लड़की से निकाह के लिए इजाज़त लेना और दस्तूरी इजाज़त का रिवाज:
निकाह के लिए एक तरफ वली की इजाज़त शर्त है तो दूसरी तरफ बालिग लड़की की रजामंदी और इजाज़त को भी खास अहमियत हासिल है,
वली (बाप वगेरह) को हुकम है के निकाह से पहले लड़की की इजाज़त हासिल करे,
नबी ए रहमत मुहम्मद (sws) का इरशाद है
"बेवा औरत से शादी के लिए सरीही इजाज़त लेकर निकाह किया जाए और कुंवारी औरत का निकाह भी उसकी इजाज़त से किया जाए, इजाज़त लेने वाला औरत का बाप हो या वली हो"
सहाबा ने अर्ज़ किया:- कुंवारी लड़की शर्म कि वजह से बोल नहीं पाएगी "
उसकी इजाज़त का क्या तरीका है??
आपने फरमाया : उसकी इजाज़त इसकी खामोशी है "
(बुखारी वा मुस्लिम)
इजाज़त का मकसद लड़की की रजामंदी मालूम करनी है,
ये नहीं के खानापूरी के लिए रस्मी तौर पर या ज़ोर ज़बरदस्ती करके ज़बान से " हां " कहलवा लिया जाए
उस रजामंदी और मुहब्बत की बुनियाद पर रिश्ता कायम नहीं होता,
बल्कि ये एक बुनियादी कमजोरी है जो बूरे नतीजे और तरह तरह के रंग दिखाती है,
इजाज़त लेने का हमारा खुद साखता दस्तुरी तरीका,
मुसलमानों में इजाज़त लेने का आज का तरीका ,शरीयत के खिलाफ और गैर मज़हब है इससे कोई मकसद भी हासिल नहीं होता,
होता ये है के अकद निकाह के दिन जब महमानों की खूब भीड़ होती है और दावत का इंतजाम मुमकिन तौर पर अमली शक्ल अख़्तियार करता है , तो ठीक निकाह के वक़्त जब लड़की महमानो और अपनी सहेलियों के बीच भीड़ में बैठी होती है,
फिर तीन अजनबी मर्द, एक काज़ी और दो गवाह उस भीड़ में लड़की से इजाज़त लेने जाते हैं,
ज़रा सोचिए ! कौन ऐसी बेहया लड़की होगी जो ऐसे माहौल में अपने कौल वा बात से इजहार ए नाराजगी की जुर्रत करेगी,
लड़की से इजाज़त के लिए अजनबी मर्दों को भेजना इंतेहाई जीहालत है
शरीयत ए इस्लामी ने ऐसी इजाज़त लेने का हक सिर्फ वली को दिया है, लेकिन ठीक निकाह के वक़्त नहीं, बल्कि जब मुनासिब पैग़ाम आए तो खुले माहौल में लड़की की रजामंदी मालूम करे फिर अकद निकाह के लिए कदम उठाए
इजाज़त के लिए गवाहों को ले जाना सिर्फ है एक रस्म है,
अक्सर लोग लड़कियों को निकाह के लिए ये हदीस का ज़िक्र करते हैं कि बाप की खुशी अल्लाह की खुशी है,
तो ये एक आम हुकम है चाहे बेटा हो या बेटी यानी आम फैसलों में मां बाप की खुशी में ही अल्लाह की खुशी है,
जैसा कि एक सहाबी ने जिहाद पर जाने का फैसला किया लेकिन उसकी मां खुश नहीं थी तब अल्लाह के नबी ने हुकम दिया कि पहले अपनी मां को जो रुलाया है उसी तरफ हंसा कर आओ फिर जिहाद पर जाना,
एक मकाम पर अल्लाह ने बेटे और बेटियों को मा बाप की बात ना मानने को कहा है जब वो किसी शर्क करने को कहें, तब मां बाप की बात नहीं माननी है,
इसी तरह लड़की से इजाज़त लेने का हुक्म ख़ास है ये तो लेना ही लेना है, वरना बाद में बवाल ए जान उसके वालिदैन पर होगा,
साभार : Umair Salafi Al Hindi
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