आयशा नहीं आएगी तो मैं भी नहीं आऊंगा !!
وَحَدَّثَنِي زُهَيْرُ بْنُ حَرْبٍ، حَدَّثَنَا يَزِيدُ بْنُ هَارُونَ، أَخْبَرَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، عَنْ ثَابِتٍ، عَنْ أَنَسٍ، أَنَّ جَارًا، لِرَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فَارِسِيًّا كَانَ طَيِّبَ الْمَرَقِ فَصَنَعَ لِرَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم ثُمَّ جَاءَ يَدْعُوهُ فَقَالَ " وَهَذِهِ " . لِعَائِشَةَ فَقَالَ لاَ . فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم " لاَ " فَعَادَ يَدْعُوهُ فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم " وَهَذِهِ " . قَالَ لاَ . قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم " لاَ " . ثُمَّ عَادَ يَدْعُوهُ فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم " وَهَذِهِ " . قَالَ نَعَمْ . فِي الثَّالِثَةِ . فَقَامَا يَتَدَافَعَانِ حَتَّى أَتَيَا مَنْزِلَهُ .
हज़रत अनस बिन मलिक बयान करते हैं के एक बार रसूल अल्लाह मुहम्मद (sws) का एक फारसी पड़ोसी बहुत अच्छा सालन बनाता था, एक दिन उनसे रसूल अल्लाह मुहम्मद (sws) के लिए सालन बनाया, आपको दावत देने के लिए हाज़िर हुआ तो आपने फरमाया :
" और ये भी ( यानी हज़रत आयशा भी मेरे साथ आयेगी या नहीं )"
तो उसने कहा :- नहीं !!
तो उसपर रसूल अल्लाह मुहम्मद (sws) ने फरमाया :- नहीं ( यानी मैं नहीं आऊंगा )
उस फारसी ने दोबारा रसूल अल्लाह मुहम्मद (sws) को दावत दी, तो आपने फरमाया :- ये भी (यानी आयशा)
तो उस फारसी ने अर्ज़ किया :- नहीं !!
तो आपने फिर इनकार फरमा दिया,
उस फारसी ने तीसरी बार रसूल अल्लाह मुहम्मद (sws) को दावत दी, आपने फरमाया :- ये भी ,
उस फारसी ने अर्ज़ किया :- हा ये भी !! फिर दोनों (यानी रसूल अल्लाह और हज़रत आयशा ) एक दूसरे को थामते हुए खड़े हुए और उस फारसी के घर तशरीफ ले गए
(सही मुस्लिम हदीस 5312 )
साभार : Umair Salafi Al Hindi