Thursday, July 8, 2021

ताल्लुकात की भी चाबियां होती हैं,

 



ताल्लुकात की भी चाबियां होती हैं,


जैसे तरस रवैए वाली चाबी, जिसे आप ताले में घुमाते रह जाएं, और फिर थक हारकर छोड़ दें, और अचानक कोई आए और तहममुल, प्यार, एतमाद से झट ताला खोल जाए तो आप हैरान रह जाते हैं,

बिल्कुल इसी तरह कुछ चाबियां हमारी जिद, मनफी सोच और नफरत से आलुदा हो जाती हैं, और फिर वो किसी ताल्लुक की बहाली के काम नहीं आती,

और कुछ ताले भी जैसे कभी ना माफ करने की कसम खाए जंग आलूदा हो चुके होते हैं, और कभी कभी तो चाबियां मुट्ठी में दिल पसीज के रह जाती हैं,

क्योंकि ताले बदल चुके होते हैं, और जब दिल के ताले पर मुहर लग जाए तो फिर वह कभी नहीं खुलता ,

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks