Sunday, July 4, 2021

तौबा (जिसका कुबूल करना अल्लाह के जिम्मे है)

 "तौबा (जिसका कुबूल करना अल्लाह के जिम्मे है) सिर्फ उन लोगों के लिए है जो जिहालत से बुराई करते हैं, फिर जल्द ही तौबा कर लेते हैं, तो यही लोग हैं जिनपर अल्लाह फिर मेहरबान हो जाता है, और अल्लाह हमेशा से सबकुछ जानने वाला है, (कुरआन सुरह निसा आयत 17)"

اِنَّمَا التَّوۡبَۃُ عَلَی اللّٰہِ لِلَّذِیۡنَ یَعۡمَلُوۡنَ السُّوۡٓءَ بِجَہَالَۃٍ ثُمَّ یَتُوۡبُوۡنَ مِنۡ قَرِیۡبٍ فَاُولٰٓئِکَ یَتُوۡبُ اللّٰہُ عَلَیۡہِمۡ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ عَلِیۡمًا حَکِیۡمًا
"اِنَّمَا التَّوۡبَۃُ عَلَی اللّٰہِ "
1- यहां اللّٰہِ के माने ये हैं के ऐसे लोगों की तौबा कुबूल करना अल्लाह ताला ने अपने फ़ज़ल वा करम से अपने जिम्मे लिया हुआ है, वरना अल्लाह ताला पर कोई चीज़ लाज़िम नहीं हैं (कुर्तुबी)
-"بِجَہَالَۃٍ"
2-यानी कभी अगर नादानी और जिहालत से मघलूब होकर गुनाह कर भी लेते हैं तो जल्द ही तौबा कर लेते हैं,
यहां एक सवाल है के अल्लाह ताला सिर्फ उन लोगों की तौबा कुबूल करता है जो जिहालत से गुनाह करते हैं तो इसका मतलब ये हुआ के अगर कोई जिहालत से गुनाह ना करे यानी इल्म रखते हुए गुनाह करे तो उसकी तौबा कुबूल ही नहीं ??
जवाब ये है के यहां "بِجَہَالَۃٍ की कैद एहतेराज के लिए नहीं है बल्कि यहां बयान वाकया के लिए है, यहां जिहालत से मुराद बेखबरी और नवाक्फियत नहीं बल्कि बेवकूफी और सिफाहत है, क्यूंकि हर गुनाह होता ही है बेवकूफी और जिहालत की वजह से, गुनाह करने वाला इसके अंजाम से बेपरवाह होकर ही गुनाह की जुर्रत करता है, अगर वो इसका पूरा अंजाम अपनी आंखों के सामने रखे तो वह कभी उस गुनाह का अर्तकाब ना कर सकेगा, مِنۡ قَرِیۡبٍ का मफहूम ये है के मौत के आसार मुशाहिदा करने से पहले पहले तायब हो जाते हैं, इन दो शर्तों के साथ अल्लाह ताला उनकी तौबा कुबूल फरमा लेता है,
(तफसीर कुर्तुबी, इब्न कसीर)
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks