सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस ( Lost Islamic Heroes) गुलाम से सुल्तान तक
बारहवीं सदी हिजरी में चंगेज खान की कयादत में सहराय गोबी के शुमाल से खून खवार मंगोल बगोला उठा जिसने सिर्फ चंद सालों में ही दुनिया को अपनी लपेट में ले लिया,
मंगोल लश्करों के सामने चीन , ख्वारिज्म , सेंट्रल एशिया, वेस्टर्न यूरोप और बगदाद की हुकूमते रेत की दीवारें साबित हुई,
मंगोल हमले का मतलब बेदरेग क़त्ल ए आम और शहर के शहर की मुकम्मल तबाही थी, दुनिया मान चुकी थी के इन वहशियों से मुकाबला नामुमकिन है, मंगोल को कभी हराया नहीं जा सकता,
मंगोलों ने सबसे पहले ख्वारिज्म की ईंट से ईंट और और फिर पांच सौ साल से ज़्यादा कायम खिलाफत अब्बासिया को फैसलाकुन अंजाम से दो चार किया,
मंगोलिओं ने ख्वारिज्म में खोपड़ियों के मीनार बनाए तो बगदाद में इतना खून बहाया के गलियों में कीचड़ और तफुन (बदबू) की वजह से अर्रसे तक चलना मुमकिन ना रहा, इस पुर अशोब दौर में मुसलामानों की हैसियत कटी पतंग की सी थी, मुसलमां नफसियती तौर पर किसी मुकाबले के काबिल नजर ना आते थे,
ऐसे में मिस्र में कायम ममलूक सल्तनत एक हल्की सी उम्मीद की लौ थी, वहीं सल्तनत जिसकी भाग दौड़ गुलाम और गुलामजादों के हाथ में थी.
( Mongol European Access) का अगला हदफ भी यही मुस्लिम रियासत थी, वह आखिरी रियासत जिसकी शिकस्त मुसलमानों की सियासी वजूद में आखिरी कील साबित होती , ममलूक भी उस खौफनाक खतरे का पूरा अदराक रखते थे, आज नहीं तो कल ये मुआरका होकर रहेगा,
और ये मुआरका हुआ,
तारीख थी सितंबर 1260 और मैदान था ऐन जालूत मंगोल मुस्लिम सियासी वजूद को खतम करने सर पर आ पहुंचे थे , मंगोल तूफ़ान जो बड़ी बड़ी सल्तनत को ख़ाक और खून की तरह बहा कर ले गए थे आज उनके सामने ममलूक थे जिसकी कयादत रुकनुद्दीन बेबर्स कर रहा था,
वहीं रुकनुद्दीन बेबरस जो कभी खुद भी सिर्फ चंद दिनार के बदले फरोख्त हुआ था , कम जराए और वासायेल वा कम लश्कर की तादाद के बावजूद बेयबर्स को ये मूआरका हर हाल में जीतना था, मुसलमानों के सियासी वजूद को कायम रखने के लिए, आखिरी तीर, और आखिरी सांस तक लड़ाई लड़नी थी,
जंग का बिगुल बजा, बद मस्त ताकत और जुनून के दरमियान घमासान का रण पड़ा, ताकतवर मंगोल जब अपनी तलवार चलाते थे तो उनका वार रोकना मुश्किल तरीन काम होता था लेकिन आज जब ममलूक वार रोकते तो तलवारें टकराने से चिंगारियां निकलती, और फिर जब जवाबी वार करते तो मंगोलों के लिए रोकना मुश्किल हो जाता,
मंगोलों ने ममलुकों को दहशत जदह करने की भरपूर कोशिश की लेकिन ये वो लश्कर नहीं था जो दहशत खा जाता, मंगोलों में कभी ऐसे जुनूनी लश्कर का सामना नहीं किया था, वह पहले पस्पा हुए और फिर उन्होंने जोरदार हमला किया जिससे मंगोल मैदान जंग से भाग खड़े हुए, ममलूक ने उन्हें गाजर मूली की तरह काट कर रख दिया,
मामला यहां तक पहुंचा की भागते मंगोलों को आम शहरियों आबादी ने भी क़त्ल करना शुरू कर दिया,
"मंगोलों को कोई हरा नहीं सकता" ये वहम " ऐन जालूत" के मैदान में हमेशा के लिए दफन हो गया,
" गुलामों " ने रुकनुद्दीन बेबरस की कयादत में मुस्लिम सियासी वजूद की जंग जीत ली और रहती दुनिया तक ये एजाज अपने नाम कर लिया,
इस मुआरके के बाद मंगोल पेशकदमी ना सिर्फ रुक गई बल्कि आने वाले सालों में बेबरस ने मंगोलों के जीते हुए इलाके भी उनसे वापस छीन लिए,
रुकनुद्दीन बेबरस ने अपनी सलाहियत से (European Access) को भी तोड़ डाला और सलीबी जंगो में भी फातेह रहा,
मुस्लिम दुनिया अपने इस अज़ीम हीरो के बारे में बहुत कम ही जानती है,
एक ऐसा हीरो जिसने उनकी सियासी वजूद को जंग बड़ी बेजिगरी से लड़ी, जिसके पश्त पर कोई कबीला भी ना था, और जो कभी कुछ चंद दीनार के बदले बिका था लेकिन जो मुसीबतों का मुकाबला करना जानता था, जो हिम्मत नहीं हारता था, और जो उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ता था,
सलाम सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस
शुक्रिया सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस
शुक्रिया सुल्तान रुकनुद्दीन बेबरस
अल्लाह ताला आपके दर्जात बुलंद फरमाए...आमीन
Umair Salafi Al Hindi