Wednesday, September 2, 2020

MOJEZA KA INKAAR AUR MUNKIR E HADITH KA NAZARIYA (PART 1)




मॉजेज़ा (Quranic Miracles) का इनकार और मुनकर हदीस का नजरिया (किस्त १)
मोजेंजा (Miracles) का इस्तेलाही (Terminology) मतलब ये है
" कोई ऐसा खर्क ए आदत या (Against Nature) आम दस्तूर और मुशाहिदा के खिलाफ कोई काम या वाकया जिसका होना किसी नबी से हुआ हो,"
क़ुरआन में मोजेजे के लिए मुबाशहिरा के लफ्ज़ इस्तेमाल किए गए हैं, और ऐसा कोई ना कोई माेजेज़ा अंबिया के साथ जरूर लाज़िम समझा जाता रहा है, इसलिए अंबिया को मुखातिब करने वाले खास तौर से अपनी बात की सच्चाई के सबूत में मोजेंजे की फरमाइश भी करते रहें हैं, जैसे
1- इंसान की आदत है कोई भी वाकिया आदत के खिलाफ सुनता है तो साफ तौर पर इनकार कर देता है और अगर खुद अपनी आंखो से देख ले तो हैरान राह जाता है, लेकिन अगर वहीं वाकया दो तीन या चार मर्तबा पेश आ जाए तो वह आदत बन जाती है, लिहाज़ा उसकी हैरानगी खतम हो जाती है,
उसकी सबसे साफ मिसाल तो इंसान की अपनी पैदाइश है जो नापाक पानी के कतरो से पैदा हुआ है और जिसकी तरफ अल्लाह ताला ने बार बार तवाज्जोह दिलाई है, लेकिन चुकी ये अमल देखना आदत बन चुकी है, लिहाज़ा इस अमल पर अब किसी तरह की हैरत तो दरकिनार ख्याल तक भी इंसान के दिल में नहीं आता,
इसकी दूसरी किस्म ये है के कोई एक वाकया इंसानी तारीख के किसी खास दौर में तो माेजेजा समझा जाता है लेकिन बाद के दौर में वो माेजेजा नहीं रहता, जैसे
हजरत सुलेमान अलैहिस्सलाम को ये माेजेजा दिया गया था के हवा उनके ताबे थी, और वो एक महीने का सफर एक पहर में तय कर लेते थे,
लेकिन आज हवाई जहाज़ की परवाज़ ने इस माेजेजा की एजाजी हैसियत को खतम कर दिया है, या इसी तरह अगर अरस्तू या इब्न सिना के ज़माने में कोई सख्स ये एजाज पेश करता के यूनान में बैठकर हिन्दुस्तान में रहने वाले किसी सख्स से बात चीत कर रहा है तो उसे अवाम तो दूर मुफक्किर भी पागल करार दे देते, लेकिन आज टेलीफोन की इजाद ने उसकी ऐजाजी हैसियत खत्म कर दी है,
इन तसरीहात से ये बात साफ होती है के कायनात की चीज़ों की खासियत से मुताल्लिक इंसान का इल्म या ला इल्मी ही किसी एक वाक्ए को किसी खास दौर में माेजेजा समझती हैं लेकिन वही वाकया उससे अगले दौर में आदत बन जाता है,
अब देखिए कुरआन करीम में ऐसे बेशुमार वाकयात मज़कूर है जो आज तक माेजेजा ही बने हुए हैं, और इंसान का इल्म इस गुत्थी को सुलझा नहीं सका,
सवाल ये है के क्या ऐसे मोजेजात को बिना किसी चुं चरा कर कुबूल कर लेना चाहिए या उनकी तावील पेश करके इंसान की इल्मी सतह तक नीचे ले आना चाहिए ??
ये सवाल दरहकीकत ये सवाल है के क्या इंसान अश्या ए फितरत के हर चीज और कानूनों के बारे में जान चुका है ??
अगर इस सवाल का जवाब नहीं में है तो ऐसे मोजेज़ात का बिना चूं चरा कर तस्लीम करना ही राह ए सावाब है
इस सवाल के जवाब में मुनकर साहब क्या लिखते हैं ,इंशा अल्लाह किस्त २ में पेश किया जाएगा
साभार : Umair Salafi Al Hindi