मर्द
मर्द दूध पिलाई भी दे,
मर्द जूता छिपाई भी दे,
मर्द हक महर भी दे,
मर्द जेब खर्च भी दे,
मर्द नान वा नफ़का भी दे,
मर्द आपके ज़ेवर की जकात भी दे,
मर्द आपके भाई बहनों के बच्चों को ईदियां भी दे,
मर्द आपके पूरे मायके का इस तरह ख्याल रखे जैसे फ़र्ज़ इबादत हो,
मर्द आपको हर मौके पर महंगे कपड़े महंगे जूते भी लेकर दे,
और मर्द की जेब से आप छिप छिपकर पैसे भी निकालती जाएं,
मर्द को शादी करनें के लिए उसका बरसरे रोजगार होना भी लाज़िम है,
मर्द का अपना घर होना भी लाजमी है ,
मर्द की तनख्वाह भी आपको एक लाख चाहिए इन सबके बावजूद भी जब आप सड़ा सा मुंह बनाकर कह दें के
" सास ससुर की खिदमत करना औरत पर फ़र्ज़ नहीं है "
भाई वाह !! हद है दोगलेपन की..
सारे फराइज़ बस मर्दों के जिम्मे में हैं और सारे हुकूक औरतों के लिए हैं,
जबतक दोनों तरफ के गलत रस्म वा रिवाज़ खतम नहीं हो जाते तब तक इसी तरह होता रहेगा निकाह मुश्किल और ज़िना आसान होगा,
लिहाज़ा इन गलत रस्म वा रिवाज़ को खत्म कीजिए और निकाह को आसान बनाएं,
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks.com