Saturday, August 22, 2020

TAQDEER PAR IMAAN NA RAKHNA KUFR HAI




तकदीर पर ईमान ना रखना कुफ्र है


सवाल: इस्लाम में तकदीर पर ईमान ना रखना कुफ्र है यानी जो कुछ इस ज़िन्दगी में हमारे साथ होगा या हम करेंगे वो हमारी तकदीर में पहले से अल्लाह ने लिख दिया होगा , तो अगर मैं कोई गुनाह करूं तो इसमें मेरा क्या कसूर में तो अपनी लिखी हुई तकदीर की वजह से वो काम करने पर मजबूर था जो अल्लाह ने लिखा था,

जवाब : बेशक तकदीर पर यकीन ना रखने वाला मुसलमान नहीं हो सकता, लेकिन उस से पहले तकदीर और तकदीर पर यकीन रखने का मतलब समझिए

तकदीर लफ्ज़ का मतलब है कद्र ( प्रभुता ) और तकदीर पर यकीन का मतलब ये है कि हम इस बात पर यकीन रखें की अल्लाह हर शय कर कादिर है, यानी अल्लाह का प्रभुत्व की सारी सृष्टि पर है और वो जो हमारे साथ करना चाहता है हमारे साथ वैसा होता है ना कि हम जो कुछ अपने या किसी और के साथ करना चाहते हैं वैसा...

अपने या और लोगों के बारे में बहुत सी चीजों पर हमारा कोई इख्तियार नहीं होता, जैसे जन्म , मृत्यु , कोई आकस्मिक घटना या कोई आकस्मिक फायदा, ऐसी बहुत सी चीजें हमारी तकदीर का हिस्सा होती हैं

इन सब बातों में अल्लाह की प्रभुत्व को मानना इसलिए जरूरी है ताकि खुद कर अल्लाह का प्रभुत्व जान कर हैं उसके फरमा बरदार बने रहें, और गुनाह करने से खुद को बचाएं

और जहां तक सवाल है तकदीर की वजह से मजबूर होकर कोई काम करने का तो उसकी हकीकत ये है कि अल्लाह ने हमें खुद मुख्तार दी है, यानी हम जो काम करते हैं वो अपना कोई जाती फायदा देख कर ही करते हैं ना ही कोई गायबाना ताकत हमें कोई काम करने को मजबूर करती है,

यानी हम जो भी काम करते हैं अपनी मर्ज़ी से करते हैं और काम का नतीजा हमारे हक में हो ये सोच कर करते हैं,

लेकिन उसके नतीजे पर पर हमारा कोई इख्तियार नहीं होता और अल्लाह उस काम का जो चाहे वो नतीजा देता है, ये है तकदीर,

तो अपनी किसी गलत हरकत का कसूर किस्मत को देना और अपने किए का इलज़ाम अल्लाह पर लगाना इंसान की मक्कारी भरी जुर्रत के सिवा कुछ नहीं

बल्कि हदीस में तो ये आया है तकदीर के फैसलों को अल्लाह से दुआ करके टाला जा सकता है, यानी किसी को डर हो की किसी मजबूरी में उसके हाथ से कोई गलत कम ना हो जाए , तो वो बंदा अल्लाह से खूब दुआ करके उस गुनाह को यकीनन टाल सकता है,

साभार : जिया इम्तियाज़
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com