औरत को मर्द से नहीं औरत को औरत से तहफ्फुज की ज़रूरत है,
तलाक के 80% वाकयात के पीछे हाथ एक औरत का होता है,
सास बहू जब तक अपना मकाम नहीं जानेंगी तब तक औरत के हाथों औरत जलील होती रहेगी, शौहर अगर बीवी को मारे या घर से निकाले तो उसमे शामिल सास और ननदें होती है,
1- जब एक मां अपनी आंखों में आसूं भर के बहू के उन किए जुल्मों की दास्तां बेटे को सुनाएगी तो बेटे का हाथ तो फिर ज़ालिम पर उठेगा ही क्यूंकि यहां एक मर्द बेटा है और एक औरत मां है, मां पर हुए जुल्मों का बदला लिया , मगर ज़ालिम फिर भी मर्द,
2- जब बहन भाई को भाभी के नाकर्दा जुल्मों की दास्तां सुनाएगी तो भाई बहन के बहते आंसुओं का बदला करे तो ज़ालिम फिर भी मर्द की कहलाएगा,
3- जब बीवी शौहर के सामने , सास ननद के नाकरदा जुल्मों की दास्तां सुनाएगी, आंसू बहाएगी और शौहर उस पर भरोसा करके घर अलग कर लेता है तो इलज़ाम फिर भी मर्द पर आता है,
तमाम बातों का गैर जानिब दाराना तजजिया करेंगे तो नतीजा यही निकलेगा के औरत को मर्द से नहीं बल्कि औरत को औरत से तहफ्फुज़ की जरूरत है।
मर्द तो बेचारा रिश्ते निभाने की कोशिश करता है कभी एक शौहर की हैसियत से , कभी भाई और कभी बेटे की हैसियत से ,
सास बहू ननद भाभी अगर येे तीन रिश्ते ठीक हो जाएं शायद ही बहुत कम घर बर्बाद हों और तलाकें ना होने के बराबर हों,