डार्विन थिअरी (Theory Of Evolution) - अक्ल या ज़लालत और लिबरल मुसलमान
चार्ल्स डार्विन (1809-1882 CE) वह पहला मगरिबी मुफक्किर है जिसने इंसान की तखलीक के मसले में Theory Of Evolution को बाजाब्ता पेश किया, वह कहता है की आज से 12 अरब साल पहले समुंदर के किनारे पानी की सतह पर काई नमूदार हुई, फिर उस काई के किसी ज़र्रा में किसी ना किसी तरह हरकत पैदा हुई थी, यही इस दुनिया में ज़िन्दगी की पहली किरण थी,
इसी जराशीम (Germ) हयात से बाद में पेड़ पौधे और उसकी मुख्तलिफ शक्लें वजूद में अाई, फिर जानवर वजूद में आए और आखिर में बंदर की नसल से इंसान पैदा हुए,
डार्विन की तहकीक अपने मकाम पर सही और दुरुस्त है या गलत ये इस पर हम चर्चा नहीं करना चाहते अभी,
वाकया ये है के डार्विन पर इस तहकीक का ये असर हुआ कि वह बिल आखिर खुदा का मुनकर होकर मरा था, शुरू में वह खुदा परस्त था, फिर जब उसने ये नजरिया पेश किया तो ला अद्रियत की तरफ मायल हो गया और बिल आखिर खुदा की हस्ती से बिल्कुल इनकार कर दिया,
इसी वजह से उसने यूं कहा था के उस काई में किसी ना किसी तरह " ज़िन्दगी पैदा हो गई" इससे साफ जाहिर है कि वह उस वक़्त खुदा को हस्ती के बारे में शक वा शुबुहात का शिकार था जैसा कि आज इनकार ए हदीस और लिबरल मुसलमान शिकार हैं,
इन दो वाकयात से हम इन नतीजों पर पहुंच सकते हैं
1- अगर अक्ल वही (Revelation Of Allah) के ताबे होकर चले तो ये खालिक ए कायनात पर बे पनाह ईमान वा यकीन का सबब बनती है,
2- अगर अक्ल वही से बेनियाज होकर चले तो बसा औकात ज़लालत वा गुमराही के इंतेहाई गहराईयों में जा गिरती है,
यहीं से अक्ल और वही (Revelation) के मकामात (Importance) का फैसला हो जाता है, हकीकत ये है कि इंसान की अक्ल इंतेहाई महदूद (Limited) है और ये कायनात ला महदूद (Unlimited) है,
अक्ल की मिसाल आंख की तरह है और वही (Revelation) वह खारजी रोशनी है जिसकी मौजूदगी में अक्ल सही रास्ते पर चल सकती है,
वही , खालिक ए कायनात के इल्म वा हिकमत का दूसरा नाम है, और ये तो ज़ाहिर है के कायनात की चीज़ों का हाकीकि इल्म खालिक ए कायनात से ज़्यादा कौन जान सकता है,
लिहाज़ा जो अक्ल वही (Revelation) की रोशनी से बेनियाज होकर अपना रास्ता तलाश करेगी वह हमेशा अंधेरे में ही भटकती रहेगी, और यही कुछ शुरू इस्लाम से मूर्ताद कुछ लोगों से लेकर आज तक अक्ल वा अहले अक्ल के साथ होता रहा है, और आगे भी होता रहेगा,
यही वजह है कि क़ुरआन करीम में उस अक्ल को जो वही (Revelation) की रोशनी से फायदा नहीं उठाती है वो हैवानी सतह की अक्ल से भी बदतर कहा गया है,
اِنَّ شَرَّ الدَّوَآبِّ عِنۡدَ اللّٰہِ الصُّمُّ الۡبُکۡمُ الَّذِیۡنَ لَا یَعۡقِلُوۡنَ ﴿۲۲﴾
" यकीनन अल्लाह के नजदीक सबसे बदतर हैवान वह (इंसान) है जो कुछ समझते नहीं "
(क़ुरआन अल अनफाल आयात 22)
दूसरे मकाम पर फरमाया :
وَ لَقَدۡ ذَرَاۡنَا لِجَہَنَّمَ کَثِیۡرًا مِّنَ الۡجِنِّ وَ الۡاِنۡسِ ۫ ۖ لَہُمۡ قُلُوۡبٌ لَّا یَفۡقَہُوۡنَ بِہَا ۫ وَ لَہُمۡ اَعۡیُنٌ لَّا یُبۡصِرُوۡنَ بِہَا ۫ وَ لَہُمۡ اٰذَانٌ لَّا یَسۡمَعُوۡنَ بِہَا ؕ اُولٰٓئِکَ کَالۡاَنۡعَامِ بَلۡ ہُمۡ اَضَلُّ ؕ اُولٰٓئِکَ ہُمُ الۡغٰفِلُوۡنَ ﴿۱۷۹﴾
" और यह हक़ीक़त है कि बहुत-से जिन्न और इनसान ऐसे हैं जिनको हमने जहन्नम ही के लिए पैदा किया है. उनके पास दिल हैं, मगर वे उनसे सोचते नहीं. उनके पास आँखें हैं, मगर वे उनसे देखते नहीं. उनके पास कान हैं, मगर वे उनसे सुनते नहीं. वे जानवरों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी ज़्यादा गए गुज़रे. ये वे लोग हैं जो ग़फ़लत में खोए गए हैं "
( क़ुरआन अल अाराफ आयात 179)
इस आयात का शुरुआती हिस्सा बता रहा है कि इससे मुखातिब वह लोग हैं वो वहीं ए इलाही पर ईमान नहीं लाते , इनकी अक्ल महज जानवरों जैसी है, बल्कि उससे भी कमतर , क्यूंकि वह अक्ल वा शाऊ र रखने के बावजूद वही की रोशनी से फायदा नहीं उठाते
साभार : Umair Salafi Al Hindi