औरत की पैदाइश और मुनकिरीन ए हदीस
औरत की पैदाइश के बारे में कुरआन में लिखा है
یٰۤاَیُّہَا النَّاسُ اتَّقُوۡا رَبَّکُمُ الَّذِیۡ خَلَقَکُمۡ مِّنۡ نَّفۡسٍ وَّاحِدَۃٍ وَّ خَلَقَ مِنۡہَا زَوۡجَہَا
وَ بَثَّ مِنۡہُمَا رِجَالًا کَثِیۡرًا وَّ نِسَآءً ۚ
" ए लोगों ! हमने तुम्हे एक जान से पैदा किया, फिर उससे उसकी बीवी बनाई, फिर उन दोनों से बहुत से मर्द और औरत फैला दिया " (क़ुरआन अल निसा आयात 1)
इस आयात में एक जान से मुराद आदम है, और एक जान से उनकी बीवी हव्वा हैं, फिर उन दोनों के मिलाप से तमाम इंसान पैदा हुए,
लेकिन मुंकर ए हदीस " एक जान" से मुराद वह पहला जरासीम (Germs) मुराद लेते हैं जो समुंदर के किनारे की काई में आज से अरबों साल पहले पैदा हुआ था, और
"خَلَقَ مِنۡہَا زَوۡجَہَا"
से मुराद उस जरासीम का दो टुकड़ों में बट जाना है, फिर उन दोनों टुकड़ों के मिलाप से अल्लाह ने बहुत सी खलकतें फैला दी
इस अक्ल खयाल से मुनकर ए हदीस ने तो साबित कर दिखाया के पैदाइश के लिहाज से मर्द और औरत दोनों की हैसियत एक जैसी है,
मगर हमें अफसोस है के ये तो विज्ञान और अक्ल के भी खिलाफ है, क्यूंकि
1- आज भी जरासीम की पैदाइश का सिलसिला उसी तरह चल रहा है के एक जरासीम के दो टुकड़े हो जाते हैं, फिर उन दोनों मेसे हर एक के दो, और ये सिलसिला आगे लगातार चलता रहता है, उनमें मिलाप होता ही नहीं,
2- क़ुरआन ने लफ्ज़ जौज़ का इस्तेमाल किया है, यानी आगे नसल ए इंसानी तवालुद वा तनासुल (Reproductive Organs) के वास्ते से बड़ी है, लिहाज़ा इन दो टुकड़ों से किसी पर भी एक दूसरे के जौज़ का लफ्ज़ इस्तेमाल नहीं हो सकता,
इन वजूहात की बिना पर मुनकर ए हदीस की बहैसियत पैदाइश मर्द वा औरत की एक जैसी हैसियत साबित करने की दलील दुरुस्त नहीं है,
साभार : Umair Salafi Al Hindi
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