मुस्लिम समाज में कुरैशी अपनी लड़की पठान से नहीं ब्याहता, पठान अपनी लड़की कुरैशी से नहीं ब्याहता।
ये दो उदाहरण हैं मात्र लेकिन हालात पूरे मुस्लिम समाज के येही हैं।
अब इस जातिवाद के दुष्परिणाम नहीं जानना चाहेंगे आप?
जो मुस्लिम समाज अपने लड़के-लड़कियों को आपस में नहीं ब्याहता उसी समाज के लड़के-लड़की भंगी/चमार/जाट/कोली इत्यादि... से ब्याह रचा लेते हैं।
दूसरा काला सच इसका ये है कि अपवाद को छोड़कर दूसरे धर्म में ब्याही उन मुस्लिम लड़कियों से वैश्यावृत्ति कराई जाती है।
पाँच ऐसी ही लड़कियाँ जोकि अलग-अलग प्रांत की हैं उनसे मैं खुद मिल चुका हूँ, कारण वोहि बताती हैं लव-मैरिज। भागकर शादी की और अब वैश्यावृत्ति कर के जीवन-यापन कर रही हैं।
शुरुआती माह या अधिक से अधिक एक वर्ष कुशल-मंगल गुजरता है।
उसके बाद हर तरह की यातनाएँ दी जाने लगती हैं क्योंकि अब लड़की का न परिवार है और न वो सक्षम इसलिए हर यातना को सहती है।
लड़का मित्रों से सहवास तो कराता ही है वैश्यावृत्ति भी कराता है उस लड़की से। और ये करना उसकी मजबूरी क्योंकि लड़की स्वीकार लेती है कि उसने ये जीवन स्वेच्छा से चुना है।
इसमें सारा दोष उस लड़की का ही नहीं है, इस मुस्लिम समाज का भी है, उस अना का भी है जो जातिवाद का रुप ले चुकी है जिसकी बलि चढ़ती है लड़की।
Arshad Qureshi भाई के वाल से
वेश्यावर्ती में लिप्त 2 लड़कियों से में भी सुन चुका हूं अन्य धर्म के लड़कों से शादी की और उन्होंने पहले उन्हें प्रताड़ित करना शुरू किया फिर घर से निकाल दिया उन्हें ना लड़की के परिवार ने स्वीकारा और लड़के वाले तो भगा ही चुके थे, एक ने बताया लड़का उस लड़की को लेकर अलग अकेले रहता था, जब लड़के का मन भर गया तो दोस्तों से शारीरिक संबंध बनवाये और वेश्यवर्ती के लिए दबाव डाला, आखिर में लड़की को यह सब करना पड़ा
Ahmed Zidaan भाई का कामेंट्स
बड़े ही अफसोस की बात है, हालांकि इस्लाम में जातिवाद नहीं है लेकिन हम इस्लाम को उतना ही मानते हैं जो मेरे मतलब का हो , अल्लाह हिफाज़त फरमाए हम सबकी
रिपोस्ट