Monday, February 15, 2021

TAWEEZ AUR DHAAGA

 



कई साल पहले की बात है, मैं मस्जिद नबवी में हज के मौसम में कब्र रसूल के पास दावती काम पर मामूर था, एक हाजी साहब के बाज़ू पर एक तावीज़ बंधी हुई देखी, बात चीत से पता चला के उनका ताल्लुक मुंबई या उसके आस पास के इलाकों से है, और वो खुद एक मेडिकल डॉक्टर है, उम्र बहुत ज़्यादा नहीं थी बिल्कुल जवान लग रहे थे,

मैंने कहा :-" हाजी साहब ये क्या है ??"

कहने लगे:-" तावीज है किसी बुजुर्ग आलिम ने दिया है, मैंने उन्हें समझाना शुरू किया के ये एक शिर्किया अमल है और शरीयत में मना है,"

मगर अकीदत में वो इस कद्र अंधे हो चुके थे के कोई बात उनके पल्ले नहीं पड़ रही थी मेरी कोई बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे, उनसे काफी दरख्वास्त की के इसे उतार फेंके लेकिन नतीजा सिफर

बिलाखिर मैंने कहा के या तो आप अपनी मर्ज़ी से इसे उतार दें या मुझे ज़बरदस्ती इंतजामिया के हवाले करके इसे उतारने की ज़रूरत पड़ेगी,

जब उन्हें लगा कि मै ज़िद पर हूं तो कुछ नरम पड़े और बिल आखिर उन्होंने वो तावीज उतार दी, फिर मैंने समझाना शुरू किया और कहा के हाजी साहब आपको क्या लगता है इस तावीज में क्या लिखा होगा ??

कहने लगे:-" कोई अच्छी दुआ वगेरह ही होगी ??"

मैंने कहा :-" कई सालों का मेरा तजुरबा ये कहता है के यकीनन इसमें कोई शिर्किया या अक्ल के खिलाफ हराम या मकरूह चीज़ ही लिखी होगी , आप तो इसे कितनी अकीदत से लटकाए हुए हैं लेकिन हो सकता है के ये कोई आपकी आख़िरत बर्बाद करने वाला समान हो,"

कहने लगे:- " मुझे अपने आलिम पर भरोसा है इसमें ऐसा कुछ नहीं होगा "

मैंने कहा:- "चलिए इसे खोलकर ही देखते हैं"

वह पहले तो उसे खोलने के लिए राज़ी ही ना हुए , लेकिन बिलआखिर मान गए , जब उसे खोला गया तो उनके होश उड़ गए ,

जो कुछ लिखा था उसे बताने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी के उनकी आखिरत के लिए वह कितना संगीन था,

मेरी ड्यूटी रात की थी और फजर से कुछ पहले तक जारी रहती थी,

दूसरे दिन वह मुझे ढूंढते हुए मेरे पास आ गए , अब उनके पास सवालात के अंबार थे, मैं इत्मीनान से उन्हें जवाब देता रहा ,

अब उनकी रात की नींद कहीं गायब हो गई थी,जबतक मदीना में रहे अक्सर वा बेशतर पूरी रात मेरे साथ लगे रहे , जिस दिन मदीना से रूखसत हो रहे थे काफी देर तक मुझसे लिपट कर रोते रहे , और कहते रहे के :-" आपने मेरी दुनिया बदल दी, तौहीद की अहमियत और नेमत अब मुझे समझ में आई है, मुझे अब रोशनी मिल गई है "

पता नहीं मेरा ये भाई आज कहां है, अल्लाह से दुआ है जहां कहीं भी हो उन्हें और हमें तौहीद वा सुन्नत पर बाक़ी रखे , और हम सब की वफात ईमान की हालत में हो, और कयामत के दिन हम सबको नबिय्यीन, सिद्दीकीन, शुहादा वा सालिहीन के साथ उठाए...

आमीन

साभार: शेख फारूख अब्दुल्लाह नारायणपुरी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hind