Wednesday, September 9, 2020

AURAT- ISLAM AUR LIBRALISM KE TANAZUR ME




औरत - इस्लाम और लिब्रालिज्म के तनाजिर में

औरतें अपनी अजमत (Importance) को पहचाने

औरत आला शराफतों का मुजस्समा है, औरत अगर ना होती तो इस आलम ए रंग वा बू की तस्वीर कितनी बेरंग और किस कदर बेनूर नजर आती,

यहां इंसानियत होती ना शराफत, इल्म होता ना हुनर, अदब होता ना तहज़ीब,

यकीनन यहां सूरज भी निकलता, पर्दा शब से चांद भी झांकता, फूल भी महकते और बहारों के काफिले भी आते और आबशारों का नगमा भी सुनाई देता मगर इन चीज़ों में दिलकशी ना होती,

अल्लाह ताला ने औरत की तखलीक फरमाकर बज़्म ज़िन्दगी को मानवीयत और ज़ेबाई अता कर दी,

अल्लाह ने औरत को कमजोर बनाया लेकिन जाहिल मर्दों ने उसे लहू लुआब का खिलौना बना दिया, उसकी बदतरीन तौहीन की और उस पर ज़ुल्म वा सितम की इंतेहा कर दी,

तारीख के औराक देखिए, हर दौर की औरत कैसे कैसे मुसीबत वा मकरूहात झेलती रही, और कितनी बेदर्दी से कैसी कैसी पस्तियो में फेंक दी गई,

पत्थरों के ज़माने का इंसान पत्थर मार मार कर जंगली जानवर हलाक करता था, औरतें शिकार करदा जानवर की खाल उतारती थी, सूखे पत्ते और टहनियां जमा करती थी, एक पत्थर पर दूसरा पत्थर रगड़ रगड़ कर बड़ी मुश्किल से आग सुलगाती थी,

मारे हुए जानवर भूनती थी और मर्दों के आगे पेश करती थी, वह खालों से लिबास भी तैयार करती थी और अपने बच्चो को भी संभालती थी,

इतनी जानकाही और कठोर महनत के बावजूद जाहिली मुआशरों में औरतों की कोई हैसियत नहीं थी, वो महज़ खिलौना थी जिससे मर्द जब चाहे खेलते थे,

एक औरत के बहुत से शौहर होते थे और हर ताकतवर मर्द उन्हें भेड़ बकरियों की तरह हंका ले जाता था,

एक औरत के कई कई शौहरों की लानत भारत के कुछ सुदूर इलाकों ने आज भी जारी है,

यूनान (Greece) वह पहली सरजमीन है जहां सबसे पहले औरत को नीलाम का माल बनाया गया और खूबसूरत पत्थरों के बदले औरतों कि खरीद फरोख्त होने लगी,

मिस्र में औरतें दरिया ए नील की भेंट चड़ाई जाती थी,

हिन्दुस्तान में औरत को पांव की जूती कहा जाता था,

बेटी बाप कि विरासत से महरूम रखी जाती थी,

बेवाओं को मनहूस समझा जाता था,

शौहर जब मर जाता था तब उनके साथ उसकी जीती जागती बेवाओं को भी ज़िंदा जला दिया जाता था,

आज भी बेवाओं को ज़िंदा भस्म कर देने के वाक्ए पेश आते हैं,

इसी तरह जजीरा ए अरब में बेटियां पैदा होते ही ज़िंदा दफन कर दी जाती थी,

यही अहवाल वा जरूफ थे जब 7वी सदी ईसवी में इस्लाम का अब्र ए रहमत बरसा तो औरत की हैसियत एक दम से बदल गई,

नबी ए रहमत मुहम्मद साहब (sws) ने इंसानी समाज पर एहसान अज़ीम फरमाया,

औरतों को ज़ुल्म, बेहायाई, रुसवाई और तबाही के गढ़े से निकाला, उसे हिफाज़त बक्शा, उनके हुकूक उजागर किए,

मां, बहिन, बीवी, बेटी की हैसियत से उनके फराइज़ बतलाए और उन्हें रब्बत उल बैत (घर की ज़ीनत) बनाकर इज्ज़त वा एहतेराम की सबसे ऊंची मस्नद पर फ़ैज़ कर दिया,..

आज कल मगरिबी तहज़ीब का शैतानी चलन उरूज़ पर है, मीडिया ने इस लानत को आम कर दिया है,

लोग अल्लाह की जात को भूल गए हैं घर-घर टेलीविजन मौजूद हैं गंदी फिल्में चल रही है

बदखलाक़ ड्रामाओ की नुमाइश हो रही है, और फ़ूहड़ गानों की धुन से फिजा गूंज रही है,

दिल पर हाथ रख कर कहें, क्या ये एक मुसलमान की मुआशारियत है ??

उम्मत की औरतों को इस फितने से खबरदार रहना चाहिए

मगरिबी तहजीब ने औरत की इज्जत वा वकार जिस तरह ख़ाक में मिलाया है, उसके तबाहकुन नतायेज से आज खुद अमेरिका और यूरोप के कद्दावर दानिश्वर भी परेशान हैं,

अमेरिका के साबिक प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन की बीवी हिलेरी क्लिंटन बहुत पढ़ी लिखी औरत हैं,

बेनजीर भुट्टो के दौर ए इकतेदार में पाकिस्तान आई यहां उन्होंने कॉलेज की तालीबात के एक इज्तेमा से खिताब किया, उन्होने मगरिबी तहज़ीब की संगीन नुक़सानात का ऐतराफ करते हुए कहा

"You Are Lucky That You Have Only One Bag, In United States Of America School Girls Have Two Carry Bags, One For Books And One For Child"

(Islam And Secularism By Khalid Nazir Page 34)

"यानी आप खुशनसीब है के आप स्कूल आती हैं तो सिर्फ एक बस्ता लाती है, मगर अमेरिका कि हालात इसके खिलाफ हैं, वहां अक्सर स्कूल की बच्चियों को दो बसते लाने पढ़ते हैं, एक किताबों का बस्ता और दूसरा अपने बच्चे का। "

हमारे यहां जों लिबरल हलके मगरिबी चलन का गुण गाते और रोशन खयाली का रंग अलापते हैं उन्हें अमेरिका कि सफ ए अव्वल की दानिश्वर खातून के एतराफ ए हकीकत से सबक लेना चाहिए,

इस्लाम इस दुनिया में जिस मकसद के लिए आया है, उनमें एक अहम तरीन मकसद इफ्फत और पाक बाज़ी की तालीम है,

उम्मत ए मुसलमां की बेटियों को बड़ी बसीरत के साथ फैसला करना चाहिए के आप की ज़िन्दगी की घुली मिट्टी को किस सांचे में ढाल लेंगी ??

मगरिबी तहज़ीब के इस सांचे में जो सारी दुनिया के मुसलमानों का खून पी रही है या उसके मुकाबिल दीनी तालीम के उस सांचे में जिसने सय्यदा खतीजा , सय्यदा आयशा , सय्यदा फातिमा , सय्यदा खंसा , सय्यद उममे सुलैम , सय्यदा ऊम्मे एम्मारा, जैसे आला मकाम खवातीन की सीरत वा किरदार के बेमिस्ल नमूने दरखशान कर दिए थे,???

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com