Sunday, September 20, 2020

MARD KI AURAT PAR HAKIMIYAT AUR MUNKIREEN E HADITH KE WASWASE (PART 2)




मर्द की औरत पर हाकीमियत और मुनकिरीन ए हदीस के वसवसे (किस्त 2)

क़ुरआन में है

اَلرِّجَالُ قَوّٰمُوۡنَ عَلَی النِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ اللّٰہُ بَعۡضَہُمۡ عَلٰی بَعۡضٍ وَّ بِمَاۤ اَنۡفَقُوۡا مِنۡ اَمۡوَالِہِمۡ ؕ فَالصّٰلِحٰتُ قٰنِتٰتٌ حٰفِظٰتٌ لِّلۡغَیۡبِ بِمَا حَفِظَ اللّٰہُ ؕ وَ الّٰتِیۡ تَخَافُوۡنَ نُشُوۡزَہُنَّ فَعِظُوۡہُنَّ وَ اہۡجُرُوۡہُنَّ فِی الۡمَضَاجِعِ وَ اضۡرِبُوۡہُنَّ ۚ فَاِنۡ اَطَعۡنَکُمۡ فَلَا تَبۡغُوۡا عَلَیۡہِنَّ سَبِیۡلًا

" मर्द औरतों पर हाकिम है इसलिए के अल्लाह ताला ने कुछ को कुछ पर फजीलत दी है और इसलिए भी कि वह अपने माल से (बीवी बच्चों पर) खर्च करते हैं, पस नेक औरतें वह है जो फरमाबरदार हैं और मर्द की गैरमौजूदगी में अल्लाह की हिफाजत में माल वा आबरू की हिफाजत करती हैं, और जिन औरतों से तुम्हें नाफरमानी का डर है तो उन्हें समझाओ उन्हें बिस्तर से अलग कर दो और उन्हें मारो फिर अगर वफा बरदार बन जाए तो उनको तकलीफ देने का कोई बहाना ना ढूंढो"

इस आयत में अल्लाह ताला ने मर्दों के हाकिम होने की इन पहलुओं पर रोशनी डाली है,

1- मर्द के औरत पर कव्वाम या हाकिम होने की दो वजह फरमाई है गईं है, एक यह के मर्दों को औरतों पर (जिस्म वा कुव्वत) फजीलत हासिल है ,और दूसरे इसलिए के बीवी बच्चों पर खर्च की जिम्मेदारी मर्दों के जिममें डाली गई है

2- नेक औरतों की भी दो खूबी बयान की गई है ,एक यह कि वह मर्दों की फरमाबरदार होती हैं दूसरे मर्द की गैरमौजूदगी में अपनी अस्मत की हिफाजत करती हैं ,

3- और नाफरमान औरतों के लिए तीन इकदामात बतलाए गए हैं यानी पहले उन्हें जबानी समझाएं ,अगर बाज ना आए तो उनसे अलग हो जाएं जानी बिस्तर अलग कर ले , अगर फिर भी बाज ना आए तो उनको मारकर दुरुस्त करें फिर अगर वह बाज़ आ जाएं तो सब बातें छोड़ दें और उन्हें तकलीफ ना दें,

इस पूरी आयात में मर्दों कि औरतों पर हाकिमियत का ज़िक्र है और इस आयत का हर एक हिस्सा दूसरे की भरपूर ताएद करता है, अब ये बातें इस मफ़हूम में मुनकर ए हदीस को कैसे गवारा हो सकती है ??

लिहाज़ा इस आयत की तशरीह से अलग मुनकरों ने दर्ज ज़ेल प्वाइंट पेश करके दिल का घुबार हल्का किया है,

1- ये तर्जुमा बिल्कुल गलत है,
2- अरबी की तफसीर भी गलत है, क्यूंकि वह रिवायत की ताएद में लिखी गई थी,
3- और रिवायत भी सब गलत हैं , (अगर ये सही होती तो रसूल अल्लाह को चाहिए था के एक मस्तनद नुस्खा उम्मत के हवाले कर जाते, जैसा के क़ुरआन हवाले कर गए थे,)

लिहाज़ा इस आयत का मफ़हूम या तर्जुमा या तफसीर चाहे किसी भी ज़ुबान में हो, और ये रिवायत जो पेश करती हैं सब कुछ गलत है,

इस तरदीद के बाद मुनकर ए हदीस ने जो सही मफ़हूम पेश फरमाया उसके प्वाइंट ये हैं,

1- इस आयत में बात मियां बीवी की नहीं , बल्कि समाजी आम मर्दों और आम औरतों कि हो रही है,

اَلرِّجَالُ عَلَی النِّسَآءِ

2- के माने मर्द ने औरत को रोज़ी मुहय्या की , और ये मर्द की ज़िम्मेदारी है, इसमें फजीलत की कोई बात नहीं,

"فَضَّلَ اللّٰہُ بَعۡضَہُمۡ عَلٰی بَعۡضٍ"

3- के माने एक कि दूसरे पर फजीलत है, मर्द की औरत पर और औरत की मर्द पर, मर्द अपने दायरे कार के लिहाज से अफजल और औरत अपने दायरे कार से अफ़ज़ल है,

इस तरह के प्वाइंट से मुनकर ए हदीस अपने चेलों को खुश कर देते हैं,

तजज़िया :

1- अगर सब तरजुमे, तफसीर और रिवायत गलत है तो आपकी इस तशरीह की सेहत की क्या दलील है ??

2- लुग्वी लिहाज़ से भी क़व्वाम का माना रिज्क मुहैया करने वाला नहीं बल्कि कायम रहने या रखने वाला है, अल्लाह का इरशाद है,

وۡنُوۡا قَوّٰمِیۡنَ بِالۡقِسۡطِ
" हमेशा इंसाफ पर कायम रहो "

3- और कौन किस पर अफजल है इस बात का जवाब इसी आयत में हैं

اَلرِّجَالُ قَوّٰمُوۡنَ عَلَی النِّسَآءِ

के साथ ही
بِمَا

आया है जो एक तो इस वजह को बयान कर रहा है और दूसरे ये वज़ाहत कर रहा है के ये फजीलत मर्दों को हासिल है और औरतों पर हासिल है,

4- फजीलत की दूसरी वजह अल्लाह ताला ने ये बताई है कि मर्द औरत की जरिया ए मूआस का वसीला है,

मुनकर ए हदीस ये भी कहते हैं कि अगर ये समझ लिया जाए कि कमाने वालों को खाने वालों पर फजीलत होती है तो अमीर लोग वा मफ़क्किर वा आलिम लोगों पर किसानों को हमेशा फजीलत होनी चाहिए, क्यूंकि ये लोग अनाज पैदा नहीं करते,

गौर फ़रमाया आपने !! अकल परस्ती इंसान को कहां से कहां ले जाती है, किसान अपनी फसल का नकद पैसा वसूल करके अपना अनाज बेच देता है, जब उसने पूरा गल्ला बेच दिया तब काहे की फजीलत रह गई, यही हाल मजदूर का है, लेकिन शौहर खर्च के बदले बीवी से क्या लेता है??

जैसी ज़रूरत मर्द को औरत की है वैसी ही ज़रूरत औरत को मर्द की है, जिंसी ख्वाहिशात मर्द और औरत को दोनों एक जैसी होती है, अब मर्द का औरत पर खर्च करना फजीलत नहीं तो और क्या है ??

और इस फजीलत की असल वजह ये है के औरत अगर्चे मालदार हो और शौहर गरीब हो तब भी खर्च की जिम्मदारियां मर्द ही के जिम्मे रहेंगी, इल्ला ये के औरत अपनी खुशी और रजामंदी से कुछ खर्च करे, और ये उसका एहसान होगा

साभार : Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com