Tuesday, February 16, 2021

अजीब लोग थे वह तितलियां बनाते थे,

 



अजीब लोग थे वह तितलियां बनाते थे,

समुंदरों के लिए मच्छलिया बनाते थे।

मेरे कबीले में तालीम का रिवाज ना था,
मेरे बुजुर्ग मगर तख्तियां बनाते थे।

वहीं बनाते थे लोहे को तोड़कर ताला
फिर उसके बाद वही चाबियां बनाते थे।

फ़िज़ूल वक्त में वह सारे शीशा गर मिलकर ,
सुहागनों के लिए चूड़ियां बनाते थे।

मेरे गांव में दो चार हिन्दू दर्जी थे,
नमाजियों के लिए टोपियां बनाते थे