Friday, August 7, 2020

HUBBE ALI YA BUGHZ E MUAWIYA







हुब्बेअली या नफरत ए मूआविया



ये जो अहले सुन्नत में जितने हजरात सय्यदना हुसैन के गम में यजीद की कब्र में कीड़े भरते नजर आते हैं और यौम ए हुसैन के दिन यजीद की बुराई में पोस्ट लगाते नहीं थकते,



कभी आप लोगों ने उन में से किसी साहब को यौम ए अली वाले दिन सय्यदना अली के कातिल अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम को कोसते हुए देखा या सुना है ??


कभी आपने देखा के इन लोगों ने अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम की मुज़म्मत में कोई पोस्ट लगाई ?? नहीं हरगिज़ नहीं देखा होगा,


आप ऐसा कभी नहीं देखेंगे के क्यूंकि ऐसा कुछ अहले शिया नहीं करते, अहले शिया यौम ए हुसैन के दिन यजीद और सहाबा पर तो तबर्रा पढ़ते हैं लेकिन यौम ए अली वाले दिन अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम की मुजम्मत में ऐलानिया कुछ नहीं कहते,


सो जो काम अहले शिया नहीं करते वहीं काम अहले सुन्नत में मौजूद उनकी नक्कालों के यहां भी होता नज़र आता है, क्या वजह है कि बेटे के कातिलों पर लानत और बाप के क़ातिल का ज़िक्र तक नहीं,


इख्वान तहरिकी मसलक से खुद को जोड़ने वाले एक गैर ताहिर साहब जो यजीद का नाम बगैर गाली के लेना गुनाह समझते हैं, मौसूफ ने आज तक कभी ना इब्न मुलजिम को गाली देना तो दूर की बात उसका मुजम्मती ज़िक्र तक नहीं किया, क्यूं ???


क्यूंकि मऊसूफ के रूहानी खालाजाद भाई अहले शिया जो ऐसा नहीं करते दिखाई देते हैं, और मौसूफ़ तो मशहूर हैं अहले शिया की नक्काली में फिर चाहे वह इमाम बड़ों में जाकर उनको मर्सियों और और नौहो से लुत्फ़ अंदोज होना हो या फिर उनकी तरह हज़रत अली या हज़रत हुसैन के नामों के आगे पीछे इमाम अलैहि हिस्सालम लगाना हो,


इसी तरह इन सब हजरात को सय्यदना हुसैन की शहादत में इस्लाम ज़िंदा होता नज़र आता है लेकिन सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की शहादत का दिन भी इनको याद नहीं रहता,

हां ! कभी किसी को सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की याद आ भी जाए तो वो हुब ए सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की याद में नहीं बल्कि नफरत ए हज्जाज बिन युसुफ में आती है, वरना तो उनसे हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की शहादत का दिन और उसके वाकयात पूछ लें, आपको यूं देखना शुरू कर देंगे के जैसा के आपके किसी खलाई मखलूक से मुतालिक मालूमात मांग ली है उनसे,

अलबत्ता जहां हज्जाज की बात आती है तो उनको फौरन सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और हज़रत असमा बिन अबू बक्र की मुहब्बत इस कद्र ज़ोर से आती है के हज्जाज का तबर्रा बे इख्तियार मुंह से रास्ते निकल जाता है, वरना ना तो उन्हें सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर से कुछ लेना देना है और ना ही सय्यदना असमा बिन अबू बक्र से,

हज्जाज वा यजीद पर लानत भेजना कार ए सवाब समझते हैं लेकिन कभी आपने उनके मूहों से अबू लुलु फिरोज और अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम का नाम ना सुना होगा,

कभी सय्यदना उस्मान पर 14 दिन तक पानी बंद करने वाले मालिक अल अश्तर नखी और कनाना बिन बिश्र के बारे में कोई मुज़म्मती बयान ना पढ़ा या सुना होगा अभी घाकफी बिन हरब को पलीद कहते ना सुना होगा,

कहीं भी कैसे उनके दिल और दिमाग़ पर शियत के जेर ए असर यजीद और हज्जाज का भूत सवार है, बाक़ी सहाबा के कातिलों का उनसे क्या लेना देना, क्यूंकि अहले शिया को उनसे कुछ लेना देना जो नहीं है, सो अहले सुन्नत में मौजूद अहले शिया के उन नक्कालों और कव्वालों को भी उन कातिलों को कोई फिक्र नहीं, उनके पेश ए नजर बस सिर्फ यजीद हज्जाज और सय्यदना मुअविया ही है, क्यूंकि उनके रूहानी भाई यानी अहले शिया जो उन अशहाब की मुजम्मत में कव्वालियां गाते फिरते हैं,

सो ये भी उनके पीछे बैठे तालियां पीटने का काम करना अपना फ़र्ज़ ए ऐन समझते हैं

फिर यार लोग कहते हैं के आप बिला वजह ही उन हजरात पर अहले शिया को तोहमतें लगाते हैं

तहरीर : मुहम्मद फहद हारिस
तर्जुमा : UmairSalafiAlHindi
ब्लॉग : ISLAMICLEAKS