तस्वीर का दूसरा रुख
मर्द ही ज़ालिम क्यों ??
जब भी दहेज की बात आती है तो मर्दों को बुरी तरह लताड़ा जाता है, उन्हे बेगैरत और ना जाने क्या क्या कहा जाता है,
अपने यहां की बात करूं तो यहां एलानिया डिमांड तो नहीं की जाती मगर दहेज की ख्वाहिश सब करते हैं लेकिन हकीकत ये भी है के मर्दों को अगर दहेज की ख्वाहिश होती है तो जरूरी चीजों की होती है,
मगर हम लड़कियां...?? जरूरत से कई गुना ज्यादा सामान खरीदती हैं, शादी की शॉपिंग ऐसे करते हैं जैसे दो तीन नस्लों को दुकानों के चक्कर से निजात दिलाना हो, किसी तरह की क्रॉकरी, कपड़ों और ज्वेलरी का कोई सेट ना छूटे, कोई डिजाइन रह ना जाए,
एक लड़की दूसरी लड़की को देखकर , एक औरत दूसरी औरत को देखकर सामान खरीदते खरीदते अंबार लगा देती है,
शादी के मौकों पर जूता छिपाई, द्वार छिकाई और ना जाने कौन कौन सी रस्म में, किसका हाथ है ?? मर्दों का !!! मुझे तो नज़र नहीं आता!!
जब बॉक्स से सामान निकाल कर एक दो रूम भर दिए जाते हैं तो उसकी कंपनी चैक करने और ब्रांडेड और गैर ब्रांडेड का लेबल लगाने क्या मर्द जाते हैं ??
दहेज पर ताना कसने वाले अक्सर हमारी हम सनफ ही होती हैं तो फिर औरत से हमदर्दी और मर्द जालिम क्यों ?? सच कहूं तो इन रस्मों में मर्दों से ज़्यादा हमारी हिस्सेदारी है,
आखिर में मैं ये कहना चाहूंगी के जो लोग दहेज़ सिर्फ इसी को समझते हैं जो डिमांड की जाए और अगर डिमांड ना किया जाए तो बाप भाई कहते हैं के," हम अपनी बेटी बहन को खुशी से दे रहें हैं"
अगर कोई अपनी बहन बेटी को कुछ दे रहा है तो खास शादी के मौके पर क्यों ?? क्या शादी के बात उनका अपनी बेटी बहन से ताल्लुकात खतम हो जाते हैं ??
तुम चाहो तो अपने बेटियों को सातों जमीन सोना भरकर दो मगर नुमाइश करके गरीबों की झोंपड़ीयों में इज़ाफा क्यों करते हो ??
और मैं समाज से ये भी पूछना चाहूंगी के जब बेटी बहन को साजो सामान " खुशी से " दिया जाता है ताकि वह ससुराल में तानो का शिकार ना हो तो जब वही बहन बेटी विरासत जो की उसका हक़ है उसका मुतालबा करती है तो उनकी गर्दनें छुरियों की नोक पर क्यों रख दी जाती हैं ??
अगर वह ज़बरदस्ती अपना हक ले ले तो इस पर मायके के दरवाज़े क्यों बंद कर दिए जाते हैं ?? क्या उस वक्त बहन बेटी की खुशी प्यारी नहीं होती ??
साभार : बहन सबा यूसुफजई Saba Yosuf Zai
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com