Sunday, December 7, 2014

HZ NOOH (AS) KI KASHTI






हजरत नूह की कश्ती मिल गयी

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दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सन 1950 के आसपास एक अमेरिकी खोजी विमान जब तुर्की के आरारात पहाड के उपर से जासूसी के लिए फोटो लेते हुए गुजरा तो उसके कैमरे में इस सदी का एक बेहद महत्वपूर्ण चित्र कैद हो गया ।
सेना के वैज्ञानिकों ने जब आरारात पहाड पर एक बडी नाव जैसी संरचना देखी तो उस फोटो के अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक का कहना था कि ये सौ फीसदी नाव है। जो 300 क्यूबिट लम्बी थी । इस कश्ती के बारे में पता लगते ही वैज्ञानिकों में उत्साह दौड गया जो पुरातत्व की खोजों में लगे रहते हैं। और उन्हे लगा कि हो ना हो ये नूह की कश्ती के ही अवशेष हैं।

लेकिन उस समय तकनीकी अच्छी ना होने के कारण वैज्ञानिक इसका परीक्षण सही प्रकार ना कर सके और इस रहस्यमय संरचना से कोई निष्कर्ष ठीक प्रकार नही निकाला जा सका

सन 1977 मे एक अमेरिकी वैज्ञानिक रोन वाट ने नूह की कस्ती को खोजने के लिए एकबार फिर प्रयास करने की ठानी । रोन वाट ने पूर्वी तुर्की के इस इलाके में गहन शोध के लिए तुर्की सरकार से अनुमति मांगी, तुर्की सरकार ने उसे शोध करने की इजाजत दे दी ।
पहली यात्रा में ही वाट को अपना दावा सिद्ध करने के काफी सबूत मिले, इसके बाद तो वाट ने इस जगह की अहमियत को समझते हुए अत्याधुनिक वैज्ञानिक साजो सामान को इस्तेमाल करके अकाट्य सबूत जुटाने में कामयाबी हासिल की। इन्होनें जमीन के उपर रखकर जमीन के अन्दर के चित्र उतारने वाले रडारों और मेटल डिटैकटरों का इस्तेमाल किया और नूह की कस्ती के अन्दर की जानकारी के सबूत जुटाए।
इस परीक्षण के चैकानें वाले नतीजे निकले राडार और मेटल डिटेक्शन सर्वे में धातु और लकडी की बनी चीजों का एक खुबसूरत नक्शा सामने आया । और जमीन के उपर से बिना इस जगह को नुकसान पहूंचाए नाव होने के सबूत मिल गए।
और फिर रोन ने नक्शे को प्रमाणित करने के लिए ड्रिल तकनीक से नाव के अन्दर मौजूद धातु व लकडी के नमूनें प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की

इन नमूनों को रोन वाट ने अमेरिका की प्रयोगशालाओं को भेजा जिनकी रिपोर्ट में ये बात सच पायी गयी कि वाकई तुर्की के इस अरारात नामक पहाड पर एक प्राचीन नाव दफन थी।
रोन वाट के लगभग 10 साल के सघन शोध के बाद दुनिया भर में इस पर चर्चा हुई और अन्ततः नूह की कस्ती की खोज को मान लिया गया।

आश्चर्यजनक बात थी कि ये नाव बिल्कुल उसी तरीके से बनी थी जैसा वर्णन हजरत नूह की नाव बनाने का अल्लाह की किताब तौरेत मे आया था

तुर्की सरकार ने इस खोज के जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जिसमें अतातुर्क विश्वविद्यालय के भू वैज्ञानिक व पुरातत्व वैत्ता और तुर्की रक्षा विभाग के वैज्ञानिक व सरकार के कुछ उच्चाधिकारी शामिल थे ।
इस आयोग ने दिसम्बर 1986 ईसवी को रोन वाट की खोज की जांच की और अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश की, जिसमें इन्होनें इस खोज को सही माना, और अपनी सिफारिशें दी जिसमें इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने की सलाह सरकार को दी गयी थी
तुर्की सरकार ने इस इलाके को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए और इस इलाके को कस्ती-ए-नूह राष्ट्रीय पार्क बना दिया गया। और इस जगह को आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया

इस नाव को बनाने का तरीका अपने आप मे अनूठा और दुनिया भर मे अकेला है, जिससे कुरान और तौरेत की इस बात की पुष्टि होती है कि ये नमूना हजरत नूह को सीधे अल्लाह से मिला था

इस तरह ईश्वर के उस महान संदेष्टा की कथा के सच होने का प्रमाण दुनिया के सामने आया जिसे तमाम दुनिया हजरत नूंह, नौहा, या मनु के नाम से जानती है

इस प्रमाण ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि जल प्लावन की घटना का अंत भारत से दूर तुर्की मे हुआ था यानी आज दुनिया भर मे फैली सारी मानव आबादी तुर्की क्षेत्र से ही फैली,
साथ ही ये सिद्ध हुआ कि नौका वाली घटना मे सिर्फ वो बातें सच हैं जो अल्लाह की भेजी किताबों मे लिखी हैं

बेशक, क्योंकि अल्लाह ही सच है, और अल्लाह के नबियों का सुनाया संदेश ही सच्चा संदेश है