Monday, December 1, 2014

KYA ISLAM KO FAILAANE ME TALWAAR KA ISTEMAL KIYA JA SAKTA HAI ???





अनेक लोगों मे इस्लाम के विषय मे एक भ्रम ये है, कि इस्लाम को फैलाने के लिए तलवार उठाने की इस्लाम मे इजाजत है, और स्वयं इस्लाम के पैगंबर स. ने इस्लाम को फैलाने के लिए काफिरों से युद्ध किए.... 

इस्लाम फैलाने के लिए तलवार उठाने की इसी इजाजत के कारण आज दुनियाभर मे अनेक सशस्त्र इस्लामी जिहादी संगठन पैदा हो गए हैं, जिन्होंने विश्व भर मे आतंक फैला रखा है ....

... जबकि असल बात ये है कि इस्लाम मे इस्लाम को फैलाने के लिए तलवार उठाने की कतई इजाजत नही है 


.... बेशक नबी स. ने अरब के काफिरों से युद्ध किए लेकिन वो युद्ध उन्होंने इस्लाम को फैलाने के लिए नही किए थे, बल्कि उन्हें वो युद्ध मजबूरन करने पड़े, इस्लाम को "बचाने" के लिए !

इस्लाम को फैलाना और इस्लाम को बचाना, दोनों बातों मे बड़ा फर्क है ...

चौदह सौ वर्ष पहले के अरब मूर्ति-पूजक गैर मुसलिम समाज के व्यवहार की ओर हम ध्यान दें तो पता चलता है, वे अरब बड़े ही हिंसक प्रवृत्ति के लोग हुआ करते थे... इसी माहौल मे जब नबी स. ने मक्का के लोगों को इस्लाम की दावत देनी शुरू की, लोगों को नवजात बच्चियों की हत्या करने से रोकने लगे, गुलामों के साथ दुर्व्यवहार करने से लोगों को रोकने लगे , मूर्ति पूजा से लोगों को रोका और एक अल्लाह की इबादत की ओर बुलाया
 

और आप स. की इन बातों से प्रभावित होकर मक्का के कुछ गरीब लोगों और कुछ गुलामों ने इस्लाम कुबूल कर लिया तो अरब के अमीर और प्रभावशाली वो लोग जो अपने हिंसक रीति रिवाज़ो से प्रेम करते थे, इस बात से चिढ़ गए ,और उन्होने उन गरीब नव मुस्लिमों को मार पीटकर उनका धर्म छुड़वा देना चाहा ताकि इस्लाम की कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाए

लेकिन ऐसा न हुआ, उन गरीब मुसलमानों ने खुद को बुरी तरह प्रताड़ित किए जाने के बावजूद इस्लाम का त्याग न किया .. 


और उन नव मुस्लिमों का इस्लाम से इस कदर प्रेम देखकर अरब के गैर मुस्लिम और बौखला गए और मुस्लिमों पर और सख्ती से अत्याचार करने लगे ... 

लेकिन इसका असर उल्टा ही हुआ, और नव मुस्लिमों के मुंह से इस्लाम की प्यारी प्यारी तालीमात का जिक्र सुनकर इस्लाम कुबूल करने वालो की तादाद बढ़ती गई.
 

लगभग 11 वर्ष तक मक्का के गैर मुस्लिमों ने मुस्लिमों पर अमानवीय अत्याचार किए ..... उन्होंने अपने अनेक गुलामो के यातनाएँ देकर अंग भंग कर दिए क्योंकि उन गुलामो ने इस्लाम कुबूल कर लिया था, और कुछ गरीब मुसलमानों को यातनाएँ दे देकर मार डाला....... 

लेकिन मुस्लिम शांति और इस्लाम के मार्ग पर अडिग रहे .... 

न मुस्लिमों ने पलटकर कभी किसी पर वार किया और न ही इस्लाम से हटे कई मुसलमान इन भयंकर तकलीफो से बचने के लिए प्यारे नबी स. की सलाह पर मक्का से बाहर ऐसी जगहों पर चले गए जहाँ वे शांति से अपने धर्म इस्लाम का पालन करते हुए जीवन गुज़ार सकें.
 

और जब मक्का मे रहना एकदम दूभर हो गया और पैगंबर स. के कत्ल की कोशिशें मक्का के गैर मुस्लिम करने लगे तो पैगंबर मोहम्मद स. भी बाकी मुसलमानों के साथ मक्का से मदीना प्रस्थान कर गए

लेकिन इसके बावजूद मक्का के गैर मुस्लिमों ने मुसलमानों का पीछा नही छोड़ा, उन हिंसक गैर मुस्लिमों ने सोचा कि यदि ये मुस्लिम इस्लाम का त्याग नहीं कर रहे हैं, तो फिर मदीना पर चढ़ाई कर के सारे मुस्लिमों की ही हत्या कर डाली जाए तो इस्लाम जड़ से खत्म हो जाएगा ...
 


और फिर मुस्लिमों के मदीना पहुंचने के दूसरे वर्ष, मक्का के काफिरो ने मुस्लिमों पर चढ़ाई कर दी , इसके पहले हमेशा मुस्लिमों ने काफिरो के अत्याचारों को पैगंबर स. के हुक्म पर चुपचाप बर्दाश्त कर लिया था, और यदि काफिरो की मुस्लिमों पर ये चढ़ाई केवल मुस्लिमों को बंदी बनाने, मुस्लिमो को मारने पीटने या मुस्लिमों की माल दौलत छीनने के लिए होती तो बात कुछ और होती, लेकिन अब तो सारे मुस्लिमों की हत्या कर के इस्लाम के खात्मे का अरमान लेकर काफिरो ने चढ़ाई की थी, अत: मुस्लिमों की जान की हिफाज़त के लिए और इस्लाम का अस्तित्व बचाने के लिए मुस्लिमों को आत्मरक्षा मे युद्ध की इज़ाज़त दी गई... इसके बाद भी पैगम्बर स. के जमाने मे काफिरो ने बार बार मुस्लिमों पर चढ़ाई की और मुस्लिमों ने सदा आत्मरक्षा मे और काफिरो से मुस्लिमों की जान बचाने के लिए बहुत मजबूर होकर तलवार उठाई न कि गैर मुस्लिमों को तलवार का भय दिखाकर जबरन मुसलमान बनाने के लिए

क्योंकि इस्लाम मे ये बिल्कुल स्पष्ट है कि किसी को विवश कर के इस्लाम कुबूल कराने की कोई आवश्यकता नहीं है, अल्लाह जिसे चाहता है वो व्यक्ति केवल समझाने मात्र से मुस्लिम बन जाता है .... पवित्र कुरान मे लिखा है
 

"अगर तुम्हारा रब्ब चाहता, तो इस धरती मे जितने लोग हैं, वे सारे के सारे ईमान ले आते . फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे ईमान वाले बन जाएं ?"
 

[ पवित्र कुरान 10:99 ]

रही बात इस्लाम के प्रसार की, तो उसके लिए केवल दो ही कारण उत्तरदायी थे, एक तो मुस्लिमों द्वारा इस्लामी शिक्षा के प्रवचन दिए जाना, और दूसरा मुस्लिमों के नए आचार व्यवहार, जिनसे प्रभावित होकर लोग स्वत: ही इस्लाम कुबूल कर लेते थे