Tuesday, August 18, 2020

TUJHSE AUR JANNAT SE KYA MATLAB WAHABI !





तुझसे और जन्नत से क्या मतलब वहाबी .......!!!!

बर ए सगीर हिन्द वा पाक में नजदी और वहाबी एक लफ्ज़ एक मखसूस मकतब ए फिक्र की करमफरमैयां के नतीजों में उनके आवाम और पढ़े लिखे अफ़राद की ज़बान पर अरसे से मसलक अहले हदीस वा तमाम ही अहले तौहीद के अलंबरदार और शिर्के वा बिदत के अमल पर नकीर करने वालों के लिए एक तोहमत और गलीज़ गाली की जगह इस्तेमाल होते रहें हैं,

और अमूमन नजदी वा वाहाबी की दोनो इजाद एक दूसरे की पूरक और एक मयेना समझी जाती है,

इन इजाद कर्दह लफ्ज़ को बतौर तंज वा तबर्रा इस्तेमाल करने का इशारा अगरचे बर ए सगीर की एक मशहूर वा मारूफ मजहबी शख्सियत और मखसूस मकतब ए फिक्र के बानी और सरबराह के सर जाता है,

ताहम वहाबी और नज़दी की अर्फियत और गाली से पूरी तरह तवाफिक और तौहीद के खिलाफ इनको बतौर हरबा इस्तेमाल करने में औलिया ए तस्सुवूफ से वाबस्ता और शिर्के वा बिदात के पैरोकार दूसरे गिरोह और कुछ मस्खसूस फिर्के भी इसके हम नवा और किरदार कशी की इस मुहिम और प्रोपगंडा में कदम से कदम मिलाए नजर आते हैं

वहाबी और नजदी के नाम से मुखालिफ ए तौहीद, और शिर्के वा बिदात के अलंबरदार लोगों के ज़हनों में बड़ी खूबसूरती के साथ ज़हनों में बिठाया गया है,

उनके मुताबिक ऐसे तमाम लोग पक्के काफ़िर और मुरतद, दुश्मन ए रसूल और मुनकिर ए औलिया है,

इनसे नफरत करना उनके दिलों में बूगज़ रखना फ़र्ज़ और ईमान का तकाज़ा है और ऐसे लोगों से ताल्लुकात रखना उनसे सलाम वा कलाम या मुसाफा करना, उनके सलाम का जवाब देना बिल्कुल हराम और नाजायज है, क्यूंकि ये लोग ऊपर ऊपर से मुसलमान हैं, मगर अंदर से बिल्कुल काफ़िर और खारिज ए ईमान है

उनकी नमाज़ ना तो नमाज़ है और ना उनकी दी हुई अज़ान सही है, ये लोग बिल्कुल साफ तौर पर जहन्नुम के ईंधन है,

और उनके मुताबिक हम ( सूफी और शिया) खुद सच्चे पक्के सुन्नी उल अकीदा मुसलमान जो औलिया के चहेते और नबी ए अकरम मुहम्मद (SwS) के सच्चे आशिक़ और जांनिसार है, इसलिए हम ( सूफी, शिया) लोग बिना किसी दिक्कत के और नबी मुहम्मद (sws) और औलिया की शिफारिश से सीधे जन्नत में चले जाएंगे,

जैसे के उनके मशहूर मजहबी शख्स के इस शेर से ज़ाहिर होता है

" तुझसे और जन्नत से क्या मतलब वहाबी दूर हो।
हम रसूल अल्लाह के, जन्नत रसूल अल्लाह की। "

और ये के

" सूरज उल्टे पांव पल्टे, चांद इशारों से हो चाक।
अंधे नजदी देख ले कुदरत ए रसूल अल्लाह। ,"

शायरी चूंके अवाम उन नास खुसुसन जाहिलों के दिमाग तक पहुंचने का सबसे आसान और बेहतरीन जरिया है, इसलिए वहाबी और नजदी की मुजम्मत में बेशुमार शायरी लिखे गए और लोगों में आम किए गए और उन्हें रात वा दिन अपने अकाइद बातिला के नशरगाह की मस्जिदों के लाउडस्पीकर के जरिए, या महफ़िल मिलाद वा मजलिस ,मुहर्रम वा चहेल्लम के स्टेज से, और बस्तियों में नशर किया जाता है, ताकि वो अवाम की ज़बान पर रट जाए और गली गली उनका असर वा प्रोपगंडा किया जा सके,

चुनांच इस किस्म के चंद अशआर बतौर नमूना मुलाहिजा हो

" जिसने सब नजदियो के किले ढा दिए।
हिम्मत आला हज़रत पर लाखों सलाम। "

" शेख नजदी का सर काट कर रख दिया।
खंजर आला हजरत पर लाखों सलाम। "

और ये भी मुलाहिजा हो

" ना नमाज़ उनकी नमाज़ है, ना रसूल से उन्हें कुछ घरज़,
करते लाख सजदे वह दिन रात है वहाबी फिर भी जहन्नुमई "
बहरहाल ! अवाम उन नास के फासिदसुदह और बीमार ज़ेहन की इस कैफियत और इस्लाम दुश्मन अनासिर की मुसलमानों के सफों में फूट डालने की बहुत कोशिश जारी है,

सूफियों ने इन दोनों नामों का बहुत प्रोपगंडा किया और शोर वा कोहराम बरपा किया है, उनका पश ए मंज़र और हकीकी मकसद किया है ??

और मुसलमानों कि सफो में तफ़्रीक वा निफाक बाहम नफरत वा बुगझ वा अनाद और गीरोही प्रोपगंडा के जज्बात उभारने वाले इन दुश्मन ए इस्लाम अनासीर के हामिलीन लोगों की साजिश के लिए कौन दिमाग़ काम कर रहा है, ये तारीख दान बखूबी जानते हैं कि वहाबी तहरीक जो आज़ाद भारत तहरीक थी उसको जरब लगाने के लिए अंग्रेज़ो ने किसको खड़ा किया,

अल्लाह ताला हम सबको हक बात कहने और उस पर अमल पैरा होने की तौफीक दे...आमीन

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com