Monday, September 14, 2020

AURAT- ISLAM AUR TAHZEEB KI KASHMAKASH ME (PART 2)





औरत - इस्लाम और तहजीब की कशमकश में (किस्त 2)

औरत !! लिबरल मुसलमान उर्फ मुनकर ए हदीस के नर्ग में

बेहिजाबी का नारा दरअसल यहूदियों का नारा है,

शुरुआती इस्लाम का वाकया है , अबू औन का बयान है

" अरब की एक औरत बनी कैनूकआ के मुहल्ले में माल बेचने के अाई, फिर थोड़ी देर के लिए एक सुनार के करीब बैठ गई, यहूदियों का एक जमघट उसकी नकाब उतरवाने पर तुल गया, मगर वह बराबर इनकार करती रही, इतने में सुनार चुपके से उसके कपड़े का किनारा उसकी पीठ से बांध दिया, जब वह औरत वहां से जाने के लिए उठ खड़ी हुई तो उसका सतर खुल गया, जिस पर यहूदी बहुत ज़ोर से हसने लगे, उस औरत ने एक ज़ोर को चीख लगाई, ये सूरत ए हाल देखकर पास के एक बगैरत मुसलमान ने उस सुनार का कतल कर दिया और यहूदियों ने उस मुसलमान का कतल कर दिया, फिर क्या था यहूदी और मुसलमान में तू तू मैं मैं शुरू हो गई "

उसके बाद से आज तक यहूदी बराबर औरतों को इस्लामी कानूनों से निकालने के लिए बहुत ही दिलकश और दिल शोज़ नाम देते आ रहें हैं,

ऐ खातून ए इस्लाम ! तू इन बदमाशों के चंगुल में ना फंस।
तू नौजवान मर्दों कि मां और होनहारों की दरगाह है।

यकीनन जिस चीज की ये नारेबाजी और हंगामा आराई ये लोग कर रहें हैं, निहायत ही खतरनाक हरकतें हैं,

किसी ने क्या खूब कहा है :

" कसम बाखुदा ! हया बाक़ी ना रहें तो ज़िन्दगी बेगार है, ऐसी ज़िन्दगी में कोई भलाई नहीं"

ए खातून ए इस्लाम ! हमें मालूम है के आज राज़ाईल वा फाजायेल पर ग़ालिब है, मगर अच्छे से समझ लो उमर जितनी भी हो बहरहाल कम ही है, एक ना एक दिन दुनिया को छोड़ना ही है,

जिस दिन औरत इस्लाम के अता करदा नेमतों को छोड़कर इन बदमाशों के फरेब में आ गई उस दिन से मर्दों के साथ बेझिझक अख्तलात (Mix Gathering) , मैदानों, कारखानों, कॉलेेज, साहीली इलाकों, पार्कों और सरे बाज़ार इतनी रुसवाईयां हुई के इंतेहा तक जा पहुंची...

इस बात का इजहार शोहरत याफ़्ता बहुत सी औरतों ने किया है के

" हम तहरीक आजादी औरत के चंगुल में ऐसे फंसे के ना शर्म बाक़ी रही ना कुछ हया ! हद तो ये हो गई के दीन ए इस्लाम से भी हाथ धो बैठे, ऐ मेरी बहनों ! तुम हमसे सबक हासिल करो बदमाशों और याहुद के फरेब में ना आओ"

अब हम सरसरी तौर पर उन औरतों के अकवाल का ज़िक्र करेंगे जो अखतालात मर्द और औरत और मॉडर्न तहजीब के लंबे तजुर्बे से गुजरने के बाद दूसरी औरतों को दरस ए सबक और एक पैग़ाम देना चाहती हैं के इस्लामी हिजाब हमेशा लाज़िम पकड़ें, इस्लामी ज़िन्दगी तहज़ीब पर बखुषी राज़ी हों,

एक मुस्लिम शाएराह ने कहा

"दुनिया की सबसे अच्छी औरत वह है जो घर के काम में मसरूफ रहे, जब घर में रहती है तो घर की मालकिन है जिसके हुकम को सर आंखों पर रखते हैं"

" सही मानो में औरत का वकार घर में है , बच्चो की तरबियत करने और शौहर का साथ देने में है "

असल में औरत पर ज़ुल्म वह लोग करते हैं जो औरतों को अर्श से फर्श पर का खड़ा किए हैं, जब जी चाहा उनके लुत्फ़ उठाया और जब जी चाहा उनको धुत्कार दिया।

अफसोस है अगर मुसलमान अब भी ना जागे तो......!

एक गैर मुस्लिम औरत लिखती है :

" हमारे बच्चों का घरों में खादिम बनकर रहना हज़ार दर्जा बेहतर है और कम नुकसान का जरिया है उससे के वह कारखानों में ऊंची ऊंची नौकरियों पर रहें, जहां लड़की उनका गुलाम होकर रहती है और आखिर में उसका जीना दूभर हो जाता है "

एक अमेरिकी अख़बार की नुमाया औरत का बयान है

" मर्द और औरत के अख्तालात से अब बचो और आजादी औरत के नारों को छोड़ दो, पर्दा के उस दौर कि तरफ फिर से पलट जाओ जिसमें औरतों के जरिए कौमों को उरूज हासिल हुआ, ये तुम्हारे लिए अमेरिकी, यहूदी और ईसाई तहज़ीब और तंद्दुन से बहुत बेहतर है, क्युकी हमने बहुत तजुर्बा करके देख लिया, अमेरिकी समाज अबाहियत और फहश के रंग बिरंगे मनाजिरा पेश करने में अपना सानी नहीं रखता,"

" बिला शक वा शूबाह अज़ादी औरत और अखतलात मर्द वा औरत ने कारखानों , साहिलि मकामात, कॉलेज, क्लब में ऐसी घिनौनी सूरत ए हाल इख्तियार कर ली है जिसके तसव्वुर से कलेजा मुंह को आ जाता है, और में हवास बाखता हो जाती हूं "

एक मशहूर सिंगार निगार " फाबियान " नामी खातून ने बयान दिया के :

" अगर मुखपर अल्लाह का फजल वा करम ना होता तो मेरी ज़िन्दगी वीरान हो जाती, क्यूंकि मौजूदा दौर में इंसान ख्वाहिशात का गुलाम है "

फ्रांस की एक जर्नलिस्ट खातून ने बयान दिया के

"मैंने अरब कि औरतों को बा इज्जत और काबिल ए एहतेराम पाया है मुकाबले यूरोपी खवातीन के, और मैं अरब कि औरतों को बड़ा खुश नसीब समझती हूं और मैं उन्हें नसीहत करती हूं के वह ज़ुल्मत परस्त और फहशकारी के मरकज यूरोप की तरफ हरगिज़ हरगिज़ ना देखें "

अमेरिका की एक फिल्मी अदाकारा लंबी मायूसी की ज़िन्दगी गुजारने के बाद खुदकुशी करते वक़्त उन औरतों के नाम जो सिनेमा में अमल या दखल या किसी किस्म का पेशा अख़्तियार करने की ख्वाहिशमंद हैं ये पैग़ाम देते हुए लिखती है,

" घरेलू और आइली ज़िन्दगी हाकीकी साआदत मंदी का जरिया है और औरतें दुनियां की जाहिरी चमक वा दमक पर खुश ना हों, सिनेमा में अमल वा दखल निहायत ही बद बख्ती का काम है, लिहाज़ा कोई औरत सिनेमा में ना छोटा काम की ख्वाहिशमंद हो और ना अदाकारी की "

ये मश्रिक वा मगरिब की औरतों के कुछ काबिल ए इब्रत बयानात थे, जो तहरीक आजादी अौरत का शिकार हुई, ये औरतें दूसरी औरतों के लिए सबक है,

तो ऐ खवातीन ए इस्लाम !! फ़ितना वा खतरा में मुब्तिला होने से पहले होशियार हो जाएं।

अल्लाह ताला भूले भटके मर्द वा औरतों को अक्ल और सही राह से हमकिनार करे और हम सबको जाहीरी और बातिनी साजिशों से महफूज़ रखे.... आमीन

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com