Sunday, August 23, 2020

HADITH E RASOOL KA MUNKIR KAAFIR HAI




हदीस ए रसूल का मुनकिर काफ़िर है,

" तेरे रब की कसम ! ये लोग उस वक़्त तक ईमानदार नहीं हो सकते जब तक के वह अपने इख्तिलाफ में आपको हाकिम तस्लीम ना करें, फिर आपके फैसले पर अपने दिलों में तंगी भी महसूस ना करें और पूरे तौर पर उस फैसले को तस्लीम ना कर लें "

( क़ुरआन अल निसा आयात 65 )

अब देखिए आप ने जो भी फैसले फरमाए वह बहरहाल किताब अल्लाह में मजकूर नहीं, लेकिन उन फैसलों को मानना और फरमा बरदारी को असल ईमान कहा गया है,

इससे ये भी साफ हुआ के कुरानी आहकाम की वहीं ताबीर काबिल ए हुज्जत है जो मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वल्लम ने पेश फरमाई, लिहाज़ा आपके फैसले या आपकी ताबीर से इंकार ईमान से हटने की तरह है

" जो लोग अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्र करते हैं और चाहते हैं के अल्लाह और उसके रसूलों के दरमियान तफरीक डालें और कहते हैं कि हम एक को तो मानते हैं और दूसरे को नहीं मानते और कुफ्र और ईमान के बीच में एक राह निकालने का इरादा रखते हैं, यही लोग पक्के काफ़िर हैं "

(क़ुरआन अल निसा आयात 150-151 )

ऐसा मालूम होता है कि ये आयात खास मुनकरीन ए हदीस के लिए ही नाजिल हुई है, क्यूंकि हमने ऐसा कोई खास नहीं देखा जो अल्लाह को ना माने मगर उसके रसूल को मानता हो,

अलबत्ता ऐसे लोग जरूर होते हैं जो अल्लाह को तो मानते हैं उसके एहकाम को वाजिब उल तालीम समझते हैं लेकिन उसके रसूलों की बात को नहीं मानते,

इसी तबके में वो लोग भी आ जाते हैं जो जबानी तौर पर तो रिसालत का इकरार करते हैं, मगर अमलन इरशाद ए नबावी या अमाल रसूल को वाजिब उल इता अत या वाजिब उल इत्तिबा नहीं समझते

गोया रसूल को ना मानना चाहे हकीकन हो या इत्तेफ़ाकन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
ऐसे लोगों के काफ़िर होने में ज़र्रा बराबर शक की गुंजाइश नहीं।

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog : islamicleaks.com