Wednesday, July 25, 2018

मुसलमान एक धार्मिक समूह है, मुसलमानों को कोई राजनैतिक एजेंडा है ही नहीं,




आप राजनैतिक लड़ाई के लिए देश के मुसलमानों को एक साथ इकट्ठा होते हुए नहीं देख पायेंगे, ऐसा क्यों है ?
क्योंकि मुसलमान राजनैतिक समूह हैं ही नहीं , मुसलमान एक धार्मिक समूह है, मुसलमानों को कोई राजनैतिक एजेंडा है ही नहीं,
 

 मुसलमानों का बस धार्मिक एजेंडा है\ वह भी व्यक्तिगत,सामूहिक एजेंडा है ही नहीं, जबकि इसके बरक्स हिन्दू एक राजनैतिक समूह है, इस समुदाय का एक राजनैतिक एजेंडा है, इसका एक सुगठित राजनैतिक प्रशिक्षण का कार्य्रक्रम है,


हिन्दू धर्म नहीं है, हिन्दू एक राजनैतिक शब्द है, पांच सौ साल पहले अकबर के समय में तुलसीदास जब रामचरित मानस लिख रहे थे, तब तक भी उन्होंने अपने लिए हिन्दू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था,
क्योंकि तब तक भी कोई हिन्दू धर्म नहीं था, कोई भी हिन्दू दुसरे हिन्दू जैसा नहीं है, कोई हिन्दू मूर्ती पूजा करता है कोई नहीं करता, कोई मांस खाता है, कोई नहीं खाता, 


आदिवासी ईश्वर को नहीं मानता,  गाय खाता है, मूर्ती पूजा नहीं करता,  लेकिन हिन्दुओं की रक्षा के राजनैतिक मुद्दे पर भाजपा को वोट देता है, अंग्रेजों नें भारत में अपने खिलाफ उठ रही आवाज़ को दबाने के लिए
एक तरफ मुस्लिम लीग को बढ़ावा दिया दूसरी तरफ हिन्दू नाम की नई राजनैतिक चेतना को उकसावा दिया,
आज़ादी के बाद पाकिस्तान बनने के साथ मुस्लिम लीग की राजनीति भी भारत में समाप्त हो गयी,
लेकिन संघ की अगुवाई में ज़मींदार, साहूकार,  जागीरदारों ने अपनी अमीरी और ताकत को बरकरार रखने के लिए अपना राजनैतिक एजेंडा बनाया, लेकिन ये लोग सत्ता में नहीं आ पा रहे थे क्योंकि यह मात्र चार प्रतिशत थे,
संघ के नतृत्व में इन लोगों नें लम्बे समय तक मेहनत किया, राम जन्मभूमि मुद्दे पर संघ ने दलितों,  आदिवासियों, ओबीसी को हिन्दू अस्मिता के साथ सफलतापूर्वक जोड़ा संघ नें करोड़ों दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के मन में यह बिठा दिया की देखो यह बाहर से आये मुसलमान हमारे राम जी का मन्दिर नहीं बनने दे रहे हैं,
इस तरह जो दलित पास के आदिवासी को नहीं जानता था,  या जो ओबीसी हमेशा दलित से नफरत करता था
वह सब हिंदुत्व के छाते के नीचे आ गए,


मुसलमानों का हव्वा खड़ा करके अलग अलग समुदायों को इकट्ठा करना और असली राजनैतिक मुद्दों को भुला देना संघ की राजनीति की खासियत रही, संघ इसके सहारे सत्ता हासिल करने में पूरी तरह सफल हो गया,
दूसरी तरफ भारत का मुसलमान बिना किसी राजनैतिक एजेंडे के चलता रहा, 



भारत के मुसलमानों को लगता था कि  आजादी की लड़ाई के बाद हमारे नाम पर पाकिस्तान मांग लिया गया
और गांधी जी की हत्या भी हमारे कारण हो गयी है, इसलिए हमारे समुदाय को तो किसी बात पर मांग करने का कोई हक बचा ही नहीं है, हांलाकि न तो बंटवारे के लिए और ना ही गांधी की हत्या के लिए मुसलमान किसी भी तरह से कसूरवार ठहराए जा सकते थे, भारत के बंटवारे की नींव सावरकर की हिन्दू महासभा और हेडगवार के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा रखी गयी,


यहाँ तक कि मुस्लिम लीग की राजनीति भी हिन्दुओं की मुखालफत करना नहीं था, जबकि हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शुरुआत से ही मुख्य एजेंडा मुसलमानों, ईसाईयों और कम्युनिस्टों की मुखालफत करने का तय किया गया था,


हिन्दू मह्सभा और संघ की पूरी राजनीति यह थी कि  भारत के लोगों को मुसलमानों और ईसाईयों का डर दिखाया जाय और मजदूरों किसानों और दलितों की बराबरी वाली राजनीति मांग को समाप्त किया जाय,
ताकि पुराने ज़मींदार, साहूकार और जागीरदार अपनी पुरानी अमीरी और ताकतवर हैसियत आजादी के बाद भी बरकरार रख सकें, अपनी राजनीति को जारी रखने के लिए संघ आज भी यही नफरत भारत के नौजवानों के दिमागों में नियमित रूप से डालता है,


भारत के मुसलमान आज भी किसी राजनैतिक एजेंडे के बिना भारत की मुख्यधारा की राजनीति में जुड़ने की कोशिश करते हैं, ध्यान दीजिये भारत के मुसलमान किसी भी साम्प्रदायिक दल को वोट नहीं देते,
क्योंकि मुसलमानों का कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं है,
 

इसलिए आप मुसलमानों को राजनैतिक मुद्दों पर इकट्ठा होते हुए नहीं देख पाते, इसलिए JNU  में नजीब नाम के लड़के को  जब संघ से जुड़े संगठन ने पीटा और गायब कर दिया तो उसकी लड़ाई धर्मनिरपेक्ष ताकतों नें लड़ी,
नजीब के लिए कोई मुसलमानों की भीड़ नहीं उमड़ पड़ी,
 

 हम मानते हैं कि भारत की राजनीति का एजेंडा समानता और न्याय होना चाहिए,
लेकिन संघी राजनीति इन्ही दो शब्दों से खौफ खाती है, इसका उपाय यही है कि बराबरी और इन्साफ के लिए
देश भर में जो अलग अलग आन्दोलन चल रहे हैं,  जैसे छात्रों का आन्दोलन, महिलाओं का आन्दोलन,
मजदूरों का आन्दोलन, किसानों का आन्दोलन,  दलितों का आन्दोलन, आदिवासियों का आन्दोलन,
उन सब के बीच संपर्क बने और वे मिलकर  इस नफरत की राजनीती को खत्म करके
बराबरी और न्याय की राजनीति से युवाओं को जोड़ दें। 

Himanshu Kumar