Saturday, July 31, 2021

मदीना का बाज़ार था

 



मदीना का बाज़ार था , गर्मी की तेज़ी इतनी ज़्यादा थी के लोग निढाल थे, एक ताजिर अपने साथ एक गुलाम को लिए परेशान खड़ा था , गुलाम जो अभी बच्चा ही था वह भी धूप में खड़ा पसीना पसीना हो रहा था ,


ताजिर का सारा माल अच्छे दामों में बिक गया था बस ये गुलाम ही बाकी था जिसे खरीदने में कोई भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था,

ताजिर सोच रहा था के इस गुलाम को खरीद कर शायद उसने घाटे का सौदा किया है, उसने तो सोचा था के अच्छा मुनाफा मिलेगा लेकिन यहां तो असल लागत मिलना भी मुश्किल हो रहा था , उसने सोच लिया था के अब अगर ये गुलाम पूरी कीमत पर भी बिका तो वह उसे फौरन बेच देगा ,

मदीना की एक लड़की की उस गुलाम पर नज़र पड़ी तो उसने ताज़िर से पूछा के ये गुलाम कितने का बेचोगे ,

"ताजिर ने कहा मैंने इतने का लिया है और इतने का ही दे दूंगा "

उस लड़की ने बच्चे पर तरस खाते हुए उसे खरीद लिया ताजिर ने भी खुदा का शुक्र अदा किया और वापस की राह ली,

मक्का से अबू हुजैफा आए तो उन्हें भी इस लड़की का किस्सा मालूम हुआ , लड़की की रहमदिली से मुतास्सिर होकर उन्होंने उसके लिए निकाह का पैगाम भेजा जो कुबूल कर लिया गया,

यूं वापसी पर वह लड़की जिसका नाम शाबीता बिंत याअर था ,उनकी बीवी बनकर उनके साथ थी और वह गुलाम भी मालकिन के साथ मक्का पहुंच गया,

अबू हुजैफा मक्का आकर अपने पुराने दोस्त उस्मान बिन अफ्फान से मिले तो उन्हे कुछ बदला हुआ पाया और उनके रवैए में सर्द मोहरी महसूस की, उन्होंने अपने दोस्त से पूछा ," उस्मान ये सर्द मोहरी क्यों ??"

तो उस्मान बिन अफ़फान ने जवाब दिया ," मैंने इस्लाम कुबूल कर लिया है और तुम अभी तक मुसलमान नहीं हुए हो तो अब हमारी दोस्ती कैसे चल सकती है"

अबू हुजैफा ने कहा," तो फिर मुझे भी मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम के पास ले चलो और उस इस्लाम में दाखिल करदो जिसे तुम कुबूल कर चुके हो "

चुनांचे हज़रत उस्मान ने उन्हे मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम की खिदमत में पेश किया और वह कालिमा पढ़कर दायरा ए इस्लाम में दाखिल हो गए, घर आकर उन्होने अपनी बीवी और गुलाम को अपने मुसलमान होने का बताया तो उन दोनों ने भी कलमा पढ़ लिया ,

हज़रत अबू हुजैफा ने इस गुलाम से कहा के ," चुंके तुम भी मुसलमान हो गए हो इसलिए मैं अब गुलाम नहीं रख सकता लिहाजा मेरी तरफ से अब तुम आजाद हो"

गुलाम ने कहा," आका ! मेरा अब इस दुनियां में आप दोनों के सिवा कोई नहीं है , आपने मुझे आजाद कर दिया तो मैं कहां जाऊंगा "

हज़रत अबू हुजैफा ने उस गुलाम को अपना बेटा बना लिया और उसे अपने पास ही रख लिया ,

गुलाम ने कुरआन पाक सीखना शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में बहुत सा कुरआन याद कर लिया , और वह जब कुरआन पढ़ते तो बहुत खूबसूरत लहज़े में पढ़ते,

हिजरत के वक्त नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम से पहले जिन सहाबा ने मदीना की तरफ हिजरत की उनमें हज़रत उमर के साथ हजरत अबू हुजैफा और उनका ये लेपालक बेटा भी था

मदीना पहुंच कर जब नमाज़ के लिए इमाम मुकर्रर करने का वक्त आया तो इस गुलाम की खूबसूरत तिलावत और सबसे ज्यादा कुरआन हिफ्ज़ होने की वजह से उन्हें इमाम चुन लिया गया, और उनकी इमामत में हज़रत उमर बिन खत्ताब जैसे जलीलुल कद्र सहाबी भी नमाज़ अदा करते थे,

मदीना के यहूदियों ने जब उन्हे इमामत करवाते देखा तो हैरान हो गए के ये वही गुलाम है जिसे कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं था , आज देखो कितनी इज्जत मिली के मुसलमानो का इमाम बना हुआ है,

अल्लाह ताला ने उसे खुशगुलु इस कद्र बनाया था के जब आयात ए कुरआनी तिलावत फरमाते तो लोगों पर एक महवियत तारी हो जाती और राहगीर ठिठक का सुनने लगते ,

एक बार उम्मुल मोमिनिन हज़रत आयशा को नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम के पास हाजिर होने में देर हुई, आप मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम ने तौकफ की वजह पूछी तो बोलीं के एक कारी तिलावत कर रहा था , उसके सुनने में देर हो गई और उसकी तिलावत की तारीफ इस कद्र की के नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम खुद चादर संभाले हुए बाहर तशरीफ ले आए, देखा तो वह बैठे तिलावत कर रहें हैं,

नबी ए करीम मुहम्मद सल्लालाहू अलैहि वसल्लम ने खुश होकर फरमाया," अल्लाह पाक का शुक्र है के उसने तुम्हारे जैसे शक्श को मेरी उम्मत में बनाया"

क्या आप जानते हैं वो खुशकिस्मत सहाबी कौन थे ??

उनका नाम हज़रत सालिम था , जो सालिम मोली अबू हुजैफा के नाम से मशहूर थे, उन्होंने जंग मौता में जाम ए शहादत नोश किया ,

अल्लाह की करोड़हा रहमतें हों उन पर

(किताब: सीरत नबावियाह (इब्न हिशाम), तबाकात कुबरा (इब्न साद)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks