Monday, August 31, 2020

MUSALMANO NE APNI TAREEKH SE KUCH NAHIN SEEKHA AUR NA SEEKHNA CHAHTE HAIN





मुसलमानों ने अपनी तारीख से कुछ नहीं सीखा और ना सीखना चाहते हैं,

रसूल अल्लाह मुहम्मद (SWS) की साफ नसीहतों के बाद भी मुसलमान उनकी बातों को नज़र अंदाज़ करके जो भी कदम उठाएंगे उससे उनको ज़लालत के सिवा कुछ नहीं मिलेगा और ना ही कभी मिला है,

मुहम्मद साहब ने ऐसी जगह नमाज़ पढ़ने से मना फरमाया है जहां ज़माना ए जाहिलीयत के लोग इबादत करते हो, और अपने बाद सहाबा किराम को हुकम दिया कि जंग के दौरान भी कुफ्फर के इबादतगाहों कि हिफाज़त की जाए,

फलस्तीन फतह के बाद हज़रत उमर जब फलस्तीन पहुंचे तब यहूदियों के इसरार पर के वो माबद ए हैकल में नमाज़ अदा कर ले, लेकिन हज़रत उमर ने मना कर दिया और कुछ दूरी पर नमाज़ अदा की, और यहूदी इबादतगाह का पास वा लिहाज़ बना रहा और सदियों तक मुसलमान यहूदी और इसाई अमन से फलस्तीन में रहते रहे,
अब एक एक उदाहरण से बात समझना चाहिए

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुकूमत के दौर में हजारों मजार मौजूद थीं लेकिन तालिबान की हुकूमत बनने के बाद उन मजार को तोड़ना दूर की बात उल्टा बामियान में बुध की मूर्ति को तोड़ना बेहद अहमकाना हरकत थी,

मुहम्मद साहब ने मुसलमानों को हुकम दिया है कि कहीं भी पक्की क़ब्र देखो उसे ज़मीन के बराबर कर दो, लेकिन तालिबान की हुकूमत बनने के बाद इस पर अमल नहीं किया गया, और चल दिए बामियान में बुध की मूर्ति तोड़ने ,

और इसका खामियाजा मासूम मुसलमानों ने भुगता, क्या आपको नहीं मालूम इसी कांड के बाद ही बौद्ध आतंकवाद का नया चेहरा असिन विराथू के नाम से बर्मा में जन्म लिया,

आप उसका इंटरव्यू सुनिए उसने साफ कहा है कि बामियान की बुध प्रतिमा तोड़ने के बाद से ही वो बेचैन था, और उसने 15 साल की अथक महनत के बाद बर्मा से रोहिंग्या मुसलमानों का सफाया कर दिया,

कहना बजा ना होगा कि तालिबान की उस अह्मकाना हरकत का हर्जाना रोहिंग्या के मुसलमानों ने भुगता, और अब तुर्की सरकार की अहमकना हरकत का खामियाजा यूरोप की उन तमाम मस्जिदों को भुगतना पड़ेगा जहां के मुसलमान इस मुहिम में शामिल है कि उन मस्जिदों को दोबारा मस्जिद बनाया जाए जो इस वक़्त चर्च में तब्दील है ,
भारत में भी इसका असर पड़ेगा, वक़्त सब दिखा देता है,
साभार: Umair Salafi Al Hindi