर्दों से सवाल नहीं होगा ??
हाथ जोड़ कर इल्तेजा है के खुद बाहर निकलें और ऐसे लोगों को तलाश करें, रातों को अपने मुहल्ले का चक्कर लगाए और बच्चों की रोने की आवाज़ सुनकर और खाली बर्तनों की आवाज़ों से अंदाजा लगाएं के उनको राशन की जरूरत होगी,
आखिरी बात :
लम्हा ए फिकरिया है उन लड़कियों और पहली बीवियों के लिए जो मर्द के लिए दुसरी या तीसरी शादी को बुरा समझती हैं,

अल्लाह ना करें ये मसला अगर किसी औरत के साथ हो जाए और उसे भी इसी तरह की परेशानी से जूझना पड़े, तो क्या वो नहीं चाहेंगी के कोई मर्द उसे अपनी दूसरी , तीसरी या चौथी बीवी बना ले, यकीनन चाहेगी
हदीस में भी आया है दूसरों के लिए वही पसंद करो जो अपने लिए पसंद करते हो, औरतों को दूसरी औरतों का दर्द समझना चाहिए, और अपने शौहरों की जो साहब ए इस्तेतात है उनकी हौसला अफजाई करनी चाहिए और सवाब में हिस्सा लेना चाहिए,
और शौहरों को भी अपनी बीवियों में बराबर का दर्जा देना चाहिए, मौजू काफी बड़ा है, आपके दिमाग में काफी सवालात होंगे, इसलिए इस पोस्ट का यही खात्मा करता हूं,

Umair Salafi Al Hindi