Wednesday, August 12, 2020

HAZRAT JULAYBIB KI SHADI





हज़रत जुलैबीब की शादी

हज़रत जुलैबीब को शादी कहते है एक मिसाली शादी थी हज़रत जुलैबीब जितना बदसूरत थे और उनकी बीवी मदीना कि सबसे खूबसूरत औरत थी, ये शादी तक्वा और ईमान की बुनियाद पर थी, हमारे समाज को इससे सबक लेना चाहिए, और अल्लाह के रसूल ﷺ के बताए हुए उसूल के तहत की शादियां करनी चाहिए

आज आपको हज़रत जुलैबीब का किस्सा सुनाता जो शक्ल से बदसूरत , कद से नाटे और खानदान का पता नहीं उनका शुमार एक गुलाम से होता था , रंग के सांवले थे, मदीना के लोग अच्छी नजर से ना देखते थे जरिया ए मुआश का भी कोई बंदोबस्त नहीं था, आखिर कौन लड़की इनसे शादी करती और कौन मां बाप आपको अपनी बेटी का हाथ आपको देती,

लेकिन अल्लाह के रसूल ﷺ की मुहब्बत से सरशार थे- भूख की हालत में फटे पुराने कपड़े पहने अल्लाह के रसूल की खिदमत में हाज़िर होते,इल्म सीखते और सोहबत से फैज़याब होते-

एक दिन अल्लाह के रसूल ﷺ ने शफक़त की नज़र से देखा और इरशाद फ़रमाया:
’یَا جُلَیْبِیبُ! أَلَا تَتَزَوَّجُ؟‘

"जुलैबीब तुम शादी नहीं करोगे?"

जुलैबीब رضی اللہ تعالیٰ عنہ ने अर्ज़ किया:

"अल्लाह के रसूल ! मुझ जैसे आदमी से भला कौन शादी करेगा ?"

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फिर फ़रमाया:

"जुलैबीब तुम शादी नहीं करोगे?"

और वो जवाबन अर्ज़ गुज़ार हुए कि अल्लाह के रसूल ! भला मुझ से शादी कौन करेगा? ना माल ना जाहो जलाल!!
अल्लाह के रसूल ﷺ ने तीसरी मर्तबा इरशाद फ़रमाया:

"जुलैबीब तुम शादी नहीं करोगे ?"

जवाब में उन्होंने फिर वही कहा:

"अल्लाह के रसूल ! मुझ से शादी कौन करेगा? कोई मनसब नहीं,मेरी शक्ल भी अच्छी नहीं और ना मालो दौलत रखता हूं-"

अल्लाह के रसूल ﷺ को आपकी फिक्र थी,

एक दिन अल्लाह के रसूल ﷺ एक अंसारी के घर गए और उस अंसारी सहाबी से कहा :- क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मुझे देना पसंद करोगे ??

अंसारी ने जवाब दिया :- मेरे मां बाप आप पर कुर्बान ! क्यूं नहीं या रसूल अल्लाह, ये तो हमारे लिए बहुत ही इज्जत की बात है,

अल्लाह के रसूल ﷺ ने कहा :- मैं अपने लिए नहीं बल्कि जुलैबीब के लिए हाथ मांग रहा हूं !!

अंसारी सहाबी एक दम चौक गए, और सोच में पड़ गए की अब क्या किया जाए, अंसारी सहाबी ने कहा :- मैं इस बारे ने अपनी अहलिया से मशवरा कर लूं,

अंसारी सहाबी ने अपनी अहलिया को बताया कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने हमारी बेटी का हाथ मांगा है,

उसकी बीवी बहुत खुश हुई लेकिन जब अंसारी सहाबी ने बताया कि वो अपने लिए नहीं बल्कि जुलैबीब के लिए मांग रहे हैं, तो वो कहने लगी :

"ना,ना,ना,ना,.... क़सम अल्लाह की ! मैं अपनी बेटी की शादी ऐसे शख्स से नहीं करूंगी,ना खानदान,ना शोहरत,ना मालो दौलत,"

उनकी नेक सीरत बेटी भी घर में होने वाली गुफ्तगूं सुन रही थी और जान गई थी कि हुक्म किसका है? किसने मशवरा दिया है ? सोचने लगी अगर अल्लाह के रसूल इस रिश्तेदारी पर राज़ी हैं तो इसमें यक़ीनन मेरे लिए भलाई और फायदा है-"

उसने वालिदैन की तरफ देखा और मुखातिब हुई:

’أَتَرُدُّونَ عَلٰی رَسُولِ اللّٰہِﷺ أَمْرَہٗ؟ ادْفَعُونِی إِلٰی رَسُولِ اللّٰہِ’ﷺ فَإِنَّہُ لَنْ یُضَیِّعَنِی‘۔

" क्या आप लोग अल्लाह के रसूल का हुक्म टालने की कोशिश में हैं ? मुझे अल्लाह के रसूल के सुपुर्द कर दें-"
(वो अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ जहां चाहें मेरी शादी कर दें)
क्यूंकि वो हरगिज़ मुझे ज़ाया नहीं होने देंगे-

फिर लड़की ने अल्लाह तआला के इस फरमान की तिलावत की:

"और देखो ! किसी मोमिन मर्द व औरत को अल्लाह और उसके रसूल के फैसले के बाद अपने उमूर में कोई इख्तियार बाक़ी नहीं रहता-"

(الأحزاب33: 36)

लड़की का वालिद अल्लाह के रसूल की खिदमत में हाज़िर
हुआ और अर्ज़ किया:

"अल्लाह के रसूल ! आपका हुक्म सर आंखों पर,आपका मशवरा,आपके हुक्म क़ुबूल, मैं शादी के लिए राज़ी हूं-"

जब रसूले अकरम ﷺ को उस लड़की के पाकीज़ा जवाब की खबर हुई तो आपने उसके हक़ में ये दुआ फरमाई:

’اللَّھُمَّ صُبَّ الخَیْرَ عَلَیْھَا صُبًّا وَلَا تَجْعَلْ عَیْشَھَا کَدًّا۔‘

" ऐ अल्लाह ! इस बच्ची पर खैर और भलाई के दरवाज़े खोल दे और इसकी ज़िंदगी को मशक़्क़त व परेशानी से दूर रख-"

(موارد الظمآن: 2269، و مسند أحمد: 425/4، ومجمع الزوائد: 370/9وغیرہ)

फिर जुलैबीब के साथ उसकी शादी हो गई महर और घर के ज़रूरी समान का बंदोबस्त हज़रत उस्मान ने किया, मदीना मुनव्वरा में एक और घर आबाद हो गया,जिसकी बुनियाद तक़वा और परहेज़गारी पर थी,जिसकी छत मिस्किनत और मुहताजी थी,जिसकी आराइश व ज़ेबाइश तकबीरो तहलील और तस्बीहो तम्हीद थी- इस मुबारक जोड़े की राहत नमाज़ और दिल का इत्मिनान तपती दोपहर के नफ्ली रोज़ों में था-
रसूलुल्लाह ﷺ की दुआ की बरकत से ये शादी खाना आबादी बड़ी ही बरकत वाली साबित हुई- थोड़े ही अरसे में उनके माली हालात इस क़द्र अच्छे हो गए कि रावी का बयान है:

’فَکَانَتْ مِنْ أَکْثَرِ الأَْنْصَارِ نَفَقَۃً وَّمَالًا‘

"अंसारी घरानों की औरतों में सबसे खर्चीला घराना उसी लड़की का था-

एक जंग में अल्लाह तआला ने मुसलमानों को फतह नसीब फरमाई- रसूल ए अकरम ﷺ ने अपने सहाबा ए किराम से दरयाफ्त

फरमाया:
’ھَلْ تَفْقِدُونَ مِنْ أَحَدٍ؟‘

"देखो ! तुम्हारा कोई साथी बिछड़ तो नहीं गया?"
मतलब ये था कि कौन कौन शहीद हो गया है ?

सहाबा ने अर्ज़ किया:

"हां फलां फलां हज़रात मौजूद नहीं हैं-"

फिर इरशाद हुआ:
’ھَلْ تَفْقِدُونَ مِنْ أَحَدٍ؟‘

"क्या तुम किसी और को कम पाते हो?"
सहाबा ने अर्ज़ किया:- "नहीं-"
आपने फ़रमाया:
’لٰکِنِّي أَفْقِدُ جُلَیْبِیبًا فَاطْلُبُوہُ‘

"लेकिन मुझे जुलैबीब नज़र नहीं आ रहा,उसको तलाश करो-"

चुनांचा उनको मैदाने जंग में तलाश किया गया-

वो मंज़र बड़ा अजीब था- मैदाने जंग में उनके इर्द गिर्द सात काफिरों की लाशें थीं गोया वो इन सातों से लड़ते रहे और फिर सातों को जहन्नम रसीद करके शहीद हुए अल्लाह के रसूल को खबर दी गई- रऊफुर्रहीम पैगम्बर ﷺ तशरीफ लाए- अपने प्यारे साथी की लाश के पास खड़े हुए- मंज़र को देखा-फिर फ़रमाया:

’قَتَلَ سَبْعَۃً ثُمَّ قَتَلُوہُ، ھَذَا مِنِّي وَأَنَا مِنْہُ، ھَذَا مِنِّي وَأَنَا مِنْہُ۔‘

"इस ने सात काफिरों को क़त्ल किया, फिर दुश्मनों ने उसे क़त्ल कर दिया- ये मुझसे है और मैं इससे हूं-"

’فَوَضَعَہُ عَلَی سَاعِدَیْہِ لَیْسَ لَہُ إِلَّا سَاعِدَا النَّبِيَّ ﷺ‘۔

"फिर आपने अपने प्यारे साथी को अपने हाथों में उठाया और शान ये थी कि अकेले ही उसको उठाया हुआ था- सिर्फ आपको दोनों बाज़ूओं का सहारा मयस्सर था-"

जुलैबीब رضی اللہ تعالیٰ عنہ के लिए क़ब्र खोदी गई, फिर नबी ﷺ ने अपने दस्ते मुबारक से उन्हे क़ब्र में रखा...!!!

सही मुस्लिम हदीस 6045,

इस वाक्ए से बहुत सी बातें सामने आती है पहली जब लडके के दीनी मामलात अच्छे हो तब उससे निकाह के लिए माल - दौलत , खूबसूरती , जात बिरादरी नहीं देखी जाती, और ये भी नहीं देखा जाता की उसका जरिया ए मूआश है या नहीं,

दूसरी अहम बात ये पता चली कि लड़की की पसंद और रजामंदी से ही शादी करनी चाहिए, लड़की का ये ईमान था कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने ये लड़का उनके लिए चुना है तो वो उसके हक में बेहतर ही होगा,

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