Friday, July 23, 2021

हस्सास (Sensitive) इंसान डिप्रेशन का जल्दी शिकार होते हैं

 



हस्सास (Sensitive) इंसान डिप्रेशन का जल्दी शिकार होते हैं


कभी हमने सोचा के जहनी मर्ज़ क्यूं पैदा होते हैं ??

हम में से अक्सर इसको बीमारी ही नहीं समझते , हमारे नज़दीक बीमारी वही है जो नज़र आ जाए, जबकि जहनी तकलीफ और नफसियाती तकलीफ नज़र नहीं आती,

डिप्रेशन का पहला शिकार Sensitive इंसान होता है और खास तौर पर वह इंसान जो अपनी कैफियत का इजहार भी ना कर सकता हो, तीन चीज़ें मेंटल डिप्रेशन बढ़ाने में अहम किरदार अदा करती हैं,

रोज़गार, मुहब्बत, और इंसानी रवैए !!!

अगर देखा जाए तो सबसे अहम इंसानी रवैए हैं, ऑफिस में एक बॉस का रवैया, एक दोस्त, एक महबूब, वालीदैन, औलाद या ससुराल का बर्ताओ,

कोई ना कोई तकलीफ देने में अपना किरदार अदा कर रहा होता है, और आप " Hidden Depression" का शिकार होते चले जाते हैं,

यहां पर एक उमूमी रवैया ये भी है के कोई डिप्रेशन का शिकार है तो उसे नफसियाती मरीज समझ लिया जाता है, इसलिए लोग अपना जहनी दबाओ किसी से बांटते नहीं और अंदर ही अंदर जंग लड़ते रहते हैं !!!

अगर हम अपने रवैए को बेहतर कर लें तो किसी मरहम की जरूरत ना रहे , किसी के जज़्बात, एहसासात और खिदमात की कदर भी जान लें तो उसे जहनी दबाओ का शिकार होने से बचाया जा सकता है,

ये बात बड़ी दिलचस्प है के डिप्रेशन की वजह आपके करीबी रिश्तेदार ही बनते हैं वह किसी और को ये एजाज हासिल नहीं करने देते,

अगर शादी से पहले बेटे या बेटी की पसंद पूछ ली जाए तो क्या हर्ज है ?? और अगर पसंदीदगी हो तो एना छोड़कर वहां शादी कर देने में क्या हर्ज है ??

35% वालीदैन बच्चों की जबरदस्ती शादी करके खुद तो नाम निहाद सुरखुरुई हासिल कर लेते हैं लेकिन औलाद को डिप्रेशन और कॉम्प्रोमाइज जैसी तकलीफ में डाल देते हैं,

ससुराली निजाम जहनी तकलीफ में अहम किरदार अदा करता है, कितनी लड़कियों के ख्वाब ससुराल की दहलीज पार करते ही चकनाचूर हो जाते हैं,

हर सास अपना डिप्रेशन और महरूमी बहु में मूनतकिल करने लगती है, बहु अपने बच्चों में, और मर्द इसी चक्की के दो पाटों में पिसता रहता है,

" मुहब्बत" जिसे हमारे समाज में एक गैर अहम अनसर समझा जाता है वह भी नफसियाती दबाओ की एक अहम वजह है,

मुहब्बत जिसे हो जाए वह जेर आताब,
जो पा ले तान वा तशनी उसका मुकद्दर ,
और जिसकी खो जाए उसके लिए उम्र भर की महरूमी और अजियत,
और कोई पाकर भी मुहब्बत की कद्र वा कीमत खो देता है,

कोई हालात का मारा हो या महरूमी का , नफरत का डसा हो या मुहब्बत का , हमारे समाज में मरहम रखने की रीत ही नहीं,

किसी की नींद टूटे या ख्वाब , दिल टूटे या हिम्मत ,हमारे करीबियों को भी खबर नहीं होती क्योंकि हम अपनी दुनिया में मस्त हैं,

हमारे पास बड़े बड़े डॉक्टरों के नंबर तो हैं किसी की सुनने किया वक्त नहीं, सुनकर तसल्ली के लिए लफ्ज़ नहीं,

तसल्ली और मुहब्बत के दो लफ्ज़ हर ज़ख्म का इलाज हैं,

इस इलाज में महारत हासिल कीजिए , मसीहा आप भी हो सकते हैं, हो सकता है कोई चमत्कार का नहीं आपकी मुहब्बत और तवज्जो का मुंताजिर हो....

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks