Saturday, September 26, 2020

FATHER DAY , MOTHER DAY AUR LABOUR DAY KI HAKEEKAT




फादर डे, मदर डे और लेबर डे की हकीकत


आज की दुनिया में अब कोई भी ऐसा महीना नहीं गुजरता होगा जिसमें कोई डे ना मनाया जाता हो,
ये सिर्फ हमारे मुल्क में नहीं बल्कि दुनिया के ज़्यादातर मुल्कों में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है,
कुछ डेज को हर कोई जानता है जैसे फादर्स डे, मदर डे, चिल्ड्रेन डे, लेबर डे, इस तरह के जितने भी डेज हैं, अब दूसरी रस्मों की तरह इनको भी पाबंदी से अदा दिया जाता है,
इस तरह के डेज में पार्टियों से लेकर बड़ी बड़ी ऑर्गनाइजेशन भी अपने मेंबर को इकट्ठा करके दिनो में पूरी तैयारी के साथ भीड़ लेकर जमा हो जाती है, किसी की नीयत पर तो शक नहीं किया जा सकता, लेकिन जब हम जमीनी हकीकत को देखते हैं तो ये सब डेज का कोई फायदा नहीं दिखाई पड़ता,
मां बाप के लिए जो डेज मनाया जाता है वह मगरिब (West) की देन है लेकिन मगरिब मुल्कों में जो मां बाप की हालत है वह किसी से ढकी छुपी नहीं है, मां बाप जैसे ही बुढापे में कदम रखते हैं ,बच्चे रिश्तेदार उन्हें ओल्ड एज होम के हवाले कर देते हैं ताकि हर तरह की ज़िम्मेदारी और परेशानी से छुटकारा मिल जाए , सिर्फ एक मिसाल से फादर डे ,मदर डे की पोल खुलती नज़र आती है,
आज कल डेज के नाम पर जो कुछ भी मनाया जाता है तो हमें सबसे पहले ये देखने की जरूरत है कि यह डेज मानने की नौबत क्यूं अाई ???
क्या डे मनाने से मां बाप के हुकूक मिल जाएंगे ??
क्या डे मनाने से औरतों के हुकूक मिल जाएंगे ??
क्या डे मनाने से यतीम और मजदूरों के हुकूक मिल जाएंगे ??
क्या डे मनाने से अंधो को उनके हुकूक मिल जाएंगे ??
यह और इस तरह के सवाल को बहुत गौर से समझने की ज़रूरत है
मजदूरों के हुकूक की बात करने से पहले हमें ये भी जानने की जरूरत है कि इस्लाम के आने से पहले मजदूर तबके कि क्या हालत थी , अमीरों का उनके साथ कैसा तरीका था ,
रोम के बादशाह का रवैया यह था कि हर तरह के हुकूक उन्हीं के पास थे जिसको मानने पर लोग मजबूर थे, जाहिर सी बात है जहां पर हर तरह के हुकूक बादशाहो के पास होंगे वहां के मजदूरों के हुकूक और उनकी हालत को आसानी से समझा जा सकता है इस बारे में ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है दूसरे अल्फाज में कहा जा सकता है कि सबसे ज्यादा बुरी हालत मजदूरों की थी
इस वक्त आमतौर से मजदूरों के तीन तरह के परेशानियां हैं
1- कम पैसा देकर ज्यादा काम लेना
2-काम लेकर पैसा वक्त पर ना देना
3-मजदूर की ताकत से ज्यादा काम लेना
इस्लाम इन सब परेशानियों का हल 1400 साल पहले पेश कर चुका है
इस्लाम कहता है:-" मजदूर की मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले दे दो"
अगर इस पर अमल किया जाए तो पहली परेशानी का हल इसमें मौजूद है
इसी तरह मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:-" तीन तरह के लोग ऐसे हैं जिनके बारे में मैं कयामत के दिन खुद वकालत करूंगा इनमें से एक शख्स वह भी है जिसने किसी को काम पर रखा उससे पूरा काम लिया और उसको पूरी मजदूरी दी"
अगर इस बात पर अमल किया जाए तो दूसरी परेशानी का हल मौजूद है,
एक मौके पर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया:-" जिस तरह अपनी औलाद का सम्मान करते हो उनका भी उसी तरह करो और उनको( मजदूरों) वही खिलाओ जो खुद खाते हो "
एक मौके पर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:-" मजदूर तुम्हारे भाई हैं "
अगर कोई शख्स मजदूरों को अपने भाई की तरह समझेगा तो फिर उसके साथ ज़्यादती नहीं होगी अगर इस्लाम के इस नियम को अपना ले तो फिर लेबर डे या इस तरह के किसी डे को मनाने की जरूरत नहीं होगी
इस तरह हम इन कामों में होने वाली फिजूलखर्ची से भी बच जाएंगे
लेबर डे या और कोई डे मनाने वालों तक हमें इस्लाम के हुक्म को ज़रूर पहुंचाना चाहिए
साभार : Umair Salafi Al Hindi