"The Road to Mecca" के लेखक लियोपोल्ड वेइस (मुसलमान होने के बाद -नाम मोहम्मद असद) लिखते हैं कि जब मैं हिजाज़ रेल से शाम की तरफ जा रहा था तो ट्रेन में खाने के वक़्त सबने अपना अपना खाना निकाला, लेकिन मेरे पास कुछ भी नही था । मेरे सामने बैठे हुए अरबी बुज़ुर्ग ने झोले से एक सुखी रोटी निकाली और मेरे मना करने के बावजूद आधी रोटी तोड़कर मुझे थमा दिया, और हम दोनों ने वो सुखी रोटी पानी मे डुबो कर खाई और उसके बाद सेर होकर पानी पिया दोनों का पेट भर गया । उसी वक़्त मुझे ये बात समझ आ गयी कि हज़रत उमर रज़िo के दौर में कैसे सूखे और क़हतसाली के बावजूद कोई भूखा नही सोता था । शायद एक बार हम अपनी रवायतों को ज़िंदा कर दे तो ये वक़्त भी गुज़र जाएगा ।
UmairSalafiAlHindi
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