Monday, September 21, 2020

AURAT KI FARMABARDARI AUR MUNKIREEN E HADITH KE WASWASE (PART 3)





औरत की फर्माबारदारी और मूंकीरीन ए हदीस की वस्वसे ( किस्त 3)

अब इस आयत के दूसरे हिस्से की तरफ आते हैं

فَالصّٰلِحٰتُ قٰنِتٰتٌ حٰفِظٰتٌ لِّلۡغَیۡبِ بِمَا حَفِظَ اللّٰہُ ؕ

" जो नेक बीवियां है तो वह मर्दों कि फर्माबरदार हैं और मर्दों कि गैरमौजूदगी में अल्लाह की हिफाज़त में अपने माल वा आबरू की हिफाज़त करती हैं " (क़ुरआन अल निसा आयात 34)

इस टुकड़े पर मुनकर ए हदीस के प्वाइंट मुलाहिजा फरमाइए
فَالصّٰلِحٰتُ
1- मर्दों के मालों से औरत की जरूरत ए ज़िन्दगी पूरी होगी और उनकी सलाहियतें नशो नुमा (उभर) पाएंगी,

قٰنِتٰتٌ

2- वो अपनी सलाहियत को ज़रूरत में लाएं जिसके लिए वह खास सलाहियत पैदा की गई है

حٰفِظٰتٌ لِّلۡغَیۡبِ بِمَا حَفِظَ اللّٰہُ

3- यानी जब अल्लाह के कानून ने इस तरह औरतों की हिफाज़त ( परवरिश) का सामान पहुंचा दिया के वह उस चीज की हिफाज़त कर सकें जो पोशीदा तौर पर उनको सौंपी गई है, ( यानी भ्रूढ़ की हिफाज़त)

तो ये है वो तफसीर और तर्जुमा जो मुनकर ए हदीस ने किया है ये आपको किसी भी अहले सुन्नत की किताब में नहीं मिलेगा चाहे वो उर्दू में हो या अरबी में , नाही ये किसी रिवायत में मिल सकता है,

इस हद तक मुनकर साहब की ये बात यकीनन दुरुस्त है, अब सवाल ये रह जाता है कि क्या उनकी ये तशरीह भी सही है या नहीं ??

तो समझ लीजिए तशरीह भी यकीनन गलत है, और उसकी वजह ये हैं,

1- प्वाइंट नंबर एक में ज़रूरियात ए ज़िन्दगी के पूरे होने से जो सलाहियतों के नशोनुमा पाने को लाज़िम क़रार दिया गया है, ये उसूल गलत है और अक्ल के भी खिलाफ
فَالصّٰلِحٰتُ

औरतों की एक मुस्तकल और अलग सिफत है जिसका ज़रूरियात ए ज़िन्दगी के पूरा होने और ना होने से कोई ताल्लुक नहीं है, ऐसी औरत भी सालेह हो सकती है जिसकी ज़रूरियात भी पूरी नहीं हो रहीं हो, ऐसी औरत जिसकी ज़रूरियात ए ज़िन्दगी पूरी हो रही हैं वह मुफसिदः भी हो सकती है,

قٰنِتٰتٌ

2- पर बहेस करते हुए मुनकर साहब ने खुद लुगत उल क़ुरआन ने आखिरी नतीजा ये पेश किया है के इब्न उल फारस ने इसके बुनियादी मतलब " इताआत करना " और मुनज्जीद में इसका मतलब ये लिखा है

"इताआत करना कमाल खामोशी के साथ, नमाज़ में खड़ा होना, खुदा ताला के आगे खुसू वा खुजु करना,"

लिहाज़ा मुंकर साहब का ये माना के " अपनी सलाहियत को उभारना " उनका जाती तर्जुमा है जो सिर्फ मौके की मुनासिबत के लिहाज से कर लिया गया है,

3- अल्लाह का मतलब " अल्लाह का कानून" करना भी आपके अक्ल के घोड़े दौड़ाने की तरफ इशारा कर रहा है क्यूं ये माना लूगत (Dictionary) में कहीं नहीं है,

4- भ्रूढ़ के लिए क़ुरआन ने हर मकाम पर हमल का लफ्ज़ इस्तेमाल किया है, फिर आखिर में इस मकाम पर गायब का लफ्ज़ लाने की क्या वजह थी ??

ये तफसीर फरमाने के बाद मुनकरे साहब ने एक और नुक्ता पैदा किया है के है सिफात

فَالصّٰلِحٰتُ قٰنِتٰتٌ حٰفِظٰتٌ

क़ुरआन में सुरा अहजाब आयात 33 में मर्दों और औरतों के लिए एक बराबर बयान फरमाई हैं, तो अगर "कानितात" का मतलब औरतों को मर्दों का फर्माबारदार लिया जाए तो क्या फिर " कानितीन " का मतलब ये होंगे के मर्द भी औरतों कि फर्माबार्दारी करें ??

जवाब:

अब देखिए इस मकाम पर मुंकारे साहब ने वो आयात नकल नहीं फरमाई , और इस मकाम पर " कानीतीन" और " कानीतात " यानी मर्दों और औरतों का मुती वा फर्माबार्दार होने का ताल्लुक अल्लाह ताला से है, लेकिन यहां पहले मर्दों का ज़िक्र चल रहा है, लिहाज़ा इस मकाम पर कानीतात का मतलब मर्दों कि फरमाबरदार बीवियां ही हो सकता है,

यहां अगर इस मकाम पर कानीतीन के लफ्ज़ भी मौजूद होते तो मुनकर साहब का मकसद पूरा हो सकता था !!

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com