Tuesday, September 1, 2020

KYA AYA SOPHIA URDUGANI SIYASAT KA AAKHIRI CARD HAI ??




क्या आया सोफिया उरदुगानी सियासत का आखिरी कार्ड है ?? और मुनकर हदीस की बेचैनी

देखने में आता है कि मुनकर हदीस हर अवसर का फायदा इस्लाम को बदनाम करने के लिए उठाना चाहते हैं , कुछ मुनकरों का कहना है कि ये इस्लाम की शिक्षा है के दूसरों के इबादतगाह को मस्जिद बनाना जैसे की आया सोफिया जो पहले चर्च था अब उसे मस्जिद बनाया जा रहा है,इनकार ए हदीस की अक्ल बहुत छोटी होती है, इस पोस्ट में उनके सुबाह दूर होंगे इंशा अल्लाह

अपने सियासी इक़्तेदार को बाक़ी रखने और खानदानी करप्शन को दबाने के लिए उर्डोगान दीन को सियासत में हमेशा इस्तेमाल करता रहा है, बीस साल तक हुकूमत में रहते हुए और उससे भी पहले इस्तांबुल का मेयर रहते हुए यानी कुल 24 साल में आया सोफिया के मस्जिद होने की याद कभी ना अाई और याद भी दिलाया गया तो मुख्तलिफ बहानो ने इसे नजरंदाज कर दिया गया,

पिछ्ले साल अपने एक इंटरव्यू में उर्दुगान ने सिरे से इंकार किया था के हम एक मस्जिद की वजह से यूरोप के अंदर दसियों मसजिद को खोना नहीं चाहते,
बल्कि दो महीनों पहले अदनान मुंद्रेस की शहादत की बरसी पर तुर्क नौजवान इसके लिए हैश टैग चला रहे थे फिर भी तुर्क सदर टस से मस ना हुए, मगर आनन फानन एक हफ्ते में ऐसा फैसला क्यूं लिया गया ??
क्या इस अहम कार्ड को ऐसे वक़्त के लिए बचा कर रखा गया था के जब मुल्क के अंदर सियासी शुबा बिल्कुल खतम हो जाएगी और सहयूनी गुलामी की वजह से हर तरफ थू थू होने लगेगी तब इस अहम कार्ड का इस्तेमाल किया जाएगा ??
मैंने पिछले साल ही कहा था के इसे आसानी से नमाज़ के लिए खोलने वाला नहीं, इस कार्ड को उर्दुगान ने अपने सियासी कैरियर में मुश्किल वक़्त के लिए महफूज़ कर रखा है,
चुनांचे हालिया दिनों में जब के इराक़, शाम और लीबिया में जालिमाना फौजी मुदाखिलत को लेकर इन तीन मुल्कों में फौजी नुकसान के साथ तुर्क फौज की लाशें आ रहीं हैं और मालियाती वा मुंआशी नुकसान मुल्क का बढ़ता जा रहा है, और मुल्क की करेंसी पिछले २० साल में बदतरीन पोजिशन में है, अभी हाल ही में उर्दुगान ने लीबिया के अंदर तराबुलस के पास मौजूद अल वातिया फौजी अड्डे पर अपना दीफाई सिस्टम सेटअप किया था जिसे मुकम्मल तौर पर तबाह कर दिया गया, जिसको लेकर तुर्की में उर्दुगान की खूब फाजीहत की गई,
पिछ्ले महीने में उर्दुगान ने लाइव आकर तुर्क नौजवानों से मुल्की उमूर पर गुफ्तगू की पता चला 75% तुर्क उर्दुगनी पॉलिसी के खिलाफ हैं, हत्ता के हालिया एक सर्वे के मुताबिक इस्तांबुल के मेयर अकरम इमाम ओगलू से भी कम मकबूलियत हो चुकी है,
ऐसे वक़्त में इस कार्ड को खेल कर उर्दुगान ने मुसलमानों में अपनी छवि बनाने की आखिर कोशिश की है, और दूसरी तरफ यूरोपियन मुमालिक को ये पैग़ाम दिया जा रहा है कि ये अजायब घर कभी था ही नहीं,
चूनांचे अदालत की तरफ से ये बात कहीं जा रही है के कमाल अतातुर्क ने सिर्फ मस्जिद को तमाम दूसरी मस्जिद की तरह बंद कर दिया था, इस ताल्लुक से मजीद कोई फैसला नहीं लिया था बल्कि उसकी तरफ से जाली दस्तखत के जरिए अजायब घर वाला फैसला लिया गया था, लिहाज़ा वह फैसला ही गलत था, असल वह मस्जिद ही है मुहम्मद फतेह के दौर से , बस उसे अमली तौर से मस्जिद बनाना बाक़ी रह गया है, इसलिए पिछले फैसले को मंसूख किया जाता है, आगे ये भी कहा गया है के इसमें सबको आने की इजाजत होगी किसी को रोका नहीं जाएगा,
इस्लाम की अगर फिक्र होगी तो उर्दूगान पहले हमजिंस परस्तों (LGBT) के लिए बनाए गए कानून को खतम करता, शराब के लाइसेंस को खतम करता, जिस्म फरोशी के अड्डों को खतम करता जहां एक लाख से भी ज़्यादा तुर्क लड़कियों को ज़िना के लिए मजबूर किया जाता है और उससे तुर्क सरकार 4 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा सालाना कमाई करती है, शरई तौर पर तलाक को नफेज करने का फैसला लेता, तादाद बिविओ की पाबंदी को खतम करता, या कम से कम किसी भी सरकारी हलफ बर्दारी के वक़्त अतातुर्क दस्तूर के मुताबिक तुर्क कौमियत की कसम खाने को मंसूख करके अल्लाह की कसम खाने का फरमान जारी करता,
हालांकि दुनिया में ऐसा कोई मुस्लिम मुल्क नहीं है जहां हलफ बर्दारी के वक़्त गैर अल्लाह की कसम खाई जाती हो सिवाए तुर्की के,
फलस्तीन मुसलमानों कि अगर फिक्र होती तो उनके दुश्मन इस्राइली से तिजारत और अस्करी ताल्लुकात खतम करता, यहूदियों को फ़्री वीसा देकर बुलाना बंद करता, अपने मुल्क से इस्राइली सिफारत खाने और काउंसिल खाने को बंद करता,
वैसे भी आया सोफिया को मस्जिद कहना जियादती होगी जब तक इसके अंदर से तमाम तस्वीरों और मुजस्समो को निकाल ना दिया जाए जो दीवारों में मौजूद हैं जैसे हजरत ईसा मसीह की तस्वीरें, हज़रत मरयम की तस्वीरें , और बानी कनीसा के मुजस्समे और तस्वीरें , मुख्तलिफ शक्लों में
इसी तरह मस्जिद के सेहन में किब्ला की तरफ पांच पांच क़ब्रें बनाई गई हैं,
सुल्तान सलीम सानी, सुल्तान मुहम्मद, सुल्तान मुराद, सुल्तान मुस्तफा, और सुल्तान इब्राहीम अव्वल के मकबरे,
लिहाज़ा जब तक इन कब्रों को उखाड़ ना दिया जाए और अंदर से इसाइयों की बनाई हुई तस्वीरें और बनाए हुए मुजसामे निकाल ना दिए जाएं उस वक़्त तक अहले तौहीद उसमे नमाज़ पढ़ने को जायज नहीं समझेंगे,
क्यूंकि रसूल अल्लाह मुहम्मद सल्लैलाहु अलैहि वसल्लम ने फतह मक्का के वक़्त सबसे पहला काम खाना काबा से उसमे बानी तस्वीरें और बुतों को हटा कर किया था, फिर अंदर नमाज़ के लिए गए थे, और आप सल्लैलाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है
: (كُلُّ الأرضِ مَسجِدٌ وطَهورٌ، إلَّا #المَقبُرةَ والحَمَّامَ).
मकबरा और हम्माम के सिवा पूरी रू ए ज़मीन हमारे लिए मस्जिद और पाकी का जरिया है,
और फरमाया:
: (إنَّ من كانَ قبلَكم كانوا يتَّخذونَ القبورَ مساجدَ ألا فلا تتَّخِذوا القبورَ مساجدَ إنِّي أنْهاكم عن ذلِكَ).
" पहले के लोग क़ब्रो को सजदा गाह बना लेते थे लेकिन में तुम लोगों को इस काम से रोक रहा हूं"
और फरमाया:
: (لعنَ اللَّهُ اليَهودَ والنَّصارى اتَّخذوا قبورَ أنبيائِهم مساجدَ ألا فلا تتَّخذوا القبورَ مساجدَ فإنِّي أنْهاكم عن ذلِكَ).
" अल्लाह की लानत हो यहूद और नसारा पर जिन्होंने अपनी अंबिया की कब्रों को सजदा गाह बना लिया, तुम लोग कब्रों को सजदा गाह ना बनाना, मैं तुम लोगों को इस काम से रोक रहा हूं "
और फरमाया :
: (إنَّ مِن شِرَارِ النَّاسِ مَن تُدرِكُهُمُ السَّاعَةُ وهُمْ أَحياءٌ والَّذين يتَّخِذونَ القُبورَ مَساجَدَ).
"इंसानों में सबसे बुरे लोग वह है जिन पर कयामत कायम होगी और जो क़ब्रो को सजदागाह बना लेते हैं "
साभार: डॉक्टर अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi