Wednesday, August 19, 2020

NEEM HAKEEM BAWAAL E JAAN





" नीम हकीम बवाल ए जान"

लिबरल मुसलमानों ने अरबी और उर्दू वा फारसी नाम को उतनी इज्ज़त नहीं दी जितना उनको देनी चाहिए थी,

यहीं वजह है की हमारे समाज में किसी स्कूल या हॉस्पिटल के नाम के साथ किसी मुसलमान शक्सियत या दीन या इस्लामिक या मदरसा नाम लिख जाए जाए तो उन लिबरल मुसलमान के नजर में वो बहुत हकीर होता है,

गोया उनके नजर में मुसलमानों के शिक्षा के संस्थान या अस्पताल उनको खैराती ,चंदा और जकात पर पलने वाले होते हैं इसलिए उन लिबरल मुसलमानों की नजर में उनकी कोई हैसियत नहीं होती है,

लेकिन जब हम तारिख को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ऐसे इस्लामिक स्कूल (मदरसा) से बड़ी बड़ी सखसियत निकली जिन्होंने मॉर्डन ज़माने में भी नाम कमाया,

मिसाल के तौर पर अली इब्न सिना का नाम आपने नहीं सुना होगा ये अपने दौर के एक बहुत बड़े हकीम थे,

हा सही कहा मैंने हकीम ! आज के हमारे लिबरल और चलंदू मुसलमान हकीम शब्द का मज़ाक उड़ाते हैं और कहते हैं

" नीम हकीम बवाल ए जान"

अली इब्न सिना उसकी मदरसे की तालीम का हिस्सा थे ये मुस्लिम निज़ाम ए तालीम (Education System) ही था जो सबके लिए बराबर था, जहां से बैक वक़्त आलिम, अर्थशास्त्री , डॉक्टर, फिलोस्फर, हुक्मरान और इंजीनियर निकलते थे,

लेकिन जब हम इसी हकीम का नाम लैटिन या इंग्लिश में लेते हैं यानी Avicenna तो ये लोग दांत चीयार देते हैं,

Avicenna को दुनिया भर में मेडिकल साइंस का ज्ञान रखें वाले फादर आफ मॉडर्न मेडीसिन (Father Of Modern Medicine) कहते हैं और बिना इनकी किताब पढ़े MBBS लगभग नामुमकिन है,

यही मदरसे में पढ़े हैं और मदरसे को इंग्लिश में स्कूल कहते हैं बस सिर्फ भाषा का फर्क है, अगर इनसे अरबी की वजह इंग्लिश में तर्जुमा करके बताया जाए तो उसपर झट से ईमान ले आते हैं,

Avicenna की लिखी एक किताब अल कानून के बारे में बताया जाए कि उसने फलां जड़ी बूटी के बारे में लिखा गया है तो उन्हें हसी और मज़ाक लगेगा, लेकिन जब हम उस किताब का इंग्लिश में तर्जुमा करते जो अंग्रेज़ो ने "Cannon Of Medicine" के नाम से किया है,

फिर उन लिबरल मुसलमानों के लिए सिर्फ दांत चियारने के इलावा और कुछ नहीं रहता, हकीकत यही है लिबरल मुसलमानों ने अपनी दीनी शख्सियत की इज्जत ही नहीं की और गैरो ने उन्हें अपना लिया,

ये तो सिर्फ एक नाम है ऐसे सैकड़ों नाम है जिन्हे सिर्फ अरबी या उर्दू नाम होने की वजह से मुसलमानों ने नकार दिया और इसाई वा यहूदी ने उन नामों को इंग्लिश और लैटिन में बदल कर उनका नाम रोशन किया,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com
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