जवाल ऐसे नहीं आता !!
हज़रत उमर फारूक ने चौदह पैबंद के साथ अपने दौर के सुपर पावर ईसाइयत के सबसे मुकद्दस शहर येरूशेलम की तारीख का रुख बा ज़ोर ए ताकत बदल दिया था,
आइए बर्रे सगीर में मुगलिया सल्तनत के दौर ए जवाल पर नज़र डालिए,
बहादुर शाह ज़फ़र का दस्तरख्वान मुलाहिजा फरमाइए,
चावलों मे :
यखनी पुलाओ, मोती पुलाओ, नुक्ति पुलाओ , नूरमहली पुलाओ, किशमिश पुलाओ, नरगिस पुलाओ, मुज़फर पुलाओ, फालसाई पुलाओ, आबी पुलाओ, सुनहरी पुलाओ, रुपहली पुलाओ, मुर्ग पुलाओ, बीजा पुलाओ, अनानास पुलाओ, कोफ्ता पुलाओ, बिरयानी पुलाओ, सालिम बकरे का पुलाओ, बोंट पुलाओ, खिचड़ी, शवाला ( गोश्त में पकी हुई खिचड़ी) और काबुली जाहिरी,
सालनों में उम्मीद है मेरी तरह आपने ये नाम भी ना सुनें होंगे,
कलियह, दो प्याजा, हिरण का कोरमा, मुर्ग का कोरमा, मछली, बैगन का भरता, आलू का भरता, चने की दाल का भरता, बैगन का दलमाह, करेलों का दलमह , बादशाह पसंद करेले, बादशाह पसंद दाल, सीख कबाब, शामी कबाब, गोलियों के कबाब, तीतर के कबाब, बटेर के कबाब, नुक्ती कबाब, खताई कबाब, और हसीनी कबाब शामिल होते थे,
रोटियों की ये इकसाम शायद आपने इंटरनेट पर भी ना देखी हों,
चपातियां, फुल्के, पराठे, रोगनी रोटी, खमीर रोटी, गावदीदा, गावो ज़बान, कुलचा, घोसी रोटी, बादाम की रोटी, पिस्ते की रोटी, चावल की रोटी, गाजर की रोटी, मिस्री की रोटी, नान, नान गुलज़ार, नान तिनकी, और शीर माल,
मीठे की तरफ नज़र डालिए,
मुतंजन, जर्दा, कद्दू की खीर, गाजर की खीर, कांघनी की खीर, याकूती, नम्स, रवे का हलवा, गाजर का हलवा, कद्दू का हलवा, मलाई का हलवा, बादाम का हलवा, पिस्ते का हलवा , रंगतरे का हलवा,
मुरब्बे इन किस्मों के होते थे,
आम का मुरब्बा, सेब का मुरब्बा, अमले का मुरब्बा, तरंज का मुरब्बा, करेले का मुरब्बा, रंगतारे का मुरब्बा, लींबू का मुरब्बा, अनानास का मुरब्बा, कटहल का मुरब्बा, ककरैंडा का मुरब्बा, बांस का मुरब्बा,
मिठाइयों की किस्म ये थी,
जलेबी, इमरती, बर्फी, फीनी, कलाकंद, मोती पाक, बालूशाही, दर बहिश्त, अंदरसे की गोलियां, सोहन हलवा, हब्शी हलवा, हलवा गोंद का , हलवा पीढ़ी का , लड्डू मोतीचूर के, मूंगे के, बादाम के, पिस्ते के, मलाती के, लौजैन मूंग की, दूध की, पिस्ते की, बादाम की, जामुन की, रंगतारे की, फालसे की, पेठे की मिठाई और पिस्ता मग्जी,
ये मजेदार और रंगारंग खाने सोने और चांदी के बर्तन, रकाबों, तश्तरियों और पियालियों में सजे और मुश्क, ज़ाफरान और केवड़ों की खुशबू से महका करते थे, चांदी के वर्क अलग से झिलमिलाते थे, खाने के वक्त पूरा शाही खानदान मौजूद होता था,
(इंतजार हुसैन की किताब " दिल्ली जो एक शहर था" से लिया गया है)
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks